
सवाल- दिल्ली में बहुत सर्दी हो रही है। आप भी वृत्तांत से हैं, तो अब सीज़न का आनंद ले रहे हैं?
उत्तर- नहीं, मैं उन लोगों में से हूं जिन्हें दिल्ली की सर्दी पसंद नहीं है। मुझे दिल्ली की गर्मी ज्यादा पसंद है। कई लोगों को सर्दी पसंद नहीं होती है और गर्मी पसंद होती है। शायद मेरे शरीर की सूरत ऐसी है कि गर्मी ठीक लगती है या मैं ये भी कह सकता हूं कि मैं ज्यादा चर्बी नहीं है शरीर पर, तो गर्म नहीं रखने वाले खुद को। इसलिए मुझे गर्मी में समस्या नहीं होती।
सवाल- आपकी फिल्म ‘छतरीवाली’ सेक्स एजुकेशन के बारे में बात करती है। आखिर क्यों इस विषय पर बात करना जरूरी है?
उत्तर- अगर आप तथ्य देखें, तो भारत में सबसे ज्यादा टीनेज प्रेग्नेंसी होती हैं जिसकी वजह से अवैध नाजायज भी होते हैं। लेकिन अगर शिक्षा होगी तो टीनेज प्रेग्नेंसी नहीं होगी। अब किताबों में तो है, 9वीं क्लास में इसका चैप्टर होता है यानी जब आप 14 साल के होते हैं। उस समय आपको पूरी जानकारी मिलनी चाहिए क्योंकि किताबों में करिकुलम गतिविधियां भी होती हैं, क्लासेज भी होती हैं। लेकिन समाज के तौर पर हम इसके बारे में बात ही नहीं करते। तो हम इसके बारे में एकादश सामान्य रूप से बात करेंगे, हालांकि वह सामान्य हो जाएगा।
सवाल- लेकिन कई महिलाएं भी सेक्स एजुकेशन के बारे में बात नहीं करना चाहती हैं। जब वो ही बात नहीं बनती तो ये बात कैसे सामान्य होगी।
उत्तर- क्योंकि उन्हें इस बात की जानकारी नहीं है कि ये सामान्य बात है। दरअसल हम लोग एक सोसाइटी के अंदर कई अलग-अलग तरह के सोसाइटी में बंटे हुए हैं। उन अलग-अलग समाजों में अलग-अलग कम्फर्ट स्तरों में लोगों की बात करने का। थोड़ी इलीट सोसायटी में इस बारे में बात थोड़ी सामान्य होगी। उसी शहर में थोड़ी दूर जाने पर बात अलग तरह की होगी। तो हमें स्कूल के स्तर पर इसे सामान्य करना होगा। जिस तरह हम बात करते हैं कि ये दिल है, ये दिमाग है तो हम ये क्यों नहीं कह सकते कि ये यूटरस है। ये सामान्य बात है। अगर यूटरस नहीं होता तो ये दुनिया नहीं होती। फिल्में भी इस काम में मदद करें। जैसे कि पैडमैन एक फिल्म थी, उसने सीक्शंस के बारे में बात करने को सामान्य बना दिया। तो हम इस विषय पर संवेदनशीलता के रूप में समझदारी से बात करें कि यही हमारे अस्तित्व का सच है और इसी तरह बच्चे पैदा होते हैं, ये हमारे शरीर के अंगों के नाम हैं। तो जितना हम शिक्षा के माध्यम से इसके बारे में बात करेंगे, उतना ही यह सामान्य रहेगा।
सवाल- एक्शन वगैरह में क्या कोई अलग तरह का किरदार देखने को मिलेगा?
उत्तर- अभी नहीं तो कोई एक्शन नहीं कर रहा हूं लेकिन अगर सही मौका मिलता है तो मैं निश्चित रूप से किसी को चाहता हूं तो।
सवाल- थिएटर रिलीज शुरू हो गया है तो आपकी फिल्म ओट्टी पर क्यों आ रही है?
उत्तर- हमारी फिल्म शुरू से ओटीटी पर ही थी। ये एक लेबल टॉपिक है, तो ब्रांड समझकर आप थिएटर नहीं जाएंगे और उतर जाएंगे। लेकिन अगर ओटीटी पर ये आ गई और आपके आसपास किसी ने देख ली, आपको बताया कि सामान्य फिल्म है, परिवार के साथ देख सकते हैं तो आप इसे देख लेंगे। मतलब थिएटर की प्रतिक्रियाओं पर दर्शकों का जजमेंट नहीं होगा। हमारा उद्देश्य है कि मनोरंजन करना ही है, साथ ही सही दर्शकों तक चौकियां भी हैं। ओटीटी दृष्टिकोण 2 और 3 शहरों में भी बहुत अधिक पहुंचता है, तो उसके माध्यम से यह ज्यादा से ज्यादा लोग तक पहुंच जाते हैं।
सवाल- पिछले साल 2022 पूरी फिल्म इंडस्ट्री के लिए पूरी तरह से डिजास्टर रहा। इसकी क्या वजह मानते हैं आप?
उत्तर- आप 2022 से पहले साल देखें तो उस साल सारे थिएटर बंद ही हो गए थे। 2022 में कम से कम थिएटर खुले तो सही। कहीं से तो शुरुआत नहीं हुई। यह एक तरह से बस माइंडसेट है। दो साल तो थिएटर बंद ही रहे, तब फिल्में ही नहीं आईं। तो अब एक-दो साल तो ठीक नहीं होने में। ऐसा है कि जब आपका एक्सीडेंट हो जाता है तो बैसाखी पकड़कर धीरे-धीरे चलना शुरू करते हैं। तो हम बैसाखी पकड़ के लिए दौड़ रहे हैं, दौड़ भी रहे हैं। ये हाल हर इंडस्ट्री के साथ रहा है। अगर कोई कहता है कि साउथ की फिल्में चलती हैं तो साउथ एक नहीं है, वहां चार इंडस्ट्री हैं। ऐसे तो आप मराठी जोड़ लो, बंगाली जोड़ लो कि उत्तर भारत का सिनेमा चला गया। लेकिन ये सभी अलग हैं। हर उद्योग में हर शुक्रवार को फिल्में रिलीज होती हैं और उनमें से एक-दो हिट होती हैं। वो तो हमारे भी हैं।
सवाल- 2023 में आप किस वजह से काम कर रहे हैं?
उत्तर- मैं अभी दो फिल्मों की शूटिंग कर रहा हूं तो इस साल उनकी रिलीज होगी। इसके अलावा मैं शंकर सर (तमिल फिल्मों के डायरेक्टर) के भारतीय 2 में भी काम कर रहा हूं।
सवाल- सोशल मीडिया पर फिल्मों को लेकर जो नेगेटिविटी बन रही है, बायकॉट का कल्चर चल रहा है, उसे कैसे वॉयरा किया जाए?
उत्तर- हम सिर्फ नकारात्मकता देखकर नकारात्मकता का सवाल पूछ रहे हैं। इस बारे में प्रश्न व्यापक बंद हो जाते हैं तो नकारात्मकता भी धीरे-धीरे बंद हो जाएगी। देखिए सोशल मीडिया पर हर कोई अपना एक ओपिनियन है। वो 10 लोग सच में कुछ लेना-देना नहीं है, वो बस अपना मत छोड़ कर चले जाते हैं। जब सोशल मीडिया नहीं था, तब ही हर इंसान का अपना विचार होता था। लेकिन वह पता नहीं लगता था। सिर्फ सोमवार को क्रिटिक्स की समीक्षा आती थी और तब पता चलता था। लेकिन आज सबका मत है तो नकारात्मकता के बारे में बात हो रही है क्योंकि लोग उसे आकर्षित करते हैं। अगर मैं उसके बारे में बात करना बंद कर दूं तो वह नहीं है क्योंकि हर रोज अपना ख्याल रखने का हक होता है।



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