बेमेतरा में ग्रीष्मकालीन धान पर रोक, 425 ग्राम पंचायतों ने सर्वसम्मति से दी सहमति — अब किसान अपनाएँगे कम पानी वाली फसलें
बेमेतरा जिले की सभी 425 ग्राम पंचायतों ने ग्रीष्मकालीन धान की खेती बंद करने का सर्वसम्मत निर्णय लिया है। वर्ष 2024-25 में कम वर्षा और जल संकट के कारण भूजल स्तर में भारी गिरावट आई थी। प्रशासन ने किसानों से कम पानी में उपजने वाली फसलों — दलहन, तिलहन, मक्का और मूंग — को अपनाने की अपील की है। यह निर्णय जल संरक्षण और सतत कृषि विकास की दिशा में एक प्रेरणादायक पहल माना जा रहा है।
UNITED NEWS OF ASIA. अरुण पुरेना, बेमेतरा। कृषि प्रधान बेमेतरा जिले में अब ग्रीष्मकालीन धान की खेती नहीं होगी। जिले की 425 ग्राम पंचायतों ने जल संकट और पर्यावरणीय असंतुलन को देखते हुए ग्रीष्मकालीन धान की खेती पर रोक लगाने का सर्वसम्मत प्रस्ताव पारित किया है। यह निर्णय जिले में जल संरक्षण और सतत कृषि विकास की दिशा में एक ऐतिहासिक कदम माना जा रहा है।
सीमित वर्षा और बढ़ता जल संकट
वर्ष 2024-25 में जिले में मात्र 600 मिमी वर्षा दर्ज की गई, जबकि औसत वर्षा 995 मिमी होती है। कम वर्षा के कारण भूमिगत जल स्तर तेजी से नीचे गया और सैकड़ों हैंडपंप, कुएं एवं नलकूप सूख गए। रबी सीजन में लगभग 26,680 हेक्टेयर में ग्रीष्मकालीन धान की बुवाई की गई थी, जिससे जल दोहन और बिजली खपत में अत्यधिक वृद्धि हुई।
वैज्ञानिक संस्थानों की अनुशंसा
भारतीय कृषि अनुसंधान परिषद, केंद्रीय चावल अनुसंधान संस्थान (कटक) और इंदिरा गांधी कृषि विश्वविद्यालय रायपुर ने भी ग्रीष्मकालीन धान को भूजल दोहन का प्रमुख कारण बताया है। विशेषज्ञों ने किसानों को सलाह दी है कि वे इसके स्थान पर मूंग, उड़द, चना, मक्का, सूरजमुखी, रागी और तिल जैसी फसलें अपनाएँ, जो कम पानी में अधिक लाभ देती हैं।
विश्वविद्यालय के अनुसार वैकल्पिक फसलों से मिलने वाली शुद्ध आय धान की तुलना में कहीं अधिक है — जैसे मक्का से ₹1,14,000, सूरजमुखी से ₹1,08,978, मूंगफली से ₹92,997 प्रति हेक्टेयर तक की आय संभव है।
प्रशासन की अपील और सामूहिक जिम्मेदारी
जिला प्रशासन ने किसानों से अपील की है कि वे ग्रीष्मकालीन धान की बुवाई पूरी तरह बंद करें और जल संरक्षण हेतु ड्रिप एवं स्प्रिंकलर सिंचाई, मल्चिंग और फसल चक्र जैसी तकनीकों को अपनाएँ। साथ ही, गांवों में कुएं, तालाब और नालों के पुनर्जीवन के लिए सामूहिक भागीदारी सुनिश्चित करें।
बेमेतरा का यह निर्णय न केवल जल संकट से राहत दिलाने में मदद करेगा, बल्कि आने वाली पीढ़ियों के लिए सतत कृषि और पर्यावरण संतुलन की दिशा में भी एक मिसाल बनेगा।
