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न्यायपालिका में हड़कंप: जस्टिस यशवंत वर्मा के घर से बरामद हुई नकदी, सुप्रीम कोर्ट ने किया स्थानांतरण

UNITED NEWS OF ASIA. दिल्ली हाईकोर्ट के जस्टिस यशवंत वर्मा (Justice Yashwant Verma) एक बड़ी कानूनी हलचल के केंद्र में आ गए हैं। उनके दिल्ली स्थित सरकारी आवास में लगी आग के बाद जब फायर ब्रिगेड की टीम वहां पहुंची, तो बड़ी मात्रा में नकदी मिलने से सभी चौंक गए। इस अप्रत्याशित खुलासे के बाद सुप्रीम कोर्ट कॉलेजियम ने त्वरित कार्रवाई करते हुए जस्टिस वर्मा का ट्रांसफर उनके मूल कार्यक्षेत्र इलाहाबाद हाईकोर्ट कर दिया।

कैसे हुआ यह खुलासा?

घटना उस समय हुई जब जस्टिस वर्मा दिल्ली में मौजूद नहीं थे। उनके परिवार ने आग लगने की सूचना पुलिस और दमकल विभाग को दी। आग बुझाने के बाद जब घर की तलाशी ली गई, तो कमरे में लाखों-करोड़ों रुपये की नकदी पाई गई। इस मामले की रिपोर्ट तैयार कर चीफ जस्टिस को भेजी गई, जिसके बाद सुप्रीम कोर्ट कॉलेजियम ने उनकी तत्काल स्थानांतरण की सिफारिश की।

कौन हैं जस्टिस यशवंत वर्मा?

जस्टिस वर्मा का जन्म 6 जनवरी 1969 को इलाहाबाद में हुआ था। उन्होंने दिल्ली विश्वविद्यालय के हंसराज कॉलेज से बीकॉम ऑनर्स की पढ़ाई की और 1992 में रीवा विश्वविद्यालय से कानून की डिग्री हासिल की। इलाहाबाद हाईकोर्ट में एक अनुभवी वकील के रूप में उन्होंने श्रम, औद्योगिक कानून, कॉर्पोरेट कानून और कराधान जैसे क्षेत्रों में विशेषज्ञता प्राप्त की।

उन्होंने 2014 में इलाहाबाद हाईकोर्ट में बतौर अतिरिक्त न्यायाधीश अपने न्यायिक करियर की शुरुआत की और 2016 में स्थायी न्यायाधीश बने। इसके बाद 2021 में उनका तबादला दिल्ली हाईकोर्ट कर दिया गया था।

उनका नाम कई चर्चित फैसलों से जुड़ा

  • मार्च 2024: कांग्रेस द्वारा इनकम टैक्स पुनर्मूल्यांकन के खिलाफ दायर याचिका को खारिज किया।
  • जनवरी 2023: नेटफ्लिक्स की वेब सीरीज़ ‘Trial by Fire’ पर रोक लगाने की मांग वाली याचिका को ठुकरा दिया, यह तर्क देते हुए कि अभिव्यक्ति की स्वतंत्रता का संरक्षण आवश्यक है।

सुप्रीम कोर्ट ने क्यों किया ट्रांसफर?

आग लगने के बाद नकदी मिलने की घटना को देखते हुए सुप्रीम कोर्ट कॉलेजियम ने 20 मार्च 2025 को उनकी तत्काल स्थानांतरण की अनुशंसा की। हालांकि, इस फैसले को लेकर न्यायपालिका के भीतर भी चर्चाएं हैं कि क्या केवल ट्रांसफर से इस मामले को हल किया जा सकता है या किसी बड़े कदम की आवश्यकता है।

इस घटना के बाद यह बहस तेज हो गई है कि न्यायपालिका की निष्पक्षता और पारदर्शिता बनाए रखने के लिए क्या सिर्फ स्थानांतरण ही पर्याप्त है या इस मामले में गहन जांच और कार्रवाई की जरूरत है।

 


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