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रामपुर उपचुनाव 2022 में आजम खान के वोटरों ने बीजेपी की ओर क्यों रुख किया रामपुर पॉलिटिक्स इनसाइड स्टोरी

उत्तर प्रदेश के रामपुर के इन दिनों खूब चर्चा हो रही है। इसलिए कि 1952 में हुए पहले विधानसभा चुनाव को लेकर आज तक इस जिले की रामपुर विधानसभा सीट पर कोई भी हिंदू उम्मीदवार जीत नहीं सका। ऐसा पहली बार हुआ है, जब वहां से कोई बीजेपी उम्मीदवार बीजेपी टिकट पर उप चुनाव में जीत दर्ज करता है। इससे पहले करीब चार दशक से समाजवादी पार्टी के नेता आजम खान का सियासी जादू यहां चल रहा है।

आजम खान ने 1980 में यहां से पहली बार जीत दर्ज की थी, जिसकी 13वीं विधानसभा लगातार चल रही है। इस बीच उनकी सांसद सांसद के तौर पर फिर 2019 में यूके की जगह उनकी पत्नी तंजीन फातिमा ने रामपुर सीट से नुमयंदगी की जगह लीं। 2022 के मार्च में फिर से आजम खान इस सीट से फिर चले गए, लेकिन 2019 के एक हेट स्पीच मामले में दोषी करार दिए जाने के बाद उनके विधायक चले गए। इसकी वजह से यहां चुनाव हुए लेकिन उनके उम्मीदवार असम रजा नहीं जीते और बीजेपी के उम्मीदवार आकाश सक्सेना 8 दिसंबर को मतगणना में 34,136 वोट से विजयी हुए।

रामपुर वैसे तो कई दशकों का साक्षी रहा है लेकिन मौजूदा सियासी बदलाव नई कहानी बयां कर रहा है। हिंदी फिल्मों में कभी यहां बनने वाली रामपुरी चाकुओं की ढाक थी और उसकी धार की नोक पर फिल्मों के विलेन जहां पीड़ित पर अपना रौब दिखाता था, वहीं ऑडियंस पर अपनी अमिट छाप छोड़ता था। समय बदला तो फिल्मों से रामपुरी चाकू की धमक लगी और रामपुर के नवाब की धाक भी चली गई।

बदल मिजाज:
रामपुर कभी छोटे-दादा उद्योग धंधों के लिए भी जाना जाता था, लेकिन आजम खान ने दिखावे में काम करने वाले गुणों के बल पर 1990 के दशक में राजनीति में बड़ा मुकाम हासिल किया। आज न तो उद्योग धंधे बचे हैं, न आजम खान का सियासी मुकाम। राजनीतिक सूचनाओं का कहना है कि दशकों में रामपुर का मिजाज अब बदल गया है।

रामपुर में 60% मुस्लिम मतदाता:
आंकड़ों की बात करें तो रामपुर में 60 प्रतिशत वोटर मुस्लिम हैं, जिनके दम पर आजम खान 1980 से अब तक कुल 9 बार विधायक चुने जा चुके हैं। आजम खान के विधायक जाने के बाद सपा ने यहां से अपने करीबी आसीम रज़ा को लेकर जो सैफी समुदाय से ताल्लुक रखते हैं। इस समुदाय की आबादी यहां बहुत कम है, जबकि पठानों की आबादी सबसे ज्यादा है।

मुस्लिम वोट बैंक में सेंधमारी और बंटवारा:
‘द प्रिंट’ के मुताबिक, रामपुर विधानसभा क्षेत्र में मतदाता मतदाता करीब 80 हजार हैं, जबकि तुर्क करीब 30,000 हैं, जबकि सैफी सिर्फ 3,000 के करीब हैं। सैफी उम्मीदवार होने की वजह से मुस्लिम अटैचमेंट ने जहां एक ओर अधिक वोटिंग नहीं की और कुछ मुस्लिमों ने बीजेपी के पक्ष में भी मतदान किया, वहीं हिंदू बहुल रुझान में खूब वोटिंग हुई।

चुनाव आयोग के आंकड़ों के अनुसार मुस्लिम इलाकों में कम से कम चार फीसदी और अधिकतम 39 फीसदी ही वोटिंग हुए, जबकि हिंदू बहुल क्षेत्रों में न्यूनतम 27 फीसदी और अधिकतम 74 फीसदी वोटिंग हुई।

स्पा में असंतोष और बगावत:
जैसे ही रामपुर सीट पर असम रजा की उम्मीदवारी का ऐलान हुआ, सपा के कई मुस्लिम चेहरों ने पाला बदल लिया और वे बीजेपी की तरफ चले गए। इस बार के चुनाव में वहां एक नारा गूंज रहा था- “अब्दुल दरी नहीं लाएगा, विकास का हिस्सा बनेगा।” यह स्पष्ट है कि मुसलमानों ने विकास का साथ देने का फैसला बीबीसी के साथ किया था।

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Saurabh Namdev

| PR Creative & Writer | Ex. Technical Consultant Govt of CG | Influencer | Web developer
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