901 ज्योति कलशों के विसर्जन पर थमी रेल लाइन, रियासत काल से जारी डोंगरगढ़ की ऐतिहासिक परंपरा

शारदीय नवरात्र के समापन पर डोंगरगढ़ में मां बम्लेश्वरी मंदिर से निकली शोभायात्रा में 901 ज्योति कलशों का महावीर तालाब में विसर्जन किया गया। रियासत काल से चली आ रही इस ऐतिहासिक परंपरा के तहत विसर्जन यात्रा के दौरान मुंबई–हावड़ा रेलवे लाइन पर रेल यातायात रोक दिया जाता है। राजा लाल उमराव सिंह द्वारा 1883 में ब्रिटिश सरकार और बंगाल-नागपुर रेलवे से हुए समझौते के अनुसार, नवरात्र परंपरा के सम्मान में आज भी ट्रेनों के पहिए थम जाते हैं।

Oct 2, 2025 - 14:13
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901 ज्योति कलशों के विसर्जन पर थमी रेल लाइन, रियासत काल से जारी डोंगरगढ़ की ऐतिहासिक परंपरा

UNITED NEWS OF ASIA. डोंगरगढ़। शारदीय नवरात्र के समापन पर मां बम्लेश्वरी मंदिर से देर रात एक भव्य शोभायात्रा निकाली गई। इस शोभायात्रा में हजारों श्रद्धालु शामिल हुए, जबकि महिलाएं सिर पर 901 प्रज्वलित ज्योति कलश लेकर मां की जयकारों के साथ आगे बढ़ीं। महावीर तालाब में इन कलशों का विसर्जन किया गया, जिसने आस्था और संस्कृति का अद्भुत दृश्य प्रस्तुत किया।

यह परंपरा केवल धार्मिक आयोजन नहीं बल्कि डोंगरगढ़ की ऐतिहासिक धरोहर भी है। विसर्जन यात्रा मंदिर से छिन्नमस्तिका मंदिर होते हुए रेलवे ट्रैक पार कर मां शीतला मंदिर तक जाती है, जहां मां शीतला और मां बम्लेश्वरी की ज्योत का मिलन कराया जाता है।

इस आयोजन की सबसे अनोखी विशेषता यह है कि यात्रा मार्ग में आने वाली मुंबई–हावड़ा मुख्य रेलवे लाइन पर रेल यातायात पूरी तरह से रोक दिया जाता है। इस दौरान लगभग तीन से चार घंटे तक रेलवे इस व्यस्त रेलखंड पर मेगा ब्लॉक घोषित करता है और दोनों ओर से ट्रेनों को रोका जाता है।

यह परंपरा रियासत काल से चली आ रही है। खैरागढ़ के तत्कालीन शासक राजा लाल उमराव सिंह ने 21 अगस्त 1883 को ब्रिटिश सरकार और बंगाल-नागपुर रेलवे के साथ हुए समझौते में डोंगरगढ़ रेलवे स्टेशन पर ठहराव और नवरात्र में ज्योति विसर्जन यात्रा के दौरान पटरियों पर ब्लॉक देने की शर्त रखी थी। आज भी रेलवे इस परंपरा का सम्मान करते हुए नवरात्र के दौरान ट्रेनों को रोक देता है।

डोंगरगढ़ की नवरात्रि का यह आयोजन केवल धार्मिक आस्था तक सीमित नहीं है, बल्कि यह इतिहास, परंपरा और संस्कृति का ऐसा संगम है जो देशभर के श्रद्धालुओं को दशकों से अपनी ओर आकर्षित कर रहा है।