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रायपुर से दिल्ली तक हलचल – भारतमाला परियोजना में माफिया-मिलभगत का पर्दाफाश

43 नहीं, 220 करोड़ का खेल! जमीन मुआवजा में बड़ा फर्जीवाड़ा

UNITED NEWS OF ASIA. रायपुर | छत्तीसगढ़ में भारतमाला परियोजना के तहत सामने आए 220 करोड़ रुपए के मुआवजा घोटाले ने प्रशासनिक व्यवस्था को हिला कर रख दिया है।
EOW (आर्थिक अपराध अन्वेषण शाखा) ने इस मामले की जांच तेज़ कर दी है और जल्द ही बड़ी एफआईआर दर्ज होने की संभावना जताई जा रही है।

EOW ने मांगी 500 पन्नों की रिपोर्ट

सूत्रों के अनुसार, EOW ने जिला प्रशासन से लगभग 500 पन्नों की जांच रिपोर्ट तलब की है। इस रिपोर्ट में ज़मीन अधिग्रहण से जुड़े सभी लेनदेन, मुआवजा वितरण और प्रक्रियाओं का ब्योरा शामिल है। जांच एजेंसी ने कई महत्वपूर्ण दस्तावेज़ पहले ही इकट्ठा कर लिए हैं, और गोपनीय जांच के कई चरण पूरे किए जा चुके हैं।

43 से बढ़कर 220 करोड़ तक पहुँचा घोटाला!

शुरुआती जांच में पता चला था कि कुछ अधिकारियों, भू-माफियाओं और प्रभावशाली लोगों की मिलीभगत से 43 करोड़ रुपए की फर्जी मुआवजा राशि बांटी गई। लेकिन विस्तृत जांच में यह आंकड़ा 220 करोड़ से अधिक पहुंच गया है।
अब तक 164 करोड़ रुपए के संदिग्ध लेनदेन का रिकॉर्ड EOW के हाथ लग चुका है।

अब FIR और गिरफ्तारियों की तैयारी

जांच अधिकारियों ने स्पष्ट संकेत दिए हैं कि जल्द ही एफआईआर दर्ज कर दोषियों की गिरफ्तारी की जाएगी। यह पहली बार है जब राज्य में किसी भूमि मुआवजा विवाद की जांच EOW कर रही है।

CBI जांच की मांग, PMO तक पहुँचा मामला

नेता प्रतिपक्ष चरण दास महंत ने इस मामले को लेकर केंद्र सरकार को घेरा है।
उन्होंने 6 मार्च को प्रधानमंत्री कार्यालय (PMO) और केंद्रीय सड़क परिवहन मंत्री नितिन गडकरी को पत्र लिखकर CBI जांच की मांग की है। महंत ने विधानसभा के बजट सत्र 2025 के दौरान भी यह मुद्दा जोर-शोर से उठाया था, जिसके बाद साय कैबिनेट ने इसकी जांच EOW को सौंपने का निर्णय लिया था।

क्या है भारतमाला परियोजना घोटाला?

भारतमाला परियोजना के तहत रायपुर से विशाखापटनम तक 950 किमी सड़क का निर्माण किया जाना है। इसमें कई किसानों की ज़मीन अधिग्रहित की गई।
मुआवजा देने की प्रक्रिया में बड़ी अनियमितताएं सामने आईं।
जहां वास्तविक मुआवजा करीब 35 करोड़ रुपए बनता था, वहां 213 करोड़ रुपए अतिरिक्त बांट दिए गए — वह भी संदिग्ध नामों और खातों में।

दिल्ली से दबाव के बाद खुला घोटाला

सूत्रों के मुताबिक, नेशनल हाईवे अथॉरिटी के चीफ विजिलेंस ऑफिसर ने रायपुर कलेक्टर को इस मामले की जांच के आदेश दिए थे।
248 करोड़ रुपए बांटने के बाद जब 78 करोड़ के और क्लेम सामने आए, तब शक गहराया।
इसके बाद रिपोर्ट में सामने आया कि मूल मुआवजा सिर्फ 35 करोड़ बनता था, लेकिन 220 करोड़ से अधिक बांट दिए गए।

भूमि अधिग्रहण कानून क्या कहता है?

भूमि अधिग्रहण अधिनियम 2013 के तहत अगर किसी किसान की 5 लाख की ज़मीन ली जाती है, तो उसे 5 लाख की ज़मीन के अतिरिक्त 5 लाख का सोलेशियम दिया जाएगा।
इसके अलावा अन्य मुआवज़ा मद मिलाकर 20 लाख तक की राशि एक किसान को दी जाती है।
इसी नियम की आड़ में फर्जी दस्तावेज़ और भूमियों का फर्जीवाड़ा कर भारी गड़बड़ी की गई।

बड़ा सवाल: दोषियों पर होगी सख्त कार्रवाई या मामला दबा दिया जाएगा?

राज्य सरकार और केंद्रीय एजेंसियों की नजर इस मामले पर है। देखना यह होगा कि जांच CBI तक पहुँचती है या नहीं, और क्या प्रभावशाली आरोपी कानून के शिकंजे में आते हैं या नहीं।

 


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