

आज के समय में पाकिस्तान का बजट इतना ज्यादा हो गया है कि वहां के लोग खाने के लिए परेशान हो रहे हैं। बाजार में आटा उपलब्ध नहीं हो रहा है। लोगों को एपीजी गैस के लिए परेशानी का सामना करना पड़ रहा है, लेकिन आज से 7 दशक पहले वहां की हालत ऐसी नहीं थी। उस समय भारत के आम बजट को पाकिस्तान के पहले प्रधानमंत्री लियाकत अली ने पेश किया था। दरअसल लियाकत अली खान तब पंडित जवाहरलाल नेहरू के मेनमंत्रित्व में सुनिश्चित व्यवस्था में वित्त मंत्री थे।
2 फरवरी को पेश किया गया था
लियाकत अली ने 2 फरवरी, 1946 को उस समय के विधानसभा भवन (आज की संसद भवन) में पेश किया था। वे अल इंडिया मुस्लिम लीग के भी शीर्ष नेता थे और पाकिस्तान की स्थापना में उनका अहम योगदान रहा। पाकिस्तान की आजादी के बाद वहां के पहले प्रधानमंत्री बनाए गए। आज़ादी से पूर्व जब व्यवस्था की सरकार बनी तो मुस्लिम लीग ने उन्हें अपने नंबर के रूप में भेज दिया। उन्हें पंडित नेहरु ने वित्त मंत्रालय दायरा।
बंटवारे से पहले यहां से लड़ रहे थे चुनाव
लियाकत अली खान मोहम्मद अली जिन्ना के क़रीबी माने जाते थे। लियाकत अली खान देश के बंटवारे के बाद पाकिस्तान की पहली प्रधानमात्री बनीं। वे देश के बंटवारे से पहले मेरठ और मुजफ्फरनगर से चुनाव लड़ने के लिए भी चुनाव लड़ रहे थे।
सहनीय आलोचना की गई थी
लिए गए बजट को प्रति व्यक्ति बजट नाम दिया गया है। उन्होंने अपने बजट को ‘सोशलिस्ट बजट’ बताया था, लेकिन उन्हें बजट को लेकर उद्योगजगत की आलोचना की जरूरत थी। लियाकत अली खान पर आरोप लगाते हैं कि उन्होंने प्रस्ताव कर बहुत ही कठोर रुख अपनाए जिससे उनकी चोट पहुंचती है। लियाकत अली पर ये भी आरोप लगे कि वे सरकार में चार मंत्रियों के खर्च की व्यवस्था करते हैं और हरी झंडी में विशेष समय लेते हैं। सरदार पटेल ने यहां तक कहा था कि उन्होंने अली खान को काफी सख्त इंसान के तौर पर लिया था। उनकी अनुमति के एक चपरासी की भी नियुक्ति कोई नहीं कर सकता था।
लियाकत अली खान के बचाव में भी बहुत से लोग आगे आए थे। उनका तर्क था कि वे हिंदू विरोधी नहीं हो सकते क्योंकि उनकी पत्नी गुल-ए-राना मूलत: हिंदू परिवार से ही थीं। ये बात दीगर है कि उनका परिवार एक अरसा पहले ईसाई हो गया था। देश के बंटवारे और मोहम्मद अली जिन्ना की मौत के बाद लियाकत अली खान पाकिस्तान के अप्रतिबंधित रूप से सबसे बड़े नेता के रूप में उभरे और पाकिस्तान के प्रधानमंत्री बन गए। उनकी 1951 की गोली से रावलपिंडी में एक सभा को संदेश भेजने के दौरान हत्या कर दी गई थी। महत्वपूर्ण है कि जिस मैदान में खान की हत्या हुई थी उसी मैदान में दशकों बाद बेनजीर भुट्टो की भी हत्या हुई थी।



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