लखीसराय विधानसभा सीट: अफवाहों से जंग जीतने की रणनीति, विजय सिन्हा ने कैसे साधा जीत का गणित
लखीसराय में डिप्टी सीएम विजय सिन्हा ने अफवाहों और विरोधी चालों का जवाब रणनीति, संवाद और एकता से दिया। एनडीए की संयुक्त रैलियों, नीतीश कुमार और अमित शाह के समर्थन ने सियासी समीकरण पलट दिए हैं। अब यह सीट ‘विजय की वापसी’ का प्रतीक बनकर उभर रही है।
UNITED NEWS OF ASIA. लखीसराय। बिहार के लखीसराय विधानसभा क्षेत्र में इस बार का चुनाव सियासी रणनीति और संगठनात्मक एकता का बड़ा उदाहरण बन गया है। कुछ सप्ताह पहले तक ऐसा लग रहा था कि डिप्टी सीएम विजय सिन्हा अपनी ही सीट पर विरोधी अफवाहों और अंदरूनी असंतोष से जूझ रहे हैं, लेकिन अंतिम हफ्ते में हालात पूरी तरह बदल गए।
विपक्ष ने यह अफवाह फैलाई थी कि सूर्यगढ़ा से एनडीए प्रत्याशी रामानंद मंडल और विजय सिन्हा के बीच मतभेद हैं। इस खबर ने सोशल मीडिया पर हलचल मचा दी थी। मगर विजय सिन्हा ने जवाबी रणनीति अपनाते हुए रामानंद मंडल के साथ संयुक्त रैलियां कीं और साफ संदेश दिया—एनडीए एकजुट है। इससे कार्यकर्ताओं में नया जोश लौटा और विपक्ष की चाल निष्फल हो गई।
इसके बाद मुख्यमंत्री नीतीश कुमार की लखीसराय में हुई सभा ने माहौल पूरी तरह बदल दिया। नीतीश ने सार्वजनिक रूप से कहा, “विजय सिन्हा मेरे पुराने साथी हैं, उन्हें फिर से जिताना है।” इस बयान ने जेडीयू कार्यकर्ताओं और ओबीसी-ईबीसी समुदायों में एकता का संदेश दिया।
फिर आया केंद्रीय गृह मंत्री अमित शाह का शो ऑफ स्ट्रेंथ। शाह ने विजय सिन्हा को “बिहार की राजनीति का भविष्य” बताते हुए जनसभा में एनडीए कार्यकर्ताओं में जोश भर दिया। वहीं ललन सिंह और गिरिराज सिंह की संयुक्त उपस्थिति ने भूमिहार वोटों को एनडीए के पक्ष में एकजुट किया।
विश्लेषकों का मानना है कि विजय सिन्हा ने इस चुनाव को “अफवाहों से रणनीति तक” की लड़ाई में बदल दिया है। लखीसराय अब सिर्फ एक सीट नहीं, बल्कि संगठन, संवाद और एकता की जीत का प्रतीक बन चुका है। 14 नवंबर को जनता तय करेगी कि यह “विजय की वापसी” है या “विजय का इतिहास”।
