भारत की थाली में रोटी बनी संस्कृति और परंपरा की पहचान
रोटी का इतिहास हजारों साल पुराना है, जिसकी शुरुआत प्राचीन मिस्र से हुई थी। मिस्रवासियों ने न सिर्फ रोटी बनाना सिखाया बल्कि शहद, तेल और दाल जैसे खाद्य पदार्थों की तकनीक भी विकसित की। आज रोटी भारतीय थाली का अभिन्न हिस्सा बन चुकी है और संस्कृति, परंपरा व आत्मीयता का प्रतीक है।
UNITED NEWS OF ASIA. नई दिल्ली । भारत में रोटी सिर्फ एक भोजन नहीं, बल्कि संस्कृति, परंपरा और भावनाओं का प्रतीक है। हर भारतीय की थाली में रोटी की जगह उतनी ही पक्की है जितनी हमारे इतिहास और जीवन में इसकी जड़ें। लेकिन क्या आपने कभी सोचा है कि रोटी की शुरुआत कहां से हुई थी? इसका जवाब है — प्राचीन मिस्र।
हाल ही में मिस्र में खुले ग्रैंड इजिप्शियन म्यूजियम ने एक बार फिर दुनिया को बताया कि मिस्रवासी सिर्फ कला और वास्तुकला के लिए ही नहीं, बल्कि भोजन संस्कृति के लिए भी अग्रणी थे। इस म्यूजियम में मिले पुरातात्विक साक्ष्य बताते हैं कि दुनिया की पहली रोटी मिस्र में बनी थी।
फूड टेक्नोलॉजी इंस्टीट्यूट की रिसर्चर डॉ. मनाल इज्जेदीन के अनुसार, मिस्रवासी सबसे पहले लोग थे जिन्होंने रोटी बनाई और दुनिया को इसे पकाने का तरीका सिखाया। उन्होंने गेहूं और जौ को पीसकर आटा बनाया और फिर मिट्टी के तंदूर में रोटी तैयार की। यही रोटी आज अलग-अलग रूपों में पूरी दुनिया में खाई जाती है — कहीं इसे ब्रेड कहा गया, कहीं चपाती, तो कहीं फ्लैटब्रेड।
इतना ही नहीं, मिस्रवासियों ने शहद निकालने और तेल बनाने की तकनीक भी विकसित की। वे मधुमक्खियों से शहद निकालने वाले पहले लोग थे और अरंडी व जैतून का तेल दवाइयों और भोजन में उपयोग करते थे। मसूर की दाल का सूप भी उन्हीं की देन है, जिसे पिरामिड बनाने वाले मजदूरों को ताकत देने के लिए दिया जाता था।
मिस्र का आहार सब्जियों और मछलियों पर आधारित था — वे तारो, लेट्यूस, भिंडी और किशमिश जैसे खाद्य पदार्थों का सेवन करते थे। इस संतुलित आहार ने उन्हें मजबूत और सक्रिय बनाए रखा।
भारत में रोटी ने सिर्फ पेट नहीं भरा बल्कि समाज को जोड़ा। चपाती यहां सिर्फ अनाज नहीं बल्कि आध्यात्मिक और सामाजिक एकता का प्रतीक है। चाहे मंदिर का प्रसाद हो या घर का भोजन — रोटी ने हमेशा भारतीय जीवन को अपनी सादगी और स्वाद से समृद्ध किया है।
इस तरह, रोटी की कहानी मिस्र से शुरू होकर भारत की थाली तक पहुंची — और आज यह पूरी दुनिया में साझे स्वाद और संस्कृति की पहचान बन चुकी है।
