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यामी गौतम: विद्या बालन के कारण यामी गौतम ने किया अपनी त्वचा की बीमारी का खुलासा! अब खुला गहरा राज

‘विकी डोनर’ से रातों-रात चर्चा में आई यामी गौतम बॉलीवुड की उन अभिनेत्रियों में से हैं, जो फिल्म दर फिल्म मजबूती के जरिए एक समर्थ अभिनेत्री के रूप में अपनी मुकाम बना चुकी हैं। पिछली अपनी ओटीटी रिलीज़ ‘थर्सडे’ और ‘दसवीं’ में अपने ग्रे और विविधरंगी रोल के लिए पढ़ाई पाने के बाद इन दिनों वे चर्चा में हैं ओटीटी की ही ‘चोर निकल के भागा’ से। इस मुलाकात में यामी अपनी फिल्म, अपने ग्रे पहलू, अपने करियर, पति आदित्य धर, अपनी स्किन डिसीज और महिलाओं की मुश्किलों पर बात करती हैं।

यामी अपनी पिछली फिल्म थर्सडे में आपने अपनी ग्रे भूमिका में काफी वाहवाही बटोरी। आपके व्यक्तित्व का ग्रे साइड क्या है?
-मैं जब हाईस्कूल में सोश साइंस पढ़ रहा था, तब हमें बताया गया कि समाज में हमें किस तरह रहना चाहिए? तब मुझे लगा कि इसे परिभाषित करने की क्या आवश्यकता है। मगर फिर मुझे समझ में आया कि इसकी जरूरत है, क्योंकि हम अलग-अलग रोल्स में अलग होते हैं, तो मुझमें भी खामियां हैं। मुझे गुस्सा भी आता है। मैं कई बार अति होती हूं, मगर मेरा लिपट से समय के लिए रहता है। मैं कहीं भी गुस्सा करता हूं और नहीं निकालता। पहले मैं थोड़ी सब्र वाली हुई थी, मगर अब मुझ में सब्र थोड़ा कम हो गया है। मेरी एक बड़ी कमी थी कि मैंने ओवर रीड किया था। एजाजमेंट में मुझे सब आता था, मगर मैं एक अहम सवाल छोड़ देता था, क्योंकि वो मैं नहीं पढ़ता। बायोलॉजी में 100 में से 98 मिले थे और जब प्रोफेसर ने अपने से पूछा कि 2 नंबर कम क्यों आए तो उन्होंने बताया कि मैंने पढ़ने के चक्कर में वो आंसर आने को भी छोड़ दिया था। कई बार जब मैं मेसेज करता हूं, तो मैं कुछ ज्यादा या अलग ही पढ़ता हूं। एक बार तो जन्म का मैंने मेसेज पढ़ा और बन-ठन कर वेन्यू में पहुंच गया, लेकिन वहां तो सन्नाटा छाया हुआ था, मैंने जब रिसीव मेसेज पढ़ा, तो मैंने देखा, वो तो अगले दिन का कार्यक्रम था।

यामी गौतम ने स्किन की बीमारी का खुलासा किया था

ओटीटी पर ‘दसवीं’, ‘लूस्ट’, ‘थर्सडे’ के बाद अब ‘आप चोर निकल कर भागा’ में नजर आ रहे हैं, आपके लिए ओटीटी कितना गेम चेंजर साबित हुआ?
-‘चोर निकल के भागा’ ओटीटी पर मेरी छठी फिल्म है और मुझे लगता है कि यह प्लेटफॉर्म उस समय बूम हुआ, जब इसकी सबसे ज्यादा जरूरत थी। पेंडेमिक के कारण सारा का बिजनेस रुक गया था। बड़ी-बड़ी फिल्में अटक गईं। टेक्नीशियन परेशान थे और तब ओटी वरदान की तरह आया। मगर बीते सालों में ओटीटी अब लोगों की दोस्ती बन गई है और उन्हें लगता है कि ये फिल्म तो वे ओटीटी पर देख ही लेंगे, मगर सिनेमा प्रेमी होने के नाते मेरा मानना ​​है कि फिल्मों को थिएटर में देखने का आकर्षण ही कुछ और होता है। फिल्म देखने वाला एक फैमिली इवेंट करता था, जब लगता था पूरा परिवार सज-धज कर थिएटर होगा और पॉपकॉर्न-समोसा खाएगा। यह काफी महंगा था, इसके बावजूद लॉगिंग टाइम और मनी दोनों खाते थे, उसने कुछ का आनंद लिया और था। मगर फिर एक ऐसा समानांतर प्लैटफॉर्म आया, जहां पूरी दुनिया आपके हाथ में आ गई। मैं तो ओटीटी की बहुत ही शुक्रगुजार हूं, क्योंकि मेरी फिल्मों को ऑडियंस मिली। मगर अब सिनेमा और ओटीटी के बीच एक स्पष्ट रेखा खिंच गई है। बड़े बजट की फिल्म है, तो थिएटर में होगी, मगर मिड बजट या कम बजट की फिल्म हो, भले ही मनोरंजक हो, एक कश्मकश की स्थिति हो जाती है कि थिएटर में क्या दिखाया जाए? दर्शक आएंगे? आजकल फिल्मों की कमाई का पैमाना भी बदल गया है, ऐसे में समझ में नहीं आता कि हम अपने काम को कैसे चमकें? सच कहूं तो फिल्म हो या ओटीटी अपने काम को लेकर हम कलाकारों के मन में कोई भेदभाव नहीं। अब यह निर्णय निर्माता का होता है कि वे फिल्म को वहीं प्रदर्शित करते हैं, क्योंकि पैसा तो आखिरकार बनता ही है।

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पर्दे पर आपका विवरण तो मजबूत ही हैं, मगर एक महिला होने के संबंध में भी आप काफी मजबूत नजर आती हैं? वो स्ट्रेंथ कहाँ से मिलता है? आपने अपनी स्किन डिजीज केरारोसिस पिलारिस पर खुल कर बात की।
-मेज लगता है, वो फोर्सेस अनुभव के साथ आता है। बीते सालों में आपने अपने साथ, अपने अंदर क्या महसूस किया है? और उसे अपने भीतर जिन्दा रखा है। 5 साल पहले तक भी मुझमें वो कॉन्फिडेंस नहीं था। मन में कई बातें होतीं थीं, बोलने की, मगर फिर लगता है, कोई आहत न हो जाए, कुछ गलत न हो जाए, कोई सोचेगा? कई बार हमारी बातचीत ऐसी होती है कि आप बोल नहीं पाते हैं। मगर फिर बीते सालों बाद लगा कि आज अगर मुझे कोई ऐसा मंच मिला है, मेरे पास वो अनुभव है और लोग सुनेंगे, समझेंगे और दुसरे कई लोग अपनी बातें करने के लिए प्रेरित होंगे, तो क्यों नहीं? मैं अपनी बात क्यों न कहूं? हम भूतकाल के साथ साथ होते हैं। मैं खुद इवॉल्व हुआ हूं। मैंने विद्या मैम (अभिनेत्री विद्या बालन) का एक साक्षात्कार पढ़ा था और इसमें उन्होंने कहा था, सफलता तुरंत मिलती है, जब वो आपको मिल जाती है। तो मुझे लगा ऐसे कई इंटरव्यू पढ़कर कि मैं अपनी बात कह सकता हूं। स्किन डिजीज पर भी मैं ऐसी ही बात कर पाया। हालांकि ये डिजीज मेरी टीनेज में हुई थी, लेकिन जब आप ग्लैमर बिजनेस में होते हैं, तो आपके एंडोर्स होते हैं, आपसे एक विशिष्ट प्रकार की चमक जुड़ती है, तो आपके लिए स्थिति अलग होती है। ये जो मैंने अपने सोशल में अपनी स्किन टाइप को लेकर मीडिया से खुद की बात की, तो समय के बाद पता चलता है। मैं इस विषय में। ये रात नहीं हुई। हर कोई मेरी त्वचा के छोटे-छोटे दानों को देखकर कहता है, ओह, ये क्या है? इसे हमें ठीक करना होगा, रद्द करना होगा। मैं समझ सकता हूं, वे ऐसा क्यों कहेंगे? लेकिन जब मैंने अपने सोशल मीडिया के जरिए उस पर्सनल शॉट की वो बात रिवील की तो मुझे बहुत अच्छा लगा। मुझे लगा ये मैं हूं। उसके बाद मुझे जिस तरह के कमेंट आए, लड़के-लड़कियों दोनों के, वे पढ़े थे। लड़कियों ने लिखा है कि उनके बॉयफ्रेंड्स का अखां होता है कि फलां ऐक्ट्रेस की स्किन खास तरह की दिखती है, तुम क्यों नहीं? और हम उन्हें बता नहीं रहे थे? मगर आपने अब अपने सोशल मीडिया पर इस बात का खुलासा किया है, तो हमें राहत है कि स्किन कंडीशन भी अलग हो सकता है। ये नॉर्मल है।

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फिल्मों और ओटीटी पर आपने कई मजबूत महिलाओं को साकार किया है। मगर असल जिंदगी में महिलाओं की सबसे बड़ी मुश्किल क्या है आप?
-हम लोग बहुत ही भाग्यवान हैं, जो अपनी बात कह सकते हैं, अलग-अलग मुद्दों पर चर्चा कर सकते हैं, मगर हमारी सोसायटी में ऐसी कई महिलाएं हैं, जो कुछ कह नहीं पातीं। हालांकि हर वर्ग, उम्र, श्रेणी और तबके की महिलाएं अलग-अलग होती हैं, मगर मैं चाहता हूं कि हर महिला को उसके काम का सम्मान मिले। चाहे आप पत्रकार हों, डॉक्टर हों, अभिनेत्री हों या गृहिणी, आपको आपके काम की इज्जत मिली। और को कोई टेकन फॉर ग्रांटेड न ले। अब जैसे कंपनी उद्योग को पुरुष प्रधान मानते हैं, लेकिन मैं समझती हूं कि शिक्षा महिलाओं के प्रति नजरिया बदल सकती है। इसमें लगेगी। जब लड़के अपने घरों में बड़े हो रहे होते हैं, वहां से इसकी शुरुआत हो सकती है।

यामी गौतम

यामी ने आदित्य धर से विवाह की है

शादी (फिल्मकार आदित्य धर) ने आपको कितना संवारा है?
-मेरे लिए शादी का दूसरा नाम आदित्य धर ही हैं। मुझे तो जरा भी नहीं लगता कि जल्द ही हमारी शादी को दो साल हो जाएंगे। आदित्य हमेशा मुझसे पूछते हैं कि मैं अपने हर साक्षात्कार में उनके बारे में इतना कुछ कहता हूं कि लोग उनसे भी मेरे बारे में पूछते हैं। सच कहूं, तो मैं उनके बारे में इतना कुछ कहता हूं। असल में वे ही अच्छे इंसान हैं। उन्होंने भी अपने जीवन में काफी संघर्ष किया, कई अपवाद-ग्रहण देखे, मगर फिर भी उनकी जर्नी ने उनका बदला नहीं लिया। वो कहते हैं न, हर इंसान का एक सार होता है और उसे उन्होंने खोया नहीं है। वे बहुत अच्छे और इंसान हैं। किसी के प्रति कोई कड़वाहट नहीं रखता। वे बहुत निराश हैं और माहौल को खुशनुमा बनाए रखते हैं। औपचारिक से निकल कर हंसते हुए कहोगे, क्या? क्या खाने का मन है। तुम आराम करो। मैं अभी हूं। हालांकि मैं तो सबसे ही कर रही हूं। (हंसती हैं) वे हर चीज को बहुत ही खूबसूरती से संतुलित करते हैं। मैं उनके साथ बहुत खुश हूं।

 


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