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मनोज वाजपेयी को ‘सत्य’ के बाद क्यों नहीं मीला काम, बोले- ‘प्रोड्यूसर पोर्टफोलियो भरकर पैसा लाते थे पर…’

नई दिल्ली। मनोज वाजपेयी आज कई फिल्मों से लेकर हर जगह छाए हुए हैं। साल 1998 में निदेशक राम गोपाल वर्मा की फिल्म ‘सत्य’ के बाद मनोज भट्टे माहे के किरदार में कुछ ऐसे छाए कि लोग आज भी उनकी इस अंदाज को याद करते हैं। लेकिन जहां सफल फिल्म के बाद मनोज को सुपरहिट होना पड़ा, वहीं ‘सत्य’ के बाद उनके लिए सही काम करना उनके लिए मुश्किल हो गया। हाल ही में हुए एक इंटरव्यू में मनोज ने बताया कि किस दौर में उन्नीस उन्हीं कई बड़े प्रोड्यूसर्स को अपना दुश्मन भी बना लिया।

अपने इस इंटरव्‍यू में मनोज ने कहा, ‘मुझे एहसास हो गया था कि मैं वो काम नहीं करना चाहता, जो काम ये लोग मुझसे करवाना चाहते हैं। इस दौर में जो भी ऑफर मुझे आ रहे थे, वो वैसे नहीं थे जिन में मैं खुद को फिट पाता हूं। हां, लेकिन वो मुझे पैसा काफी अच्छी पसंद कर रहे थे। मेरे पास पैसे नहीं थे, काम नहीं था और बड़े-बड़े प्रोड्यूसर मेरे पास तारीफ लेकर आ रहे थे। उनके पास से फाइल पोर्टपोर्टम होता था और ऐसे में ऑफर्स को ठुकराना बहुत मुश्किल होता था। ये वो दौर था जब लोगों का अहंकार बहुत ज्‍यादा हुआ करता था और लोग बड़ी आसानी से आहत हो जाते थे। यही कारण था कि उस दौर में किसी भी फिल्म के लिए ‘न’ कहने के साथ ही मैं कई सारे दुश्‍मन बना रहा था।’

मनोज वाजपेयी अपनी पत्नियों शबाना रजा और बेटी के साथ। (फाइल फोटो)

मनोज सुचारिता त्‍यागी को द‍िए इस इंटरव्‍यू में आगे कहते हैं, ‘मैं अगर कहूं कि ‘सत्‍या’ जैसी ब्‍लॉकबस्‍‍‍‍‍टर फिल्‍म के बाद मेरे पास 8 या 9 महीने काम नहीं था तो कोई गारंटी नहीं होगी। पर वो सच है, क्योंक‍ि मुझे वो करना ही नहीं था जो वो मुझे दे रहे थे। धीरे-धीरे करते हुए मुझे कुछ अच्छी फिल्मों में रामू ने ही दी ‘कौन’, ‘शूल’ दी, फिर बाहर से मुझे ‘अक्कस’ मिली। पर वो बहुत ही समय के बाद मिलीती थीं और उतना पैसा भी नहीं मिला था। ‘पिंजर’ और ‘1971’ जब तक मुझे मिली, मैं बिलकुल खत्‍म हो गया था। इसके बाद फ़ायर खान और केके मैं फ़िल्मों में आए और फिर वो पहली पसंद बनने लगे। फिर मुझे काम मिलना बिलकुल ही बंद हो गया। तब मैं परेशान नहीं हुआ बल्‍कि मैं देख रहा था कि बहुत से लोग जिन्‍हें मैं नीचे से पकड़कर ऊपर लाया था, वो मुझे लेकर काम नहीं कर रहे थे।’

मनोज आगे कहते हैं, ‘अपने बुरे से बुरे समय में भी मैं डिप्रैस कभी नहीं हुआ। दरअसल मैं ऐसा बना ही नहीं हूं। मैं 2 घंटे से ज्यादा परेशान नहीं होता और आप पर काम करने लगता हूं। मैं बस एक पोस्टर का इंतजार करता हूं क्‍योंकि मैं जानता हूं कि मुझे अपना काम आता है। हालांकि इस सब के बीच मैंने काफी निचले स्‍तर का भी काम किया है। क्यूंकि मुझे अपने घर की रसोई भी चलानी पड़ी थी।’

दरअसल मनोज वाजपेयी ने एक इंटरव्यू में जिकर किया था कि निरदेशक लाइट झा की फिल्म ‘राजनीति’ से पहले 6-7 साल तक उन्हें कोई काम नहीं मिल रहा था।

टैग: मनोज बाजपेयी

 


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