बस्तर दशहरा: सदियों पुरानी 'जोगी बिठाई' रस्म शांतिपूर्ण पर्व की गारंटी
जगदलपुर में विश्व प्रसिद्ध बस्तर दशहरा के अवसर पर सदियों पुरानी 'जोगी बिठाई' रस्म संपन्न हुई। हल्बा समुदाय का एक युवक नौ दिनों तक उपवास और योगासन में बैठकर पर्व की शांति सुनिश्चित करता है। रस्म का उद्देश्य दशहरा का भव्य आयोजन बिना विघ्न के सम्पन्न करना है और इसे लगभग 600 वर्षों से निभाया जा रहा है।

UNITED NEWS OF ASIA. रामकुमार भारद्वाज, जगदलपुर। विश्व प्रसिद्ध बस्तर दशहरा के अवसर पर जगदलपुर में सदियों पुरानी और अनूठी परंपरा 'जोगी बिठाई' संपन्न हुई। इस रस्म में बड़े आमाबाल के रघुनाथ नाग जोगी बनकर नौ दिन की कठोर तपस्या पर बैठे। सिरहासार में आयोजित रस्म में विधायक किरण देव, बस्तर दशहरा समिति के उपाध्यक्ष बलराम मांझी, नगर निगम अध्यक्ष खेमसिंह देवांगन, मांझी, चालकी, नाइक, पाइक, मेंबर, मेंबरिन और बड़ी संख्या में श्रद्धालु उपस्थित रहे।
'जोगी बिठाई' की परंपरा:
हल्बा जाति के एक पुरुष द्वारा लगभग 600 वर्षों से निभाई जा रही यह रस्म दशहरा के शांतिपूर्ण आयोजन को सुनिश्चित करती है। जोगी केवल फल और दूध का सेवन करते हुए नौ दिनों तक उपवास में रहते हैं और योगासन की मुद्रा में तपस्या करते हैं।
रस्म का पालन कैसे होता है:
जोगी पितृmoक्ष अमावस्या के दिन सिरहासार भवन पहुँचता है। उसे नए वस्त्र पहनाए जाते हैं, मावली माता मंदिर ले जाया जाता है और तलवार की पूजा करवाई जाती है। इसके बाद जोगी योगासन में बैठकर नौ दिनों तक पर्व की शांति के लिए तपस्या करते हैं।
पौराणिक कथा:
कहा जाता है कि दशहरा के दौरान एक हल्बा युवक ने निर्जल उपवास और तपस्या के माध्यम से पर्व के सफल आयोजन की दिशा में कदम उठाया। तत्कालीन महाराजा प्रसन्न होकर सिरहासार भवन का निर्माण करवाया और परंपरा को जारी रखने का आदेश दिया।
आज भी यह रस्म उसी श्रद्धा और सम्मान के साथ निभाई जाती है, जो बस्तर दशहरा को एक भव्य धार्मिक और सांस्कृतिक विरासत बनाती है।