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क्या है ओटीटी प्लेटफॉर्म और किस तरह यहां पैसा कमाती हैं फिल्में?

हाल ही में विद्या बालन (विद्या बालन) स्टारर संभावना बायोपिक फिल्म (बायोपिक मूवी) शकुंतला देवी एमेजॉन प्राइम पर जारी की गई। इससे पहले भी प्राइम के अलावा, नेटफ्लिक्स (नेटफ्लिक्स), हॉटस्टार (हॉटस्टार) जैसे कई ओटीटी प्लेटफॉर्म पर दिलझरा या गुलाबो सिताबो जैसी मेनस्ट्रीम की कई फिल्मों को ग्लोबल ग्रुप (वर्ल्डवाइड रिलीज) मिल गया है। सीधा कारण है कि कोरोना वायरस (कोरोना वायरस) महामारी के चलते लंबे समय से सिनेमाघर, मल्टीप्लेक्स बंद हैं इसलिए फिल्मों को जारी करने के लिए वैकल्पिक व्यवस्था की जानी चाहिए।

इस वैश्विक संकट (महामारी) के समय बॉलीवुड ही नहीं, बल्कि कई देशों की फिल्में भी ओटीटी पर जारी हो रही हैं। जब तक COVID 19 महामारी का संकट दुनिया में जारी रहेगा, तब तक इस तरह की व्यवस्था जारी रहने की उम्मीद है। हालांकि इस व्यवस्था में बॉक्स ऑफिस (Box Office) के पैमाने जितने नहीं हैं। यानी इस तरह से फिल्मों के जारी होने पर अब शायद आपको 100 करोड़ रुपये या 500 करोड़ रुपये की कमाई वाली फिल्मों जैसे वाक्य सुनने को न मिलेंगे।

एक रिपोर्ट की रिपोर्ट तो अगर इन दिनों कोई फिल्म ओटीटी पर डायरेक्ट जारी होती है तो ओटीटी राइट्स से लगभग 80 प्रतिशत आय प्राप्त होती है और सैटेलाइट राइट्स से 20 प्रतिशत अंश प्राप्त होते हैं। जानिए ओटीटी पर बिजनेस के बिजनेस के मायने क्या हैं।

क्यों कहते हैं इसे ओटीटी?
वास्तव में, ओट्टी शब्द ओवर-द-टॉप का संक्षिप्त रूप है। जब इंटरनेट पर टीवी का कंटेंट देखने की सुविधा मिली, यानी जब केबल बॉक्स से रिमूव हुआ और आप अपने हाथ में एक स्मार्ट फोन पर टीवी के तमाम कार्यक्रम देख पाए, तब इस प्लेटफॉर्म को ओटीटी कहा गया। भारत में ओटीटी प्लेटफॉर्म्स पर टीवी के साथ ही वेब सीरीज, कॉमेडी कार्यक्रम और फिल्मों की स्ट्रीमिंग काफी लोकप्रिय है।

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कई फिल्में ओटीटी पर जारी हो चुकी हैं और कई दिक्कतें हैं।

फिल्में कैसे करती हैं ओटीटी से कमाई?
ओटीटी प्लेटफॉर्म्स पर फिल्मों की कमाई के आंकड़े सीधे होते हैं। जारी या स्ट्रीमिंग के लिए ओटीटी फिल्मों के अधिकार लेते हैं। अधिकारों के लिए निर्माता को एक राशि मिलती है। यह डील एक ही फिल्म के अलग-अलग आकाशगंगा के संस्करणों के लिए अलग-अलग होती है यानी हर वर्जन के राइट्स का डील अलग-अलग होता है।

दूसरी तरफ, कुछ फिल्मों का निर्माण ओटीटी प्लेटफॉर्म करवाते हैं। यानी खास तौर पर किसी फिल्म के लिए ओटीटी प्लेटफॉर्म कोई डील करता है। जैसे एचबीओ एक ओटीटी प्लेटफॉर्म है, जो खास तौर पर फिल्में अपने प्लेटफॉर्म के लिए बनने के मामले में है। इस सौदे में ऐसा होता है कि प्लेटफॉर्म एक तयशुदा रकम फिल्म करार को देता है और निर्माता उससे कम रकम में फिल्म बनाते हैं, यानी बचत हुई रकम उनका लाभ है।

ओटीटी को कैसे होता है?
अगर फिल्म सर्टिफिकेट को इस तरह से उलझा रहा है यानी ओटीटी प्लेटफॉर्म उन्हें रकम दे रहे हैं तो इन प्लेटफॉर्म्स को किस तरह से अधर में होता है… इस तरह से तीन तरह से मुख्यत: प्रचलित हैं।

TVOD यानी ओटीटी का हर कोई भी कंटेंट जब डाउनलोड होता है, तो उसके लिए एक फ्री स्वीकार करता है। अर्थात हर डाउनलोड पर ट्रांजेक्शन।
SVOD का मतलब है कि कोई भी हर महीने या एक समय सीमा के लिए एक रकम चुकाता है और उस प्लेटफॉर्म का पूरा कंटेंट देख सकता है।
AVOD तीसरा तरीका है सामग्री देखने का कोई चार्ज नहीं है, लेकिन सामग्री के बीच में मल्टीमीडिया को विज्ञापन देखने होते हैं। जैसे YouTube फ्री है लेकिन वीडियो के बीच में एड देखने को मिलेगा। इन विज्ञापनों के ज़राए ओटी की कमाई होती है।

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कुल मिलाकर पूरी पर घटनाओं का मॉडल बहुत ही सामान्य है। पहले प्लेटफॉर्म अपने कंटेंट को बनाने या लेने में पैसा खर्च करता है और उसके बाद ऑडियंस या अकाउंट्स से एक चार्ज लेकर वो कंटेंट एक्सपोजर जाता है। ओटीटी प्लेटफॉर्म बड़ी हैक्टिक प्रक्रिया बना रहा है और साथ ही व्यापार की दुनिया में यह निगेटिव कैश फ्लोअर सिस्टम है। दूसरी तरफ, कई प्लेटफॉर्मों की सुविधा प्रति सप्ताह, प्रति माह, प्रतिदिन और दावे जैसे दावे भी संभव कर रहे हैं।

हालांकि ओटीटी, सिनेमा के विकल्प के तौर पर एक प्लेटफॉर्म सुनिश्चित करता है और इसके फायदे नुकसान पहुंचाते हैं, लेकिन अब भी न केवल फिल्मी लोग बौल्की दर्शकों को साइकिल के लिए इंतजार कर रहे हैं। मशहूर फिल्मकार श्याम बेनेगल के शब्दों में सिनेमा जो लाजर दैन लाइफ एक्सपीरियंस वो टीवी या छोटी स्क्रीन पर पूरी तरह से नहीं मिलता है। सिनेमाघर में फिल्म का दृश्य एक सामाजिक उत्सव और सामूहिक अनुभव होता है। फिल्में कई माध्यमों की नजर में आ सकती हैं, सबकी अपनी अहमियत है।

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