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ऋतिक भौमिक बोले- जिस दिन मैं अपना काम करके इस दुनिया से चला जाऊं, लोग मुझे याद रखें

कई साल थिएटर में अभिनय करने के बाद अभिनेता रितिक भौमिक ने करियर को आगे बढ़ाने के लिए फिल्मों में एंट्री की, लेकिन उनकी बड़ी पहचान मिली म्यूजिकल वेब सीरीज ‘बंदिश बैंडिट्स’ से। इस सीरीज में वह राधे के रोल में थे। रितिक भौमिक ने 9 साल की उम्र से अभिनय करना शुरू कर दिया था। उन्होंने करीब 17 ड्रामा और 6 शॉर्ट फिल्मों में काम किया। जहां 2017 में रितिक भौमिक ने डिजिटल प्लेटफॉर्म पर डेब्यू किया, वहीं 2019 में उन्होंने बंगाली फिल्म ‘धूसर’ से एक्टिंग की। लेकिन पहचान वेब सीरीज ‘बंदिश बैंडिट्स’ से मिली। उसके बाद वह ‘विसल्ब्लोअर’ में नजर आया। बीते दिनों उनकी एक और वेब सीरीज ‘जहानाबाद’ रिलीज हुई। ऐसे में हमने रितिक भौमिक से खास बातचीत की। इस इंटरव्यू में उन्होंने अपने करियर, थिएटर के अनुभव और सपने के बारे में फ्रैंक बात की।

आपने अब तक ताज़ा भी कहे हैं, वो कहीं ना कहीं सफल रहे हैं। जब कोई कलाकार इंडस्ट्री में आता है और उसकी शुरुआत अच्छी हो जाती है, तो उसके लिए आगे के प्रोजेक्ट के लिए कितना बड़ा टास्क होता है?
मैं आपकी ईमानदारी से कहता हूं कि मेरी जो व्यवहार टीम है, उसमें ‘बंदिश बैंडिट्स’ के एक प्रोड्यूसर अमृत पाल बिंद्रा और उनके को-प्रोड्यूसर डिंपल हैं, ये दोनों मुझे बेरोजगार करते हैं। इन दोनों ने मुझे इस इंडस्ट्री में एक तरह से पाला-पोसा है। वे ही मेरी इंडस्ट्री में अब तक नजर रखते हैं। तो ये काम उनका है। मेरा काम इतना बस है कि जो मेरे करीब आता है, जो काम करता है, वो मैं पूरी मेहनत से, दिल से, शिद्दत से, लगन से देखता हूं। इससे ज्यादा मैं कुछ नहीं सोचता। अभी मुझे इंडस्ट्री में दो-ढाई साल ही हुए हैं। मुझे लगता है कि अभी थिंकिंग का वक्त नहीं आया है, अभी सिर्फ करने का वक्त है। इसलिए मुझे आज जो भी मिलते हैं, मैं उसे अच्छे से चाहता हूं और इसमें अपने 100 पर्सेंट देना मेरी कोशिश है। मैं चाहता हूं कि हर एक दिन जो मैं सेट हूं पर गुजारा हूं, वो दिन मेरा सबसे अच्छा और सुपर डे हो। मैं उससे ज्यादा कुछ नहीं सोचता। ईमानदारी से कहता हूं कि ऐसा इसलिए नहीं है कि मैं सोच नहीं सकता बल्कि अभी भी मुझे लगता है कि मेरी जरूरत नहीं है। मैं 4-5 साल के लिए ये ही सोचता हूं कि मैं काम करता रहता हूं, क्योंकि मेरी जो व्यवहार और पीआर टीम है, वो ये काम कर रहे हैं। मेरा काम बस ऐक्टिंग करना है, मैं उसके बारे में सोचता हूं।

आपने ओटीटी शोज किए, जो काफी पसंद किए गए। आपके काम में वैरायटी है। फिल्मों में भी किया काम। आपको ऐसा क्या पसंद आया है अब तक जो आप याद करना पसंद करेंगे?
मुझे लगता है कि जो सबसे अच्छी चीज है मैं बार-बार करना चाहता हूं वो लगी है कि जब कोई प्रोजेक्ट रिलीज होता है, तब उस समय जो आपको हर तरफ से प्यार मिलता है, पूरी दुनिया आपके काम को सराहती है, वोर अटैचमेंट, जहां आपको लगता है कि आपका काम किसी ने देखा और पसंद किया, मैं चाहता हूं वो अधिकार हर चार-पांच में आता रहा। ऐसा कभी नहीं मिलता क्योंकि एक साल में एक ही शो या फिल्म रिलीज होती है। मुझे एक साल में ये अधिकार एक ही बार मिल जाता है। तब मुझे लगता है कि इस साल दो-तीन रिलीज नहीं मिली। इसलिए मेरी कोशिश रहेगी कि मैं और तेजी से काम करता हूं, हर साल दो से तीन रिलीज होने दें ताकि हर महीने ये अधिकार मिले रहें।

जब कोई इंडस्ट्री में आता है तो उसके मन में कोई सपना आता है, तो आपका सपना क्या होता है?
मेरा सपना यह रहा है कि जिस दिन मेरा सेट पर आखिरी दिन हो, जिस दिन मैं अपना काम करके इस दुनिया से चला जाऊं, तब मुझे लोग ये कहते हुए याद रखें कि इस लड़के ने अच्छा काम किया, इस लड़के ने एक बार सेट किया था, इसने लोगों को अपनी ऐक्टिंग से खुश किया था। मैं बिल्कुल डिप्लोमैटिक नहीं हो रहा हूं। सच कहूं तो जब मैं थिएटर करता था, तब भी मैं ये ही सोचता था कि लोग थिएटर से खुश होकर बाहर जाते हैं। अगर वो खुश नहीं हैं, तो मैं कुछ गलत कर रहा हूं। क्योंकि इंटरटेनमेंट का मतलब ही ये है कि हम उन्हें खुश करें, उन्हें रुलाएं और हंसने की वजह दें। अगर कोई अभिनेता इन सभी चीजों में खरा नहीं उतरता है, तो फिर उसका काम किसी काम का नहीं है। तो मुझे उम्मीद है कि मैं दर्शकों की उम्मीद पर खरा उतरूंगा। मुझे उम्मीद है कि मैं अपने जीवन का आखिरी वक्त तक अच्छा काम करता रहूंगा।

आपने थिएटर भी किया है। ऐसा देखा गया और यह भी कहा गया कि जो थिएटर ये आता है उसके काम में एक साधना होती है। आपको थिएटर से बड़े-बड़े पर्दे पर आने में कितनी मदद मिली?
मैं पूरी तरह से ये तो नहीं बता सकता कि मैंने थिएटर में वो कौन-कौन सी चीजें हैं, जिसका फायदा मुझे बड़े या छोटे पर्दे में मिला है। लेकिन नौ साल से मैं मंच पर हूं, 15-18 साल में मैं हर साल एक ही नाटक करता हूं। लेकिन मैं इतना जरूर कह सकता हूं कि थिएटर में जो प्रैक्टिस की है, जो रियाज किया है, वे मेरे काम आया है। उस प्रैक्टिस की वजह से मुझमें एक विश्वास है कि किसी भूमिका को किस तरह से करना है, किस नए तरीके से करना है। उस रियाज की वजह से मैं सिर उठाने से किसी की पहचान को कर पाता हूं, इसमें मुझे असमंजस की स्थिति नहीं होती है, ना ही कोई डर या असंवेदनशीलता महसूस होती है। उसके बाद डायरेक्टर की ही सबसे बड़ी जिम्मेदारी है।

आपकी पिछली दो सीरीज काफी पसंद की गई थीं, ‘जहानाबाद’ भी लोगों को पसंद आई है। इस सीरीज का आपका अनुभव कैसा रहा है?
‘जहानाबाद’ मेरे लिए एक ऐसी सीरीज है, जिसमें दर्शकों को हर जॉनर का आनंद मिलता है, चाहे हमें बात करें ड्रामा की, भले कॉमेडी हो, राजनीति हो या वॉयलेंस हो, सभी जॉनर इस सीरीज में नजर आते हैं। जब मैंने इसकी स्क्रिप्ट पढ़ी थी तो मैं उसे देखकर रो भी रहा था और हंसता भी था। मैंने ‘जहानाबाद’ की स्क्रिप्ट को फील किया, जिससे इमोशन को फील हुआ। मैंने अभिमन्यु सिंह की भूमिका स्वीकार की थी, जो एक प्रोफेसर हैं।

आप अपने आने वाले यादों के बारे में कुछ बताएं?
हाल ही में ‘बंदिश बंद बैंडिट्स’ सीजन 2 की घोषणा की गई थी, तो उसके सीजन 2 को लेकर शूटिंग हो रही है। और एक-दो बातें हैं, जो मैंने साइन किए हैं, लेकिन अभी इस बारे में नहीं बता सकता।

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