राफेल बनाम Eurofighter: FCAS प्रोजेक्ट पर फ्रांस-जर्मनी विवाद तेज, क्या भारत बनाएगा छठी पीढ़ी का जेट?

FCAS प्रोजेक्ट में फ्रांस और जर्मनी के बीच विवाद तेज हो गया है। यूरोप के छठी पीढ़ी के लड़ाकू विमान प्रोजेक्ट पर संकट के बीच भारत के लिए नई तकनीक हासिल करने का अवसर बन सकता है। जानिए FCAS विवाद और भारत के विकल्प।

Sep 21, 2025 - 17:44
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राफेल बनाम Eurofighter: FCAS प्रोजेक्ट पर फ्रांस-जर्मनी विवाद तेज, क्या भारत बनाएगा छठी पीढ़ी का जेट?

UNITED NEWS OF ASIA. बर्लिन/पेरिस। यूरोप के सबसे बड़े छठी पीढ़ी के लड़ाकू विमान प्रोजेक्ट FCAS (Future Combat Air System) में फ्रांस और जर्मनी के बीच विवाद तेज हो गया है। इस प्रोजेक्ट में फ्रांस, जर्मनी और स्पेन शामिल हैं। शुरुआत में इसकी लागत 100 बिलियन यूरो तय थी और 2040 तक नेक्स्ट जेनरेशन फाइटर जेट तैयार करने का लक्ष्य रखा गया था।

हालांकि, डसॉल्ट एविएशन (फ्रांस) और एयरबस (जर्मनी/स्पेन) के बीच काम के बंटवारे को लेकर विवाद बढ़ गया है। डसॉल्ट का दावा है कि नेक्स्ट-जेनरेशन फाइटर डिजाइन का अनुभव केवल उसके पास है, जबकि एयरबस किसी एक कंपनी को हावी नहीं होने देना चाहता।

जर्मनी का विकल्प खोजने का प्रयास
पॉलिटिको की रिपोर्ट के अनुसार, अगर इस साल के अंत तक विवाद सुलझा नहीं, तो जर्मनी नए अंतरराष्ट्रीय साझेदार पर विचार कर सकता है। संभावित विकल्पों में स्वीडन और यूके शामिल हो सकते हैं। लेकिन ब्रिटेन पहले से GCAP प्रोजेक्ट पर जापान और इटली के साथ काम कर रहा है, जिससे जुड़ना चुनौतीपूर्ण है।

भारत के लिए अवसर
भारत वर्तमान में AMCA (Advanced Medium Combat Aircraft) पर काम कर रहा है, जिसका सेवा में आने का समय 2035 से पहले कम है। चीन पहले से J-20 और J-35A जैसे पांचवीं और छठी पीढ़ी के जेट विकसित कर चुका है। पाकिस्तान भी J-35A हासिल करने की तैयारी में है।

पूर्व भारतीय वायुसेना अधिकारी एयर मार्शल (सेवानिवृत्त) अनिल चोपड़ा के अनुसार, "भारत को छठी पीढ़ी की तकनीकों पर अभी से काम शुरू करना होगा। FCAS जैसे प्रोजेक्ट में शामिल होने से तकनीकी लाभ और लागत का जोखिम साझा किया जा सकेगा।" उन्होंने चेतावनी दी कि भारत को पहले FGFA प्रोजेक्ट से वर्क शेयर विवाद के कारण बाहर निकलने का अनुभव है, इसलिए नई साझेदारी सोच-समझकर करनी होगी।

फ्रांस और जर्मनी के बीच FCAS विवाद भारत के लिए नई तकनीक हासिल करने और वैश्विक लड़ाकू विमान बाजार में कदम रखने का अवसर प्रस्तुत करता है। विशेषज्ञों का मानना है कि भारत अगर समय रहते इस प्रोजेक्ट में शामिल होता है, तो चीन और पाकिस्तान के बढ़ते खतरे के बीच अपनी तकनीकी दक्षता बढ़ा सकता है।