“अंग्रेजी स्वीकार्य, तो भारतीय भाषाएँ क्यों नहीं?” शिक्षा मंत्री धर्मेंद्र प्रधान ने NEP की भाषा नीति पर कही बड़ी बात
शिक्षा मंत्री धर्मेंद्र प्रधान ने कहा कि NEP 2020 में किसी भाषा को थोपने का प्रयास नहीं है, इसका मकसद भारतीय भाषाओं को बढ़ावा देना है।

UNITED NEWS OF ASIA. चेन्नई। केंद्रीय शिक्षा मंत्री धर्मेंद्र प्रधान ने IIT मद्रास में आयोजित एक कार्यक्रम के दौरान राष्ट्रीय शिक्षा नीति (NEP) की भाषा नीति का जोरदार बचाव किया। उन्होंने स्पष्ट कहा कि किसी भी छात्र पर कोई भाषा थोपने का सवाल ही नहीं है।
प्रधान ने कहा कि कक्षा 1 और 2 के बच्चों को मातृभाषा व एक अतिरिक्त भाषा सीखनी होगी, जबकि कक्षा 6 से 10 तक के विद्यार्थियों को तीन भाषाएँ सीखनी होंगी, जिनमें उनकी मातृभाषा और दो अन्य भाषाएँ शामिल होंगी।
उन्होंने DMK की आलोचनाओं पर प्रतिक्रिया देते हुए कहा, “वे समाज में भ्रम फैला रहे हैं। यूपी का बच्चा हिंदी में पढ़ सकता है और अतिरिक्त भाषा के रूप में अंग्रेजी, मराठी, तमिल या कोई भी अन्य भाषा चुन सकता है।”
शिक्षा मंत्री ने यह भी कहा कि देश में सिर्फ 10% लोग अंग्रेजी बोलते हैं, जबकि अधिकांश लोग स्थानीय भाषाओं में संवाद करते हैं। उन्होंने सवाल उठाया, “अगर अंग्रेजी स्वीकार्य है, तो किसी अन्य भारतीय भाषा को स्वीकार करने में क्या दिक्कत है?”
प्रधान ने पूर्व आंध्र प्रदेश सीएम चंद्रबाबू नायडू का हवाला देते हुए कहा कि उन्होंने कभी छात्रों को 10 भाषाएँ पढ़ाने का प्रस्ताव दिया था।
सामग्र शिक्षा अभियान (SSA) फंड रोकने के विवाद पर उन्होंने कहा कि यह केवल तभी जारी होगा जब MoUs पर सहमति बनेगी। “यह आपसी समझौता होना चाहिए, राजनीतिक प्राथमिकता थोपी नहीं जा सकती,” उन्होंने स्पष्ट किया।
अंत में शिक्षा मंत्री ने दोहराया कि NEP 2020 का मकसद किसी भी भाषा को थोपना नहीं बल्कि सभी भारतीय भाषाओं को बढ़ावा देना और छात्रों को बहुभाषी बनाना है।