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जन गण मन: आयोग का नाम बदलने की सटीक मांग क्यों की जा रही है? अदालत ने इस पर जो कुछ कहा उसके मायने क्या हैं?

प्रश्न उठा कि जज साहब ने नाम परिवर्तन को सिर्फ धर्म से क्यों जोड़ा? प्रश्न उठाएं कि यदि आज भारत इस स्थिति में है कि इतिहास की फाइलिंग में सुधार हो सकता है, तो विखंडित की गई हमारी सांस्कृतिक विरासतों का पुनर्निर्माण कर सकते हैं, तो ऐसा क्यों नहीं किया जाना चाहिए?

नमस्कार प्रभासाक्षी न्यूज नेटवर्क के खास कार्यक्रम जन गण मन में आप सभी का स्वागत है। देश में कुछ जगहों के नाम हाल में डाला गया ग्लोबल को लेकर काफी राजनीति भी हुई। कहा गया है कि देश अब विनिवेशता के सभी निशान वाइपने को उतावला हो जाता है। इसलिए मांग बढ़ी कि हरबरी आक्रमणकारियों ने देश के प्राचीन, सांस्कृतिक और धार्मिक स्थानों के ”नाम बदल दिए” थे, उनका ”मूल” नाम फिर से रखने के लिए पुनर्नामकरण आयोग का गठन किया गया। इस संबंध में वरिष्ठ वकील और भारत के पी जरमेन के रूप में विख्यात अश्विनी उपाध्याय ने सुप्रीम कोर्ट में जनहित याचिका भी दायर की। मगर सुप्रीम कोर्ट ने सुनवाई के दौरान यह याचिका खारिज करते हुए आपस में रिश्तेदारी भी की। अदालत ने कहा कि भारत एक भटका हुआ देश है और वह किसी घटना में कैद होकर नहीं रह सकता। न्यायाधीश के.एम. जोसेफ ने कहा कि धार्मिक पूजा करने से कोई लेना-देना नहीं है। उन्होंने यह भी कहा कि मुगल सम्राट अकबर ने विभिन्न समुदायों के बीच सद्भावना बनाने की कोशिश की थी।

इसके बाद सवाल उठा कि जज साहब ने नाम परिवर्तन को सिर्फ धर्म से क्यों जोड़ा? प्रश्न उठाएं कि यदि आज भारत इस स्थिति में है कि इतिहास की फाइलिंग में सुधार हो सकता है, तो विखंडित की गई हमारी सांस्कृतिक विरासतों का पुनर्निर्माण कर सकते हैं, तो ऐसा क्यों नहीं किया जाना चाहिए? दूसरी ओर, वकील अश्विनी उपाध्याय का कहना है कि पुनर्नामकरण आयोग का काम खत्म नहीं हुआ है बल्कि यह अब शुरू हो गया है। उनका कहना है कि आयोग का मामला अब जनता की अदालत में चलेगा और हिंदुस्तान बेशक जीतेगा। उनका कहना है कि हिंदुस्तान अब सड़क पर उतरेगा और वहशी दरिंदों का नामोनिशान मिटने तक संघर्ष करेंगे।

हम आपको बताते हैं कि अपनी मांग के समर्थन में अश्विनी उपाध्याय का यह भी कहना है कि जिसका जिक्र कुरान में है वह उसी नाम से है। जिसका जिक्र बाईबल में है वह उसी नाम से है। लेकिन आक्रांता लेखकों द्वारा नाम बदलने के कारण जिन स्थानों का वर्णन वेद पुराण, गीता, रामायण में वे ढूंढ़ने पर नहीं मिलते हैं और इसीलिए कुछ लोग रामायण और महाभारत को काल्पनिक कहते हैं। उन्होंने इस संबंध में कुछ उदाहरण भी दिए-

(1) बेगू खां ने आजातशत्रु नगर को बेगूसराय बना दिया

(2) सरफराजन ने नालंदा बिहार को बिहार सरफराज बना दिया

(3) दरभंग खान ने द्वारबंगा को दरभंगा बना दिया

(4) हाजी शमसुद्दीन ने हरिपुर को हाजीपुर बना दिया

(5) सागर खान ने सिंहजानी को जलालपुर बना दिया

(6) मुजफ्फर ने विदेहपुर को मुजफ्फरपुर बना दिया

(7) अहमदशाह ने कर्णावती को मनगढ़ंत बना दिया

(7) बुरहान ने मेंढकापुर को बुरहानपुर बना दिया

(8) होशंगशाह ने नर्मदापुरम को होशंगाबाद बना दिया

(9) अहमद शाह ने अंबिकापुर को अहमदनगर बना दिया

(10) तुगलक ने देवमूर्ति को तुगलकाबाद बना दिया

(11) उस्मान अली ने स्ट्रीमशिव को उस्मानाबाद बना दिया

(12) फॉर्टिनगर को हैदराबाद बना दिया

(13) फरीद ने मोकलहार को फरीदकोट बना दिया

(14)समझाने खान ने विराट को समझ लिया

(15) करीमुद्दीन ने करीमनगर बना दिया

(16) महबूब खान ने महबूब नगर बना दिया

(17) निजाम ने इंदूर को निजामाबाद बना दिया

(18) अली मीर जाफर ने अलीपुर बना दिया

(19) मुर्शीद खां ने कीर्तेश्वरी को मुर्शिदाबाद बना दिया

(20) रामगढ़ को अलीगढ़ बना दिया

(21) अंबिका नगर को अमरोहा बना दिया

(22) फारूक ने पांचाल का फर्रुखाबाद किया

(23) भिठौरा को फतेहपुर बना दिया

(24) गाजी ने गजप्रस्थ को गाजियाबाद बना दिया

(25) जौना खां ने जमदग्निपुरम को जौनपुर बना दिया

(26) मिर्जा ने विंध्याचल को मिर्जापुर बना दिया

(27) मुराद ने रामगंगा नगर को मुरादाबाद बना दिया

(28) मुजफ्फर ने लक्ष्मीनगर को मुज्जफरनगर बना दिया

(29) शाहजहाँ ने गोमती नगर को शाहजहाँपुर बना दिया

(30) फरीद खां ने तिलप्रस्थ को फरीदाबाद बना दिया

अश्विनी उपाध्याय ने कहा कि हम आजादी की 75वीं वर्षगांठ मना रहे हैं लेकिन हमें धार्मिक और सांस्कृतिक स्वतंत्रता आज तक नहीं मिली। उन्होंने कहा कि आजादी के 75 साल बाद भी हमारे ऐतिहासिक सांस्कृतिक और धार्मिक शहरों का नाम दुर्दांत अपराधियों के नाम पर चल रहा है। उन्होंने कहा कि धार्मिक, सांस्कृतिक और ऐतिहासिक स्थलों का मूल नाम पता करने के लिए सरकार को एक आज्ञाकारी आयोग बनाना चाहिए और एक कानून बनाकर मुगलों और अंग्रजों द्वारा बदले गए सभी स्थानों का नाम एक साथ बदलना चाहिए।

 


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