
नदियों के किनारे पारंपरिक समुदाय से जीवन बसर करने वाली निषाद जातियों के बिहार में स्वघोषित सन ऑफ मल्लाह मुकेश सहनी की विकसित इंसान पार्टी (वीआईपी) 2024 के दशक के चुनाव से पहले दोराहे पर है। मुकेश मणि नहीं बना पा रहे हैं कि महागठबंधन के साथ निर्वाचित चुनाव लड़ें या फिर बीजेपी का हाथ पकड़कर एनडीए में वापसी कर लें। राजनीतिक तौर पर सियानी एक ऐसा नेता के तौर पर उभर कर सामने आता है जो किसी भी वक्त हाथ पकड़ सकता है और छोड़ सकता है। 2020 के विधानसभा चुनाव में वो तेजस्वी यादव की उस पीसी से निकलकर बीजेपी के पास गए थे जहां सीट शेयर करने का ऐलान हो रहा था।
बिहार में जो माहौल है उनका होश से तेजस्वी यादव की आरझानी, निवर्तमान कुमार की जेडीयू, कांग्रेस, लेफ्ट और जीतराम मांझी की हम महागठबंधन में 2024 का लोकसभा चुनाव लड़ सकते हैं। बीजेपी के डीकोडिंग वाले एनडीए में चिराग पासवान और जानवरपति पारस के स्टेक वाले लोजपा के दोनों धुंध के साथ ही उपेंद्र कुशवाहा की आरएल जुनी भी नजर आ रही है। बिहार के बड़े जातीय नेताओं में बस मुकेश ही बचे हैं हकीकत लाइन-लेंथ अभी तक तय नहीं दिख रहा है। बाकी सभी टीम में दिख रहे हैं।
ना काहू से दोस्ती, ना काहू से वैर: महागठबंधन और बीजेपी के साथ चुनाव लड़ रहे हैं मुकेश सहनी
मुकेश सहनी को सबका गठबंधन मिला है। इसलिए यह भी कहा जा सकता है कि मुकेश सहनी को किसी से वैर नहीं है। उनके दरवाजे सबके लिए खुले हैं। 2020 के विधानसभा चुनाव में आर जुडी से उन्हें मान-सम्मान नहीं मिला या यूं कहें कि सम्मान भर टिकट नहीं मिले। मुकेश भोई बीजेपी के साथ गए तो मुंह ऐसा जलाएं कि अब पानी भी फंक-फूंक कर पीएं। मुकेश सहनी के राजनीतिक व्यवहार को देखने से यह स्पष्ट होता है कि जो उनके और उनके पक्ष के अधिकारों के लिए समान होगा। जिस गठबंधन में ज्यादा सीट मिले, मुकेश सहनी उनका झुकाव कर सकते हैं।
जनवरी में पासवान, फरवरी में स्टेरी, अब कुशवाहा: बिहार में बीजेपी का ऑपरेशन कमांडो चालू है
मुकेश सहनी 2018 से पहले बीजेपी के लिए फ्रीलांस नेता के तौर पर काम कर रहे थे। बीजेपी ने जरूरत के हिसाब से 2014 के दशक और 2015 के विधानसभा चुनाव में मुकेश सहनी का इस्तेमाल किया। बाद में सेनी का बीजेपी से मोहभंग हो गया क्योंकि मल्लाह जाति को एससी का स्तर नहीं मिला। 2018 में सहनीय ने अपनी पार्टी की जिम्मेदारी ली। फिर 2019 का विधानसभा चुनाव महागठबंधन के साथ लड़ा। 3 सीट मिली थी लेकिन तीनों हार गए। स्टेनी खुद खगड़िया सीट से लाख के मार्जिन से लोजपा के महबूब अली कैसर से हार गए थे। मधुबनी और मुजफ्फरपुर में अधिकृत उम्मीदवार 4 लाख से ज्यादा के अंतर से हारे।
ना आज जिंदा, ना विधानसभा फिर भी सन ऑफ मल्लाह मुकेश सहनी के हौसले बुलंद
फिर आया 2020 का विधानसभा चुनाव। मुकेश सहनी महागठबंधन में ही थे, लेकिन सीट पर बात नहीं बनी और तेजस्वी यादव की प्रेस कॉन्फ्रेंस में बगावत का झंडा फहराकर मुकेश सहनी एनडीए में चले गए। बीजेपी ने 11 सीटों की साझेदारी को लेकर साझेदारी की है और मुकेश से पूरी तरह से जुड़ा हुआ है। अधिकारिता के उम्मीदवार इस बार 4 सीटों पर जीत गए लेकिन मुकेश सहनी इस बार भी हार गए। बीजेपी ने मुकेश मणि को 6 साल की अवधि वाली सीट के बदले में लदान भत्ता समाप्ति टर्म काउंटिंग काउंसिल सीट से एमएलसी बनाया और मंत्री सरकार में मंत्री भी बनवाया।
2024 के चुनाव में 6 विधानसभा सीट, 1 विधायक सांसद, 2 एमएलसी: चिराग पासवान को इतना गठबंधन करेगा कौन?
फिर से लाइव बीजेपी से ही फाइट करें। बिहार में स्थानीय निकायों की 24 एमएलसी सीट के चुनाव में एनडीए ने उनके खिलाफ लड़ाई लड़ी, जब उनकी पार्टी को एक भी सीट नहीं मिली। एनडीए में बीजेपी 12, जेडीयू 11 और पशुपति पारस की रिलाजोपा 1 सीट पर चुनाव लड़े हैं। सहनशील थे। तो बीजेपी से लड़ते हुए उत्तर प्रदेश में 2022 के विधानसभा चुनाव में पहुंचे। फिर ब्राजीलियाई शेयर बराबरी करने लगा।
बीजेपी ने 2020 में मुकेशानी को 11 सीट दी, 2022 में सभी उम्मीदवार हटाए गए
इससे पहले मार्च में ही निगम ने तीन प्रकार के होते हुए निगम से संबद्धता का नाम कटवा दिया। तिकड़ी ने तब कहा कि वो बीजेपी के नेता थे, सीट शेयरिंग में सीट की पात्रता थी तो पार्टी कहने पर अधिकार से लड़े थे और अब वापस अपने घर लौट आए हैं।
फिर सहनी की पार्टी के चौथे विधायक मुसाफिर पासवान के निधन से खाली मिलने पर सीट पर बीजेपी कैंडिडेट दे दिया। सानई की कैंडिडेट भी बोचहां से लड़ीं। बीजेपी और मुकेशानी की लड़ाई में सीट आरजेडी ने निकाल दिया, जिसने दिवंगत एमएलए मुसाफिर पासवान के बेटे अमर पासवान को उम्मीदवार बनाया था।
लोकसभा चुनाव को लेकर क्या है वीआईपी की रणनीति? मुकेशानी ने किया खुलासा
पूर्वांचल की पॉलिटिकल गलियारों में मुकेश साईं का दलाली का बीजेपी ऑफिस खूब चल रहा है और वो एनडीए की तरफ झुके हुए दिखाते हैं। फरवरी में मुकेश सैनी को केंद्र सरकार की तरफ से वाई प्लस श्रेणी की सुरक्षा दी गई है जो इशारा करता है कि उनकी पार्टी और बीजेपी के बीच की कड़वाहट खत्म हो गई है। 2014 के चुनाव में बीजेपी बिहार की 30 हफ्ते की सीट और 22 उपस्थिति थी। तब रामविलास पासवान की लोजपा 7 लड़कर 6 जुड़ाव थी और उपेंद्र कुशवाहा की रिजालोसपा 3 सीट लड़ी और रियो योजना थी। 2019 के चुनाव में बीजेपी और जेडीयू 17-17 और लोजपा 6 सीटों पर मुकाबला हुआ था। जेडीयू की एक सीट छोड़कर एनडीए को 39 सीटों पर जीत मिली थी।
मुकेश साईं को चिराग पासवान की पार्टी से एक महीने की सीट पर बंधक नहीं बनाया गया है
बीजेपी ने 2024 के चुनाव में 30 से 32 महीने की सीट लड़ने का मन बनाया है। मुकेश सहनी को समायोजित नहीं करना है तो एनडीए गठबंधन में सीट बंटवारे में बहुत मुश्किल भी नहीं होगी। बीजेपी थोड़ा आपसी दिखावा 2014 का फॉर्मूला मानता है या फिर सख्ती से गठबंधन करता है तो पासवान को 5 और कुशवाहा को 2 सीट देकर खुद को 32 लड़ता है। लेकिन सहनी को साथ लाना है, लड़ना है तो सीट तो देना होगा।
सूत्र का कहना है कि मुकेश सेरई ने बीबीसी के सामने दो शर्तें रखी हैं। उनमें से एक चिराग पासवान की पार्टी को कम सीट नहीं दी जानी चाहिए। जितनी ज्यादा हो उतनी ही ज्यादा सीट बीजेपी चिराग को दे सकते हैं। दूसरी बात कि सीटें 3 से कम नहीं हो रही हैं, जैसे उन्हें 2019 के 16 जून के चुनाव में महागठबंधन दिया गया था।
सभी जाल पर भारी वीआईपी, मुकेश सहनी को साथ के लिए बिना किसी का कल्याण नहीं; सन ऑफ मल्लाह का दावा
बिहार में साहनी, निषाद, बिंद और गंगोट जैसे दो नौकरशाह आय-उपजाति हैं वास्तव में एकमात्र नेता होने का दावा मुकेशानी करते हैं। दावों के लिए उन्होंने खुद को सन ऑफ सलाह की डिग्री दी है। रिपोर्ट के मुताबिक बिहार में मल्लाहों की आबादी 8-10 प्रतिशत है। जिन क्षेत्रों में नादियां, तालाब व पोखरे हैं वहां मल्लाह ज्यादा हैं। इस होश से उत्तर बिहार के कई क्षेत्रों में मुकेशानी का प्रभाव ज्यादा माना जा सकता है।
वोटर वोट शेयर में मुकेश सेनी का पलड़ा भारी लेकिन बीजेपी के सामने कितना वजन?
जातीय वोट शेयर के होश से बात करें तो मुकेश सहनी का वजन चिराग पासवान या उनके अंकल पशुपति कुमार पारस और उपेंद्र कुशवाहा से ज्यादा है। बिहार में पासवान और कुशवाहा दोनों जातियों के वोट 6 परसेंट लाइफ का रिपोर्ट है। इसलिए वोट शेयर में पासवान और कुशवाहा पर भारी माइक एसईएन एनडीए के सीट बंटवारे में भागीदारी को कोई नुकसान नहीं पहुंचाना चाहते हैं। इसलिए मुकेश सहनी कह रहे हैं कि अधिकृत सीटें चिराग पासवान की लोजपा-रामविलास से कम ना हों।
अस क्राइसिस बीजेपी के सामने है कि कैसे वो बिहार में 30-32 सीटों पर लड़ेंगे और चिराग पासवान, पशुपति पारस, उपेंद्र कुशवाहा और मुकेश सहनी को भी साथ रखेंगे। 10 सीट में इन चार नेताओं को मनाना आसान काम नहीं है और इससे नीचे बीजेपी नहीं जाना चाहते क्योंकि छोटे दलों के त्रिशंकु सदन बनने पर जाने का खतरा भी रहता है। मुकेश सहनी तो 2020 में महागठबंधन के संवाददाता सम्मेलन में पाला अपनी चर्चा जाहिर कर ही चुके हैं।



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