डोंगरगढ़ मां बम्लेश्वरी विवाद: 15 नवंबर को सर्व आदिवासी समाज करेगा आंदोलन, मंदिर परंपरा की रक्षा और शांति बहाली की मांग

डोंगरगढ़ के मां बम्लेश्वरी मंदिर विवाद में अब सर्व आदिवासी समाज ने 15 नवंबर को आंदोलन की घोषणा की है। समाज के नेताओं ने स्पष्ट किया कि पंचमी भेंट के दौरान हुई घटना कुछ व्यक्तियों की हरकत थी, पूरे समाज की नहीं। उन्होंने ट्रस्ट समिति से विवाद सुलझाने, मंदिर परंपरा की रक्षा और शांति बनाए रखने की अपील की।

Nov 4, 2025 - 15:54
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डोंगरगढ़ मां बम्लेश्वरी विवाद: 15 नवंबर को सर्व आदिवासी समाज करेगा आंदोलन, मंदिर परंपरा की रक्षा और शांति बहाली की मांग

UNITED NEWS OF ASIA. नेमिष अग्रवाल, डोंगरगढ़। छत्तीसगढ़ की धर्मनगरी डोंगरगढ़ में मां बम्लेश्वरी मंदिर को लेकर चल रहा विवाद अब नए मोड़ पर पहुंच गया है। नवरात्र पर्व के दौरान पंचमी भेंट के समय गर्भगृह में प्रवेश को लेकर उपजे विवाद के बाद अब सर्व आदिवासी समाज ने 15 नवंबर को आंदोलन करने की घोषणा की है। समाज के प्रतिनिधियों का कहना है कि मंदिर की परंपरा, आस्था और शांति बनाए रखने के लिए निष्पक्ष समाधान जरूरी है।

दरअसल, विवाद की शुरुआत उस समय हुई जब नवरात्र पर्व के पंचमी दिवस पर कुछ लोगों ने मां बम्लेश्वरी मंदिर के गर्भगृह में जबरन प्रवेश किया और सामाजिक ध्वज लगाया। इसके बाद ट्रस्ट समिति पर पक्षपात और भेदभाव के आरोप लगे। साथ ही, ट्रस्ट को भंग करने और उसमें 50% आरक्षण देने की मांग भी उठी। इस घटना में खैरागढ़ राजपरिवार के राजकुमार भवानी बहादुर सिंह भी शामिल थे, जिन्होंने दावा किया कि यह मंदिर उनके पूर्वजों द्वारा स्थापित किया गया था।

इसी बीच डोंगरगढ़ के नीचे स्थित मंदिर प्रांगण में आयोजित प्रेस कॉन्फ्रेंस में गोंड़ समाज, कंवर समाज और हल्बा समाज के प्रतिनिधियों ने स्पष्ट किया कि यह विवाद कुछ व्यक्तियों की व्यक्तिगत हरकत थी, न कि पूरे समाज की। गोंड़ समाज अध्यक्ष एम.डी. ठाकुर, कंवर समाज के आत्माराम चंद्रवंशी और हल्बा समाज के नेपाल सिंह सहित अन्य पदाधिकारियों ने कहा कि “मां बम्लेश्वरी देवी सभी समाजों की आस्था का केंद्र हैं, किसी एक वर्ग की नहीं।”

उन्होंने भवानी बहादुर सिंह के गर्भगृह प्रवेश को गलत और निंदनीय बताया, यह कहते हुए कि “ट्रस्ट समिति के पदाधिकारियों को भी जहां अनुमति नहीं, वहां किसी का भी जबरन प्रवेश अनुचित है।” एम.डी. ठाकुर ने साफ कहा कि 15 नवंबर को होने वाले प्रस्तावित आंदोलन के लिए किसी भी आदिवासी समाज की सामूहिक सहमति नहीं है।

नेताओं ने यह भी स्पष्ट किया कि मंदिर ट्रस्ट समिति में पहले से ही आदिवासी समाज के प्रतिनिधि शामिल हैं और सदस्यता की प्रक्रिया सभी के लिए खुली है। उन्होंने समाज के लोगों से शांति बनाए रखने और किसी भी भ्रामक प्रचार से दूर रहने की अपील की।

डोंगरगढ़ का यह विवाद अब टकराव से हटकर संवाद और परंपरा की रक्षा की दिशा में बढ़ता दिखाई दे रहा है। अब सबकी निगाहें 15 नवंबर को घोषित आंदोलन पर टिकी हैं, जिससे तय होगा कि यह विवाद समाप्ति की ओर जाएगा या एक नया अध्याय शुरू होगा।