इस दिवाली महिला स्वसहायता समूहों के मिट्टी के दीयों से जगमगाएंगे घर, 1 लाख 11 हजार 500 की बिक्री से मिली खुशहाली

गौरेला-पेंड्रा-मरवाही की महिला स्वसहायता समूहों ने दीपावली पर 70 हजार मिट्टी के दीये बनाए। अब तक 1.11 लाख रुपये की बिक्री से महिलाएं हुईं आत्मनिर्भर और खुशहाल।

Oct 15, 2025 - 16:20
Oct 15, 2025 - 16:43
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इस दिवाली महिला स्वसहायता समूहों के मिट्टी के दीयों से जगमगाएंगे घर, 1 लाख 11 हजार 500 की बिक्री से मिली खुशहाली

UNITED NEWS OF ASIA. गौरेला-पेंड्रा-मरवाही। प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी के आत्मनिर्भर भारत के संकल्प को साकार करने की दिशा में गौरेला-पेंड्रा-मरवाही जिले की महिलाएं मिसाल बन रही हैं। दीपावली के अवसर पर जिले के महिला स्वसहायता समूहों ने मिट्टी के कलात्मक दीये, अगरबत्ती, बाती और तोरण बनाकर स्थानीय बाजारों में बिक्री शुरू कर दी है। इससे न केवल इन महिलाओं को रोजगार मिला है, बल्कि आत्मनिर्भरता की नई राह भी खुली है।

जिला प्रशासन एवं ग्रामीण आजीविका मिशन के सहयोग से पेंड्रा जनपद की पांच महिला स्वसहायता समूहों की 12 महिलाओं ने मिलकर अब तक 70 हजार मिट्टी के दीये तैयार किए हैं। इन दीयों और पूजा सामग्री की बिक्री स्थानीय हाट बाजारों — कोटमी, नवागांव और कोड़गार में जोरों पर है। समूह द्वारा तैयार दीयों को रायपुर में आयोजित सरस मेला में भी प्रदर्शित और बेचा जा रहा है।

अब तक समूहों ने 1 लाख 11 हजार 500 रुपये की बिक्री की है। ग्राम झाबर निवासी समूह सदस्य मती क्रांति पुरी ने बताया कि उन्हें इस कार्य से करीब 9 हजार रुपये का लाभ हुआ है। उन्होंने कहा, “यह दिवाली हमारे लिए खास है। मिट्टी के दीये बनाकर न केवल परिवार की मदद कर पा रही हूं बल्कि यह काम हमें आत्मसम्मान और खुशी भी दे रहा है।”

ब्लॉक मिशन प्रबंधक सु मंदाकिनी कोसरिया ने बताया कि इस पहल से पांच महिला स्वसहायता समूहों के परिवारों को सीधा आर्थिक लाभ मिल रहा है। महिलाएं न केवल आत्मनिर्भर बन रही हैं, बल्कि परिवार की आर्थिक स्थिति सुधारने में भी सक्षम हो रही हैं।

यह पहल न केवल स्थानीय स्तर पर रोजगार सृजन का माध्यम बनी है, बल्कि पर्यावरण के अनुकूल पारंपरिक दीयों के उपयोग को भी बढ़ावा दे रही है। आधुनिक बिजली के दीयों की जगह मिट्टी के दीयों की चमक एक बार फिर लौट रही है।

इस प्रकार, ग्रामीण आजीविका मिशन की सहायता से शुरू की गई यह पहल महिलाओं के आर्थिक सशक्तिकरण, स्वावलंबन और परंपरा को संरक्षित करने का सुंदर उदाहरण पेश कर रही है।