बचेली में प्रवासी मजदूरों को मिली मजदूरी, बोनस अब भी अधर में — यूनिटी पत्रकार संघ ने उठाई आवाज
दंतेवाड़ा जिले के बचेली में बीआईओएम परियोजना के प्रवासी मजदूरों को लंबित मजदूरी का भुगतान तो हो गया है, लेकिन बोनस अब भी नहीं मिला है। यूनिटी पत्रकार संघ दंतेवाड़ा ने मजदूरों के हक में आवाज उठाते हुए बोनस भुगतान के लिए प्रशासन को पत्र भेजा है।
UNITED NEWS OF ASIA. असीम पाल, बचेली/दंतेवाड़ा | बचेली कॉम्प्लेक्स स्थित बीआईओएम परियोजना में काम कर रहे अंतरराज्यीय प्रवासी मजदूरों की लंबित मजदूरी का भुगतान आखिरकार हो गया है। ठेकेदार कंपनी मेसर्स के.पी.टी.एल. ने यह भुगतान तब किया जब यूनिटी पत्रकार संघ दंतेवाड़ा द्वारा लगातार उठाई जा रही आवाज़ ने प्रशासन को सक्रिय कर दिया। लेकिन मजदूरों की राहत अधूरी है — क्योंकि बोनस की राशि अभी भी उनके खाते में नहीं पहुंची है।
यूनिटी पत्रकार संघ (पंजीयन क्रमांक 122202558545) ने 1 नवम्बर को बीआईओएम के मुख्य महाप्रबंधक (वर्क्स) को एक पत्र भेजकर मजदूरों का बोनस तत्काल दिलाने की मांग की है। पत्र में साफ तौर पर लिखा गया है कि मेसर्स के.पी.टी.एल. और उसके पेटी ठेकेदार मेसर्स टेकेस्के द्वारा बोनस न देना श्रम कानूनों का उल्लंघन है।
संघ के अध्यक्ष विनोद कुमार वर्मा ने कहा कि मजदूरों की मेहनत और अधिकारों की अनदेखी बर्दाश्त नहीं की जाएगी। उन्होंने स्पष्ट कहा, “अगर बोनस पर जल्द कार्यवाही नहीं होती है, तो हम श्रम विभाग और लेबर कमिश्नर से न्याय की गुहार लगाएंगे।” वर्मा ने यह भी तंज कसा कि शायद नेताओं को मजदूरों की परेशानी इसलिए नहीं दिख रही क्योंकि फिलहाल कोई चुनाव नहीं है।
यह बयान न केवल प्रशासन की निष्क्रियता पर सवाल उठाता है बल्कि मजदूर वर्ग के प्रति बढ़ती उपेक्षा को भी उजागर करता है।
स्थानीय सूत्रों के अनुसार, मजदूरों ने कई बार ठेकेदारों से बोनस की मांग की, लेकिन उन्हें “जल्द मिलेगा” कहकर टाल दिया गया। अब यूनिटी पत्रकार संघ की पहल के बाद यह मामला सार्वजनिक हुआ है।
प्रश्न यह भी उठता है कि क्या प्रशासन ठेकेदारों पर दबाव बनाकर मजदूरों को उनका पूरा हक दिलाएगा, या यह मामला श्रम विभाग तक पहुंचने के बाद ही आगे बढ़ेगा?
संघ ने चेतावनी दी है कि यदि अगले कुछ दिनों में कोई ठोस कार्रवाई नहीं होती, तो वे मजदूरों के साथ मिलकर धरना-प्रदर्शन करेंगे। यह मामला अब केवल मजदूरी का नहीं, बल्कि मजदूरों के सम्मान और न्याय का बन चुका है — जहां सवाल केवल रुपये का नहीं, बल्कि संवेदनशीलता और ज़िम्मेदारी का है।
