जनजातीय संस्कृति ही भारत की आत्मा, विकसित भारत 2047 का रास्ता जनजातियों से होकर जाता है : डॉ. वर्णिका शर्मा
पंडित सुंदर लाल शर्मा जी की 145वीं जयंती पर आयोजित राष्ट्रीय संगोष्ठी के समापन अवसर पर डॉ. वर्णिका शर्मा ने कहा कि जनजातीय संस्कृति भारत की आत्मा है। जनजातियों को समझे बिना सच्चा विकास संभव नहीं है और विकसित भारत 2047 का संकल्प तभी पूर्ण होगा जब जनजातीय समाज को साथ लेकर आगे बढ़ा जाएगा।
UNITED NEWS OF ASIA. अमृतेश्वर सिंह, बिलासपुर। पंडित सुंदर लाल शर्मा जी की 145वीं जयंती एवं कुल उत्सव के अवसर पर पंडित सुंदर लाल शर्मा (मुक्त) विश्वविद्यालय, छत्तीसगढ़, बिलासपुर तथा जनजातीय शोध एवं अनुशीलन केंद्र, नई दिल्ली के संयुक्त तत्वावधान में आयोजित तीन दिवसीय राष्ट्रीय संगोष्ठी “भारतीय जनजातियाँ : सांस्कृतिक विरासत एवं महानायकों की भूमिका” का समापन गरिमामय वातावरण में संपन्न हुआ। समापन सत्र की मुख्य अतिथि छत्तीसगढ़ राज्य बाल अधिकार संरक्षण आयोग की अध्यक्षा डॉ. वर्णिका शर्मा रहीं।
डॉ. वर्णिका शर्मा ने अपने प्रेरक संबोधन में कहा कि किसी भी राष्ट्र को कमजोर करने का पहला प्रयास उसकी संस्कृति पर प्रहार के माध्यम से किया जाता है, जबकि भारत की जनजातियाँ ही हमारी सांस्कृतिक विरासत की सबसे मजबूत नींव हैं। उन्होंने कहा कि जनजातीय समाज को संजोना और समझना आज समय की सबसे बड़ी आवश्यकता है।
उन्होंने कहा कि जनजातियों को अक्सर कमतर आँका जाता है, जबकि किसी भी सर्वोच्च संख्या का मूल्य शून्य के बिना पूर्ण नहीं होता। अब समय आ गया है कि जनजातीय समाज को साथ लेकर आगे बढ़ा जाए, तभी भारत सच्चे अर्थों में विकास की ओर अग्रसर हो सकेगा।
डॉ. शर्मा ने हल्बा जनजाति का उदाहरण देते हुए कहा कि उन्हें केवल हल चलाने वाली जनजाति के रूप में देखना एक संकीर्ण दृष्टिकोण है। ऐतिहासिक रूप से यह जनजाति एक सशक्त और वीर सैनिक समुदाय रही है। उन्होंने कहा कि अब केवल विकास की बातें करने का नहीं, बल्कि गंभीर विचार-मंथन का समय है।
उन्होंने अपने संबोधन में “Know More to Grow More” का संदेश देते हुए कहा कि जब तक हम किसी समाज की तासीर और उसकी जड़ों को नहीं समझेंगे, तब तक उसके विकास की दिशा भी तय नहीं कर पाएंगे। जनजातीय समाज की मूल प्रवृत्ति किसी का अनुकरण करने की नहीं रही है, बल्कि हमें उनके साथ जुड़कर, उन्हें समझकर और उन्हें सहभागी बनाकर विकास की प्रक्रिया को आगे बढ़ाना होगा।
डॉ. वर्णिका शर्मा ने कहा कि जनजातियों की पहचान को सम्मान देना और उनकी संभावनाओं को अवसर प्रदान करना ही विकसित भारत 2047 के संकल्प की वास्तविक कुंजी है।
तीन दिवसीय इस राष्ट्रीय संगोष्ठी में देशभर की प्रमुख जनजातियों के प्रतिनिधियों से संवाद, पारंपरिक लोक नृत्य एवं गीतों की मनोहारी प्रस्तुतियाँ तथा जनजातीय महानायकों, पारंपरिक वेशभूषा और आभूषणों की प्रदर्शनी विशेष आकर्षण का केंद्र रहीं। आयोजन के दौरान कुल 11 सत्रों में 13 से अधिक वक्ताओं ने विचार साझा किए तथा 700 से अधिक प्रतिभागियों ने सक्रिय सहभागिता की।
कार्यक्रम में विश्वविद्यालय के कुलपति प्रो. बी. के. सारस्वत सहित अनेक शिक्षाविद, सामाजिक कार्यकर्ता और बड़ी संख्या में विद्यार्थी उपस्थित रहे।