बारनवापारा में वन भैंसों की नई पनाहगाह, छत्तीसगढ़ के राजकीय पशु का सफल संरक्षण
बलौदाबाजार के बारनवापारा अभयारण्य में छत्तीसगढ़ के राजकीय पशु वन भैंसों का सफल संरक्षण किया जा रहा है। असम से लाए गए वन भैंसों को सुरक्षित बाड़े में रखा गया और प्राकृतिक प्रजनन शुरू हो गया है। 2025 तक वन भैंसों की संख्या 6 से बढ़कर 10 हो गई। वन विभाग स्थानीय ग्रामीणों की मदद और वैज्ञानिक मॉनिटरिंग के माध्यम से इस संरक्षण कार्यक्रम को मॉडल बनाना चाहता है।
UNITED NEWS OF ASIA. चंद्रकांत वर्मा, बलौदाबाजार। छत्तीसगढ़ का राजकीय पशु – वन भैंस अब बारनवापारा अभयारण्य में सुरक्षित और संरक्षित जीवन पा रहा है। कभी विलुप्ति के कगार पर खड़ी यह प्रजाति अब धीरे-धीरे संख्या में बढ़ रही है। 2025 तक यहां वन भैंसों की संख्या छह से बढ़कर 10 हो गई है।
इतिहास और चयन:
छत्तीसगढ़ की वन भैंसों की ऐतिहासिक संख्या महासमुंद, गरियाबंद, कांकेर और कवर्धा के जंगलों में अधिक थी। लेकिन शिकार और आवासीय अतिक्रमण के कारण संख्या घट गई। वर्ष 2017 में राज्य वन्यप्राणी बोर्ड ने वन भैंसों को सुरक्षित पुनर्वास के लिए बारनवापारा अभयारण्य चुना।
असम से लाना और सुरक्षित बाड़े:
भारत सरकार से अनुमति लेने के बाद असम के मानस टाइगर रिजर्व से वन भैंसों को लाया गया। 2020 में एक नर और एक मादा, 2023 में चार मादा वन भैंसें लाकर 10 हेक्टेयर के सुरक्षित बाड़े में रखा गया।
प्रजनन और सफलता:
साल 2024 में प्राकृतिक प्रजनन शुरू हुआ और 2025 में तीन और बच्चे पैदा हुए। वनमण्डलाधिकारी गणवीर धम्मशील ने बताया कि वन भैंसों की संख्या बढ़ना संरक्षण की बड़ी उपलब्धि है।
स्थानीय सहभागिता और प्रशासन:
स्थानीय ग्रामीण, महिला समितियां और स्कूल बच्चों ने संरक्षण अभियान में सक्रिय भूमिका निभाई। वन विभाग की टीम दिन-रात वन भैंसों की निगरानी, भोजन-पानी और स्वास्थ्य देखभाल सुनिश्चित कर रही है।
भविष्य की योजना:
वन विभाग अगले पांच साल के लिए वन भैंस संरक्षण मास्टर प्लान बना रहा है, जिसमें अतिरिक्त बाड़े का निर्माण, डीएनए प्रोफाइलिंग, वैज्ञानिक मॉनिटरिंग और पर्यावरण पर्यटन से रोजगार सृजन शामिल हैं।
विशेषज्ञों का मत:
वन्यजीव विशेषज्ञ Dr. Gaurav Nihlani ने बारनवापारा को आने वाले वर्षों में पूरे छत्तीसगढ़ और मध्य भारत के लिए मॉडल बनने की संभावना बताया।
बारनवापारा अब छत्तीसगढ़ में वन भैंस संरक्षण का प्रमुख केंद्र बन चुका है, और यह राज्य की जैव-विविधता और वन्यजीवन संरक्षण की दिशा में महत्वपूर्ण उपलब्धि है।