काछनगादी पूजा में काछनदेवी ने दी बस्तर दशहरा पर्व के निर्विघ्न आयोजन की अनुमति
जगदलपुर में सम्पन्न काछनगादी पूजा विधान में काछनदेवी ने मिरगान समाज की कुमारी पर सवार होकर बस्तर दशहरा पर्व के निर्विघ्न आयोजन की अनुमति और आशीर्वाद दिया। इस अवसर पर स्थानीय जनप्रतिनिधि, प्रशासनिक अधिकारी और हजारों श्रद्धालु मौजूद रहे।

UNITED NEWS OF ASIA. रामकुमार भारद्वाज, जगदलपुर| विश्व प्रसिद्ध बस्तर दशहरा पर्व का एक महत्वपूर्ण विधान काछनगादी पूजा रविवार को सम्पन्न हुआ। इस अवसर पर काछनदेवी ने मिरगान समाज की कुंवारी कन्या पर सवार होकर बेल के कांटों से बने झूले में झूलकर दशहरे के निर्विघ्न आयोजन की अनुमति और आशीर्वाद प्रदान किया।
काछनगादी रस्म का महत्व:
बस्तर दशहरा में यह रस्म अत्यंत महत्वपूर्ण मानी जाती है। मान्यता है कि रण की देवी काछनदेवी, आश्विन अमावस्या के दिन पनका जाति की एक कुमारी कन्या के शरीर में प्रवेश करती हैं। यह कन्या विशेष झूले पर लेटकर दशहरे के सफल आयोजन की अनुमति देती है। इस वर्ष देवी का स्वरूप 10 वर्षीय पीहू दास में प्रकट हुआ।
उपस्थित गणमान्य व्यक्ति और प्रशासन:
इस अवसर पर वन मंत्री केदार कश्यप, सांसद एवं अध्यक्ष महेश कश्यप, विधायक किरण देव, महापौर संजय पांडे, कमिश्नर बस्तर डोमन सिंह, आईजी सुंदरराज पी, कलेक्टर हरिस एस, पुलिस अधीक्षक शलभ सिन्हा सहित अनेक प्रशासनिक अधिकारी, परंपरागत सदस्य और हजारों श्रद्धालु मौजूद थे।
परंपराओं का पालन:
काछनगुड़ी को फूलों और रोशनी से सजाया गया। पुजारी और राज परिवार के सदस्य परंपरानुसार देवी से अनुमति लेने पहुंचे। जैसे ही काछनदेवी ने झूले पर लेटकर अनुमति दी, पूरा क्षेत्र मां दन्तेश्वरी के जयकारों और आतिशबाजी से गूंज उठा।
रैला देवी की पूजा:
काछनगादी पूजा विधान के पश्चात जगदलपुर के गोल बाजार में रैला देवी की पारंपरिक पूजा विधिवत सम्पन्न हुई। इसमें स्थानीय जनप्रतिनिधि, जिला प्रशासन के अधिकारी और बड़ी संख्या में श्रद्धालु शामिल हुए।
बस्तर दशहरा पर्व यहां के विभिन्न समाजों में सामाजिक समरसता का प्रतीक है और परंपरागत दायित्व सभी समाजों द्वारा सहकार की भावना के साथ निभाए जाते हैं।