बस्तर दशहरा: 'जोगी बिठाई' रस्म के साथ शांतिपूर्ण पर्व की शुरुआत, नौ दिन की तपस्या जारी
जगदलपुर में विश्व प्रसिद्ध बस्तर दशहरा की शुरुआत सदियों पुरानी परंपरा 'जोगी बिठाई' के साथ हुई। हल्बा समुदाय का एक युवक नौ दिनों तक उपवास और योगासन की मुद्रा में बैठकर दशहरा को शांतिपूर्ण रूप से संपन्न कराने की तपस्या कर रहा है। यह रस्म लगभग 600 वर्षों से निभाई जा रही है और इसे पौराणिक कथा के साथ धार्मिक श्रद्धा का प्रतीक माना जाता है।

UNITED NEWS OF ASIA. महेश राव, जगदलपुर/बस्तर। विश्व प्रसिद्ध बस्तर दशहरा पर्व की शुरुआत के साथ ही एक सदियों पुरानी और अनूठी परंपरा 'जोगी बिठाई' भी सम्पन्न हो गई। इस अवसर पर बड़े आमाबाल के रघुनाथ नाग जोगी बनकर नौ दिन की कठोर तपस्या पर बैठ गए।
सिरहासार भवन में आयोजित जोगी बिठाई रस्म में जगदलपुर के विधायक किरण देव, बस्तर दशहरा समिति के उपाध्यक्ष बलराम मांझी, नगर निगम अध्यक्ष खेमसिंह देवांगन सहित मांझी, चालकी, नाइक, पाइक, मेंबर, मेंबरिन और बड़ी संख्या में श्रद्धालु उपस्थित थे।
यह रस्म दशहरा को बिना किसी बाधा के शांतिपूर्ण तरीके से संपन्न कराने के लिए निभाई जाती है। इस वर्ष भी हल्बा समुदाय का युवक नौ दिनों तक उपवास रखकर फल और दूध का सेवन करता है।
'जोगी बिठाई' रस्म क्या है?
यह परंपरा लगभग 600 सालों से निभाई जा रही है। जोगी पितृमोक्ष अमावस्या के दिन सिरहासार भवन पहुंचता है और दशहरा की शुरुआत से नौ दिनों तक तपस्या करता है।
रस्म का तरीका:
जोगी पितरों का श्राद्ध करता है, नए वस्त्र पहनता है, मावली माता मंदिर में तलवार की पूजा करता है और फिर योगासन की मुद्रा में कुंड में बैठ जाता है। बुरी नजर से बचाने के लिए चारों ओर पर्दा लगाया जाता है।
पौराणिक कथा:
कहा जाता है कि कई साल पहले, दशहरा के दौरान एक हल्बा युवक ने निर्जल उपवास कर तपस्या की थी। जब तत्कालीन महाराजा को पता चला, तो उन्होंने युवक से मिलने गए और सिरहासार भवन का निर्माण करवाया। तब से यह परंपरा आज तक उसी सम्मान और श्रद्धा के साथ निभाई जा रही है।
आज भी यह रस्म बस्तर दशहरा को न केवल एक भव्य पर्व बल्कि एक गहरी आध्यात्मिक और सांस्कृतिक विरासत के रूप में प्रस्तुत करती है।