शराबबंदी मामलों में सुप्रीम कोर्ट की बिहार सरकार को कड़ी फटकार, कहा- सभी आरोपितों को जमानत क्यों न दे दें

सुप्रीम कोर्ट ने बिहार सरकार को शराबबंदी मामलों में विशेष अदालतों के गठन में देरी के लिए कड़ी फटकार लगाई और पूछा कि जब तक बुनियादी ढांचा तैयार नहीं हो जाता, तब तक सभी आरोपितों को जमानत क्यों न दे दी जाए। अदालत ने बताया कि 2016 से अब तक 3.78 लाख से अधिक मामले दर्ज किए जा चुके हैं, लेकिन केवल 4,000 मामलों का ही निस्तारण हुआ है। न्यायपीठ ने सरकार को एक सप्ताह का समय दिया है कि वह कार्यकारी मजिस्ट्रेटों को सजा देने की शक्तियों पर स्पष्टता लाए।

Oct 5, 2025 - 15:21
 0  6
शराबबंदी मामलों में सुप्रीम कोर्ट की बिहार सरकार को कड़ी फटकार, कहा- सभी आरोपितों को जमानत क्यों न दे दें

UNITED NEWS OF ASIA. नई दिल्ली। बिहार में शराबबंदी कानून लागू हुए आठ साल से अधिक हो चुके हैं, लेकिन इससे संबंधित मामलों की सुनवाई के लिए विशेष अदालतों का गठन अभी तक नहीं हो पाया है। इस देरी पर सोमवार को सुप्रीम कोर्ट ने राज्य सरकार को कड़ी फटकार लगाते हुए कहा कि जब तक बुनियादी ढांचा तैयार नहीं हो जाता, तब तक सभी आरोपितों को जमानत पर रिहा क्यों न कर दिया जाए।

जस्टिस संजय किशन कौल की अध्यक्षता वाली पीठ ने कहा कि 2016 में बिहार मद्यनिषेध और उत्पाद अधिनियम लागू किया गया था, लेकिन आज तक विशेष अदालतों के लिए जमीन तक आवंटित नहीं की गई है। पीठ ने सवाल उठाया, “अगर सरकार अदालतों का गठन नहीं कर पा रही है, तो मौजूदा सरकारी भवनों को ही खाली क्यों नहीं कराया जाता?”

सुप्रीम कोर्ट ने बताया कि अब तक 3.78 लाख से अधिक आपराधिक मामले दर्ज किए जा चुके हैं, लेकिन केवल 4,000 मामलों का ही निस्तारण हुआ है। अदालत ने चेतावनी दी कि ऐसे लंबित मामलों से न्यायपालिका पर भारी बोझ बढ़ता है और समाज पर भी इसका व्यापक प्रभाव पड़ता है।

पीठ ने अधिनियम की उस धारा पर भी सवाल उठाया जिसमें कार्यकारी मजिस्ट्रेटों को अभियुक्तों को सजा देने का अधिकार दिया गया है। इस पर एमिकस क्यूरी गौरव अग्रवाल ने बताया कि पटना हाईकोर्ट ने भी इस पर अपनी आपत्ति दर्ज कराई है।

सुप्रीम कोर्ट ने बिहार सरकार को एक सप्ताह का समय दिया है ताकि वह इस मुद्दे पर आवश्यक निर्देश प्राप्त कर सके और अदालत को बता सके कि आगे क्या कदम उठाए जाएंगे। अदालत ने स्पष्ट किया कि जब तक न्यायिक बुनियादी ढांचा नहीं बनता, तब तक कानून के प्रभावी कार्यान्वयन पर सवाल बने रहेंगे।