रायगढ़ में आदिवासियों का धरना: कोल ब्लॉक परियोजना के विरोध में सड़कों पर रात गुजारने को मजबूर जनजातीय समुदाय
छत्तीसगढ़ के रायगढ़ जिले में आदिवासी समुदाय अपनी जमीन और जंगल बचाने के लिए कलेक्ट्रेट के सामने दो दिनों से धरना दे रहा है। प्रदर्शनकारियों की मांग है कि पुरूंगा क्षेत्र में अडानी कोल ब्लॉक से संबंधित 11 नवंबर को प्रस्तावित जनसुनवाई को रद्द किया जाए। उनका कहना है कि यह प्रक्रिया स्थानीय जनजातीय समुदाय की सहमति के बिना की जा रही है।
UNITED NEWS OF ASIA. रायगढ़ | धरमजयगढ़ क्षेत्र के आदिवासी इन दिनों अपनी जमीन, जंगल और घर बचाने की लड़ाई सड़कों पर लड़ रहे हैं। रायगढ़ कलेक्ट्रेट के सामने हजारों की संख्या में पुरुष, महिलाएं और बच्चे बीते दो दिनों से खुले आसमान के नीचे धरने पर बैठे हैं। इन लोगों की मांग है कि पुरूंगा क्षेत्र में प्रस्तावित अडानी कोल ब्लॉक परियोजना से जुड़ी जनसुनवाई को तत्काल रद्द किया जाए।
प्रदर्शनकारियों का कहना है कि 11 नवंबर को निर्धारित जनसुनवाई स्थानीय समुदाय की सहमति के बिना की जा रही है। वे आरोप लगा रहे हैं कि प्रशासन ने न तो प्रभावित ग्रामों के निवासियों से कोई औपचारिक राय ली है और न ही उनके पुनर्वास एवं मुआवजे की उचित योजना स्पष्ट की है।
धरनास्थल पर मौजूद आदिवासियों ने बताया कि वे पिछले दो दिनों से बिना पका भोजन खा रहे हैं और ठंडी रातों में अपने बच्चों के साथ जमीन पर सोने को मजबूर हैं। एक महिला प्रदर्शनकारी ने कहा, “हम अपनी जमीन नहीं छोड़ेंगे। यह हमारी माँ है। अगर सरकार सच में जनजातीय हितैषी है, तो जनसुनवाई रोककर हमसे बातचीत करे।”
आंदोलनकारियों का कहना है कि यह संघर्ष केवल जमीन का नहीं, बल्कि उनकी पहचान और अस्तित्व का सवाल है। पुरूंगा क्षेत्र के कई गांव इस कोल ब्लॉक परियोजना से प्रभावित होंगे, जिससे हजारों लोगों के विस्थापन की आशंका है।
धरना स्थल पर सामाजिक संगठनों, छात्र समूहों और मानवाधिकार कार्यकर्ताओं ने भी समर्थन जताया है। सोशल मीडिया पर “उठो साय, अब तो आँखें खोलो” अभियान ट्रेंड कर रहा है, जिसमें मुख्यमंत्री विष्णुदेव साय से इस मामले में हस्तक्षेप की अपील की जा रही है।
आदिवासियों ने मांग की है कि मुख्यमंत्री स्वयं प्रतिनिधियों से मुलाकात कर स्थिति की जानकारी लें और जनसुनवाई की प्रक्रिया को तब तक रोका जाए, जब तक कि सभी ग्राम सभाओं की सहमति प्राप्त न हो जाए।
रायगढ़ का यह आंदोलन छत्तीसगढ़ में भूमि अधिकारों, पर्यावरण और आदिवासी जीवन के संरक्षण से जुड़े संघर्षों का नया अध्याय बनता जा रहा है — जहाँ विकास की कीमत पर अस्तित्व बचाने की जंग अब सड़कों पर उतर आई है।