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आईएमएफ ऋण पर भारत-पाकिस्तान कहां खड़ा है, मनमोहन-राव आर्थिक मॉडल 1991 के बाद भारत कैसे बदला – अंतर्राष्ट्रीय समाचार हिंदी में

1947 में भारत से पहली रात अलग हुआ मुस्लिम देश पाकिस्तान पिछले 75 सालों में सबसे खराब आर्थिक दौर से गुजर रहा है। एक तरफ देश में झलकते हुए आसमान पर है तो दूसरी तरफ वह कर्ज के बोझ से दबकर जा रहा है। पाकिस्तान के पास विदेशी मुद्रा विक्रेता पिछले 9 वर्षों में सबसे निचले स्तर पर चुका है।

3 फरवरी को समाप्त हुए सप्ताह में पाकिस्तान के विदेशी विक्रेता 170 मिलियन डॉलर गिरकर 2916 मिलियन डॉलर रह गए, जो पाकिस्तान के इतिहास में पिछले 9 वर्षों में सबसे कम है। इससे पाकिस्तान में डिफॉल्टर होने का खतरा और बढ़ गया है। पाकिस्तान इन सौदे के लिए अंतरराष्ट्रीय मुद्रा कोष (IMF) पर टिका हुआ है। पाकिस्तान को उम्मीद है कि आईएमएफ 6.8 अरब डॉलर का आर्थिक पैकेज नौवें किश्त के रूप में 1.8 अरब डॉलर जल्द जारी कर सकता है। इसके लिए पाकिस्तान ने छलांग के सामने घुटने टेकते हुए अपना पूरा मान ली। अब तो पाक सरकार ने 170 अरब रुपये देने के लिए मिनिमम बजट भी पेश कर दिया है, जिससे पाकिस्तान में अपना बताहाशा जताने का खतरा और बढ़ गया है।

IMF का नंबर 1 मुरीद पाकिस्तान, नंबर 2 कौन?
पाकिस्तान के सेंट्रल बैंक (स्टेट बैंक ऑफ पाकिस्तान) के पूर्व डिप्टी गवर्नर मुर्तजा सैयद ने पाकिस्तान के अखबार ‘द न्यूज’ में लिखित एक दस्तावेज में इस बात पर आश्चर्य व्यक्त किया है कि पाकिस्तान बार-बार आई मैपिंग के पास क्यों जा रहा है? उन्होंने कहा कि पाकिस्तान में पहले से ही IMF के 23 कार्यक्रमों की एक विशाल संख्या है, जो स्पष्ट रूप से बताता है कि हम कर्ज लेने के आदी हो गए हैं। सैयद ने लिखा है, “वास्तव में, हम असमंजस के सबसे वफादार ग्राहक हैं, जबकि 21 कार्यक्रमों के साथ अर्जेंटीना दूसरे नंबर पर है।”

IMF से लोन क्यों लेता है कोई देश?
कोई भी देश आम तौर पर अंतरराष्ट्रीय मुद्रा कोष (आईएमएफ) के पास जाता है, जब उसका विदेशी मुद्रा भंडार समाप्त हो जाता है या हो रहा है। विदेशी मुद्रा विक्रेता विदेश से होने वाले आयात के भुगतान के लिए और विदेश से ऋण के लिए दिए गए ऋण का भुगतान करने के लिए जाता है।

कोई भी देश दो तरीकों से विदेशी मुद्रा खरीददार बढ़ा सकता है। सबसे पहले, वह खाता अकाउंट सरप्लस कर ऐसा कर सकता है, जिसमें एक ऐसी स्थिति होती है, जहां अटैचमेंट से अधिक हो जाता है। दूसरी स्थिति में, भले ही वह क्वेरी डेफिसिट हो, लेकिन वह ऋण या इक्विटी के रूप में विदेशी मुद्रा प्रवाह को बढ़ा कर विदेशी मुद्रा निवेशक का निर्माण कर सकता है, जो कि अधिक से अधिक हो सकता है।

1991 के बाद भारत ने IMF का रूख नहीं किया:
स्टेट बैंक ऑफ पाकिस्तान के पूर्व डिप्टी गवर्नर ने इस मामले में भारत की आकांक्षा की है। उन्होंने कहा कि एक ही रात हम आजाद हो रहे हैं। पाकिस्तान कर्ज के बोझ में डूब गया, जबकि भारत ने केवल सात बार ही आई जंप से लोन लिया है और 1991 के ऐतिहासिक मनोजन-राव आर्थिक सुधार मॉडल के बाद से भारत ने फिर कभी भी अंतरराष्ट्रीय मुद्रा कोष से लोन नहीं लिया। सैयद ने लिखा है कि 75 साल के पाकिस्तान के इतिहास में 23 बार ग्लोबल इमरजेंसी वार्ड में दौड़ना देश चलाने का सही तरीका नहीं हो सकता है।

भारत ने कब-कब लिया IMF से लोन?
आईएमएफ के आंकड़ों के मुताबिक भारत ने 1957 से 1991 के बीच कुल सात बार लोन लिया है। 1957 में भारत ने पहली बार 7.2 करोड़ डॉलर का लोन लिया था, जबकि 1962 और 1964 में दूसरी और तीसरी बार 10-10 करोड़ डॉलर का कर्ज लिया था। सातवीं और आखिरी बार भारत ने 1991 में 1.6 अरब डॉलर का कर्ज फंसाया था। 31 मई, 2000 तक अंतर्राष्ट्रीय मुद्रा कोष से लिए गए सभी ऋणों का पुनर्भरण भारत ने कर दिया था।

किस देश के पास कितना विदेशी मुद्रा विक्रेता:
पाकिस्तान के पास आज विदेशी मुद्रा विक्रेता 3 अरब डॉलर से भी कम रह गया है। इतिहास में पाकिस्तान का विदेशी मुद्रा विक्रेता कभी भी 21 अरब डॉलर के पार नहीं जा सकता है, जबकि 1971 में वह अलग हुआ देश बांग्लादेश के पास लगभग 35 बिलियन डॉलर का विदेशी मुद्रा विक्रेता है। भारत के पास करीब 600 अरब डॉलर और चीन के पास 4 अक्षर डॉलर हैं।

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Saurabh Namdev

| PR Creative & Writer | Ex. Technical Consultant Govt of CG | Influencer | Web developer
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