छठ: बिहारियों के आँसुओं के अर्घ्य का पर्व और सांस्कृतिक पुनर्जागरण की कहानी
छठ पर्व केवल आस्था का नहीं, बल्कि बिहारियों की सांस्कृतिक पुनर्स्थापना और पलायन की पीड़ा का प्रतीक बन चुका है। लालू प्रसाद के दौर के बाद सवर्ण बुद्धिजीवियों के पलायन ने इस पर्व को सीमाओं से बाहर निकालकर राष्ट्रीय स्तर तक पहुँचा दिया। आज छठ केवल बिहार नहीं, बल्कि देशभर में बिहारियों की पहचान और उनकी भावनाओं का उत्सव बन चुका है।
UNITED NEWS OF ASIA. पंडित सुधांशु तिवारी | बिहार का लोकपर्व छठ आज केवल एक धार्मिक आयोजन नहीं, बल्कि एक भावनात्मक, सांस्कृतिक और सामाजिक पुनर्जागरण का प्रतीक बन चुका है। कभी बिहार तक सीमित यह पर्व आज दिल्ली, मुंबई, कोलकाता, बेंगलुरु और सूरत जैसे शहरों में लाखों बिहारियों द्वारा उसी श्रद्धा से मनाया जाता है, जैसे अपने गाँव की गंगा या तालाब के किनारे।
यह कहानी उस दौर से शुरू होती है जब बिहार में लालू प्रसाद यादव का शासन ‘जंगलराज’ कहकर आलोचना का केंद्र बना। इसी दौर में बड़ी संख्या में शिक्षित बिहारी, खासकर सवर्ण वर्ग, रोजगार और सम्मान की तलाश में दिल्ली, गुजरात, तमिलनाडु और कर्नाटक की ओर पलायन कर गए। ये लोग जहाँ भी पहुँचे, अपने साथ अपनी संस्कृति, भाषा और विशेषकर छठ पर्व को लेकर गए।
दिल्ली की मीडिया में उभरते बिहारी पत्रकारों—श्वेता सिंह, अंजना ओम कश्यप और अन्य—ने इस पर्व को राष्ट्रीय मंच पर स्थान दिलाने में महत्वपूर्ण भूमिका निभाई। तीन दिनों तक चलने वाला यह पर्व टीवी चैनलों के माध्यम से न केवल उत्तर भारत बल्कि पूरे देश में लोकप्रिय हो गया। धीरे-धीरे यह एक राष्ट्रीय लोकपर्व बन गया, जिसे अब कई राज्य सरकारें भी सम्मानपूर्वक मनाने की व्यवस्थाएँ करती हैं।
छठ बिहारियों के उस दर्द और तड़प का प्रतीक है, जो पलायन के साथ जुड़ा हुआ है। यह पर्व उस भावनात्मक जुड़ाव का उत्सव है, जब हर बिहारी—चाहे सवर्ण, पिछड़ा या दलित—अपने राज्य और अपनी मातृभूमि से संबंध पुनर्स्थापित करता है।
इतिहास गवाह है कि जब अंग्रेजों ने बिहारी मजदूरों को फिजी और मारिशस में बसाया, तब उन्होंने वहाँ भी अपनी संस्कृति की मशाल जलाए रखी। उसी परंपरा को आज के बिहारी विदेशों और भारत के महानगरों में जीवित रखे हुए हैं।
छठ सिर्फ सूर्य उपासना का पर्व नहीं, बल्कि उन आँसुओं का अर्घ्य है जो अपने राज्य से दूर रहकर भी अपनी मिट्टी से प्रेम करने वालों की आँखों से बहते हैं। यही वजह है कि छठ आज बिहारियों की आत्मा का प्रतीक बन चुका है—आस्था, संस्कृति और संघर्ष का संगम।
