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ये मर्द बेचारा रिव्यु: मर्दों की दुनिया की कड़ी, हंसाते-हंसाते पिला जाएगी ये फिल्म

ये मर्द बेचारा समीक्षा: बॉलीवुड के महानायक अमिताभ बच्चेचन (अमिताभ बच्चन) ने अपनी फिल्म में एक लाइन कही थी, ‘मर्द को दर्द नहीं होता…’। यूं तो ये लाइन कुछ दशक पहले ही कही गई थी, लेकिन दुखों के लिए समाज का ये नजरिया कई सदियों पुराना है। महिला और पुरुषों की इस दुनिया में हम जाने-अनजाने पुरुषों को इंसान से ज्यादा मर्द बनने की ट्रेनिंग देते हैं और इस ‘मर्द’ बनने के लिए पुरुषों को बहुत आकर्षित करना पड़ता है। समाज के नजरिए को पेश कर रहा है निरदेशक अनूप थापा की फिल्म ‘येले शेयर्डरा’। ये मरद बेचारा रिव्यू (ये मर्द बेचारा रिव्यू) कल यानी 19 नवंबर को सिनेमाघरों में रिजिल हो रही है। जानिये कैसी है, दिग्‍गज कलाकारों से सजी ये फिल्‍म।

कहानी: ये कहानी है शिवम नाम के लड़के की जो फरीदाबाद में आपके परिवार के साथ रहता है। शिवम के पिता उन्हें साफ-साफ बताते हैं कि उनके खानदान की परंपरा है कि मूछें ही मर्दों की निशानी है और उन्हें भी वो रखनी ही पड़ेंगी। पिता की इज्ज़त करने वाला शिव ये करता है लेकिन लड़कों के कारण लड़कियां उससे नहीं पातीं। इस फिल्म में हर कोई शिवम को यही समझाने पर लगा है कि असली असली मर्द को होना चाहिए। इस मूंछ के चक्कर में शिव को अपनी प्रेमिका शिवालिका नहीं मिलती। शिवालिका को पाने के लिए शिवम बॉडी बनाने से लेकर मूंछ मुंडवाने तक सारे काम करता है लेकिन इस सबके लिए उसे बार-बार ‘मर्द होने के लिए क्या करना चाहिए’ जैसी सलाह मिलती रहती है। अब इस कहानी में आगे क्या होता है यह जानने के लिए आपको फिल्म देखनी होगी।

हिंदी सिनेमा महिलाओं के दर्द और दुख के लिए कई फिल्में बनी हैं, जिनहें काफी संजीदा तरीके से फिल्माई गई है। लेकिन गलतियों को हमेशा सख्त होना, ना रोना, कमजोर होना पर ‘फट्टू’, चूड़ियां पहन लो… जैसे शब्दों को सुनने को मिलते हैं। फिल्म में भी ऐसे ही ‘माचोमैन’ को ही ‘हीरो’ दीखाती है जो मारधाड़ मचाता है, पत्नियों या गर्लफ्रेंड की हिफाजत करता है.. लेकिन निर्देशक अनूप थापा की ‘यह विस्मृति’ एक अलग तरह की कहानी बताती है। एक डायलॉग में शिवम की बहन कहती हुई दिखाई देती है, ‘जब भी मुझे किसी ने परेशान किया तो शिवम भइया ने उसे मारा नहीं, बल्कि मुझे उसकी बहन ने अपनी लड़ाई खुद लडूं। उन्नीस ने मेरी रक्षा नहीं की बल्कि अपनी रक्षा के काबिल बनाया…’ और यही कहानी की अलग बात है।

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बृजेंद्र काला इस फिल्म में अहम किरदार निभा रहे हैं।

अक्सर मर्दो पर भावनाविहीन होने या कम भावनात्मक होने की बातें रखी जाती हैं लेकिन हम भूल जाते हैं कि उन्हें बचपन से न रोना और अपनी न जानने की सीख दी जाती है। ऐसे में मर्दों के लिए इस दुनिया को देखने का नजरिया अपने ही तरह है। पुरुषों को ‘मर्द’ बनाने की ट्रेनिंग सालों से चली आ रही है। कहानी की अच्छी चीज यह है कि यह कॉमेडी है तो आप हंसते-हंसते कई अहम बातों को समझ जाते हैं। इस मुद्दे को भारी भरकम अंदाज में नहीं बल्कि हल्के-फुल्के अंदाज में दिखाया गया है।

फिल्म में अभिनय और किरदारों की बात करें तो सीमा पावा, अतुम श्रीवासतव, बृजेंद्र काले जैसे दिग्गज अभिनेता इस फिल्म में जिने किसी ने हमेशा की बेहतरीन छाया काम किया है। इस फिल्म से सीमा पावा और मनोज पाहवा की बेटी मनुकृति पाहवा अपना डेब्यू कर रही हैं। मनुकृति फिल्म में अपनी असली मां सीमा पाहवा की बहू का रोल निभाते नजर आई हैं। मनुकृति में काफी संभावित है जिसका उपयोग आगे की फिल्मों में जरूर करना चाहिए। फिल्म में लीड एक्ट्रेस हैं विराज राव जिंघेन फिल्म की सबसे कमजोर कड़ी कहा जा सकता है। विराज कई जगह लाउड एक्टिंग करते नजर आते हैं। वहीं ये विषय जित्ने जीतना दमदार है और इसे दर्शकों तक पहुंचने का जिम्मा भी उन्हीं पर है, पर वह पूरी तरह से नहीं उठा पाए। शिवम को 22 साल का दखया गया है लेकिन वह उतने ही नहीं पाए गए हैं। वहीं शिवम का अहम दोस्‍त, रुद्र जो काफी अहम किरदार था, वह भी काफी कमजोर रहा। फिल्म का क्लाइमेक्स भी काफी ढीला है। एक ऐसा कंपटीशन जिसमें शिव ने भागिसिपेट भी नहीं किया, इसमें वह स्‍टेज पर अंतिम रूप से आकर भाषण देता है। यह काफी बचाना सा लगता है।

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सीमा पाहवा इस फिल्म में अपनी असली बेटी मनुकृति की सास बनी नजर आई हैं।

ओवरऑल देखें तो यह बेहतरीन विषय पर बनी एक फिल्म है, जिसे आपको देखना चाहिए। कॉमेडी के डोज के साथ ये काफी कड़ी दवाई भी हल्के के साथ पिलाती है। हालांकि इस विषय पर इसे और भी सही तरीके से रखा जा सकता है। इस फिल्म को मैं व्यूअर ही देने वाला हूं, लेकिन फिल्म जिस विचार के इर्द-गिर्द बुनी गई है, उस विचार के लिए मैं आधा स्टार और दे रहा हूं। तो मेरी तरफ से इस फिल्म को 3 स्टार।

विस्तृत रेटिंग

कहानी:
स्क्रिनप्ल:
डायरेक्शन:
संगीत:

टैग: सीमा पाहवा, ये मर्द बेचारा

 


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