मनुष्य का समस्त प्रयास सुख की खोज में: श्री अग्रसेनधाम रायपुर में जीवन विद्या शिविर आरंभ

रायपुर के श्री अग्रसेनधाम में अभ्युदय संस्थान अछोटी द्वारा आयोजित निःशुल्क जीवन विद्या शिविर 8 अक्टूबर से शुरू हुआ। प्रबोधक सोमदेव त्यागी ने कहा कि मनुष्य का समस्त प्रयास सुख की प्राप्ति के लिए होता है। उन्होंने जीवन के प्रयोजन, नियमबद्ध सृष्टि, संज्ञानशीलता, पति-पत्नी की पूरकता और बच्चों के प्रति स्नेहपूर्ण व्यवहार पर विस्तृत विचार रखे। शिविर 13 अक्टूबर तक प्रतिदिन चार सत्रों में चलेगा।

Oct 9, 2025 - 11:55
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मनुष्य का समस्त प्रयास सुख की खोज में: श्री अग्रसेनधाम रायपुर में जीवन विद्या शिविर आरंभ

UNITED NEWS OF ASIA. अमृतेश्वर सिंह, रायपुर। श्री अग्रसेनधाम रायपुर में अभ्युदय संस्थान अछोटी के तत्वावधान में 8 अक्टूबर से निःशुल्क जीवन विद्या शिविर की शुरुआत हुई। शिविर का संचालन श्रद्धेय अग्रहार नागराज द्वारा प्रतिपादित अस्तित्वमूलक मानव केंद्रित चिंतन और सह-अस्तित्ववाद मध्यस्थ दर्शन पर आधारित है। यह शिविर 13 अक्टूबर तक प्रतिदिन सुबह 9 बजे से शाम 6 बजे तक चार सत्रों में आयोजित होगा।

प्रबोधक सोमदेव त्यागी का उद्बोधन
शिविर के दूसरे दिन प्रबोधक सोमदेव त्यागी ने कहा कि मनुष्य जो कुछ भी करता है वह सुख की प्राप्ति के लिए करता है। दुःख कम करने और सुख बढ़ाने के प्रयास ही उसकी समस्त गतिविधियों का आधार हैं। उन्होंने कहा कि इंद्रियों के माध्यम से मिलने वाला सुख सीमित है, जबकि मानव असीमित सुख, शांति और आनंद की खोज करता है, जो केवल आत्मबोध और संज्ञानशीलता से संभव है।

सृष्टि के नियम और मानव की अव्यवस्था
त्यागी ने कहा कि परमाणु से लेकर ग्रह-नक्षत्र तक सब कुछ नियम से चलता है, लेकिन मानव अव्यवस्थित है क्योंकि वह स्वयं को नहीं पहचानता। धन, पद और बल परिवर्तनशील हैं और तृप्ति नहीं दे सकते। सच्चा सुख दूसरों के लिए उपयोगी होने और समाज के लिए कार्य करने में है।

जीवन जीने की संज्ञानशीलता
उन्होंने तीन स्थितियों – संवेदनहीनता, संवेदनशीलता और संज्ञानशीलता पर प्रकाश डालते हुए कहा कि संज्ञानशील व्यक्ति ही वास्तविक सुख, शांति और आनंद प्राप्त कर सकता है। यही सम्मान और संतोष का मार्ग है।

पति-पत्नी की पूरकता और परिवार
त्यागी ने कहा कि पति-पत्नी समान नहीं बल्कि पूरक हैं। आधुनिक समाज में समानता का गलत अर्थ लिया जाता है, जिससे परिवार टूटने लगते हैं। वास्तविक सुख तब है जब पति-पत्नी अपनी-अपनी पूरक भूमिकाओं को समझते हुए परिवार का संचालन करें।

बच्चों की परवरिश
उन्होंने कहा कि बच्चों को डांटने या कठोर व्यवहार से सुधारना संभव नहीं है। बच्चा प्यार और स्नेह से सीखता है। कठोरता से बच्चों का स्वभाव रूढ़ होता है और वे विद्रोही बनते हैं। माता-पिता को पुरानी मान्यताओं को बदलकर बच्चों को समझाने और मार्गदर्शन देने की आवश्यकता है।

जीवन का मूल प्रश्न


त्यागी ने कहा कि मानव जीवन के सामने दो प्रश्न हैं – क्यों जीना है और कैसे जीना है। भारतीय परंपरा ने "क्यों जीना है" पर गहन ध्यान दिया जबकि पाश्चात्य विज्ञान ने "कैसे जीना है" को सुविधाजनक बनाया। जब इन दोनों का संतुलन समझ लिया जाए तो जीवन सरल और सुखी हो जाता है।