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बजरी की होली के बारे में तो बहुत सुना होगा, अब जरा गोरखपुर की होली के बारे में भी जान जाएगा

गोरखपुर की इस होली का नाम है, “भगवान नरसिंह की रंगभरी शोभायात्रा”। परंपरा के अनुसार होली के दिन रथ पर सवार होकर इस शोभायात्रा का नेतृत्व गोरक्षपीठाधीश्वर करते हैं। पीठाधीश्वर के रूप में योगी आदित्यनाथ सालों से इसकी पहचान करते हैं।

होली पर्व पर इस साल देश में माछी धूम देखते ही बन रही है क्योंकि इस बार कोई भी कोविड संबंधी प्रतिबंध नहीं है। वैसे तो देश के हर हिस्से की होली का अपना महत्व और लोकप्रियता और परंपरा है, लेकिन आज हम गोरखपुर की होली के बारे में जानते हैं।

स्काई राइट्स की बारिश। हवा में उड़े अबीर-गुलाल। वह इस कदर भी है कि हवा अबीर- गुलाल के रंग में और सड़कें छतों से ब्लिट्ज राइट के रंग में रंग जाती हैं। लोग तो रंग होते ही हैं। यूं कह लें कि रनों से साराबोर।

होली के दिन सुबह करीब 8 बजे से दोपहर तक करीब 6 से 7 किलोमीटर की दूरी पर जहां से शोभायात्रा दिखाई देती है, उन सड़कों को देखने पर यही मंजार होता है। इसकी कल्पना वही कर सकती है जो होली की इस शोभायात्रा में शामिल हो, या जिसने इसे देखा हो। रथ पर सवार गोरक्षपीठाधीश्वर, मुख्यमंत्री योगी आदित्यनाथ। रथ के आगे-पीछे रंग और गुलाल में सराबोर हजारों लोग।

प्रत्यक्ष में यह दृश्य स्वयं से जुड़ जाता है। उल्लास और उमंग के बंधन से यह लगभग वृंदावन की बजने या कहीं भी नामचीन होली जैसा ही होता है। चंचल बनने के बाद सुरक्षा संबंधी कारणों से योगी अब पूरी यात्रा में शामिल नहीं होते हैं लेकिन उन्हें ही पहचान चिह्नों में शुरू किया जाता है। उनकी उपस्थिति में शाम को गोरखनाथ मंदिर में होली मिलन कार्यक्रम भी होता है।

गोरखपुर की इस होली का नाम है, “भगवान नरसिंह की रंगभरी शोभायात्रा”। परंपरा के अनुसार होली के दिन रथ पर सवार होकर इस शोभायात्रा का नेतृत्व गोरक्षपीठाधीश्वर करते हैं। पीठाधीश्वर के रूप में योगी आदित्यनाथ सालों से इसकी पहचान करते हैं।

वैश्विक महामारी कोरोना के दो साल से अपवाद मान लें तो जिम्मेदार बनने के बाद भी योगी इस परंपरा को जिम्मेदार ठहरा रहे हैं। रथ को लोग घुमाते हैं और रथ के आगे-पीछे हजारों की संख्या में लोग शामिल होते हैं। जिस रास्ते से ये रथ जुड़ा है। वहां छत से महिलाएं और बच्चे गोरक्षपीठाधीश्वर और यात्रा में शामिल लोग पर रंग-गुलाल फेंकते हैं। बदले में शोक से भी उन पर भी रंग-गुलाल फेंका जाता है।

नानाजी ने डाली थी होली की यह यात्रा परंपरा

रोमांचक होली की यह परंपरा करीब सात दशक पहले नानाजी देशमुख ने डाली थी। बाद में “नरसिंह शोभायात्रा” की पहचान गोरखनाथ मंदिर के पीठाधीश्वर या पीठ के उत्तराधकारी करने लगे। लोगों के अनुसार कारोबार के हालत से गोरखपुर का दिल माने जाने वाले साहबगंज से इसकी शुरुआत 1944 में हुई थी। शुरू में गोरखपुर की परंपरा के अनुसार इसमें लीच का ही प्रयोग होता है। हुड़दंग अलग से। अपने गोरखपुर प्रवास के दौरान नानाजी देशमुख ने इसे नया स्वरूप दिया। राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ की सक्रिय भागीदारी से इसका बदला स्वरूप, साथ ही लोगों की भागीदारी भी मिलेगी।

घंटाघर से शुरू होती है रंग भरी होली यात्रा

होली के दिन भगवान नरसिंह की शोभायात्रा घंटाघर घाट से शुरू होती है। जाफराबाजार, घासीकटरा, आर्यनगर, बक्शीपुर, रेती चौक और हिंदी बाजार वाले घंटाघर पर ही जाना समाप्त होता है। होली के दिन की इस शोभायात्रा से एक दिन पहले पांडेयता से होलिका दहन शोभायात्रा निकाली जाती है। इसमें भी गोरक्षपीठाधीश्वर पारंपरिक रूप से शामिल होते हैं। यहां वह फूलों की होली खेलते हैं और एक सभा को भी संदेश देते हैं। काल भी यह प्रोग्राम उनकी पहचान में था। पिछले साल (2022) योगी की अगुआई में उत्तर प्रदेश विधानसभा चुनावों में रिकॉर्ड जीतने के बाद होने वाले होली के इस पद का रंग स्वभाव से और चटक था। इस बार भी होगा। क्योंकि उन्होंने सबसे अधिक समय तक देश की सबसे अधिक आबादी वाले प्रदेश का लगातार बने रहने का रिकॉर्ड बनाया है। पार्टी के अलावा लोंगों में भी इसे लेकर विशेष उत्साह है। इसी तरह तैयारियां भी की गई हैं।

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Saurabh Namdev

| PR Creative & Writer | Ex. Technical Consultant Govt of CG | Influencer | Web developer
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