बिहार में 1 अप्रैल, 2016 से नीतीश कुमार की सरकार ने पूरी तरह से शराबबंदी कर रखी है। आज से 80 महीने पहले जब शराब बंद हुई तब बिहार में महागठबंधन सरकार थी। इस बीच निरंकुश ने कुछ साल के लिए बीजेपी के साथ सरकार की आशंका जताई लेकिन शराबबंदी जारी हो रही है। अब फिर से दमदार और तेज यादव की सरकार चल रही है। बिहार में जहरीली देसी शराब पीने से 60 से ज्यादा लोगों की मौत के बीच एक बार फिर से शराबबंदी की नाकामी चर्चा के केंद्र में है। बिहार में शराबबंदी है- सच है। बिहार के कोने-कोने, गांव-गांव में शराब बिक रही है- सच है।
नतीजा ये है कि 6 साल से लागू शराबबंदी में लाखों लोगों की जेलें जा चुकी हैं, कोर्ट पर लाखों मामलों का बोझ बढ़ गया है। पुलिस से लेकर उत्पाद विभाग तक के भ्रष्टाचार की गंगा में शराब का अवैध धंधा पूरे राज्य में वायरल हो रहा है। लोग मरते हैं, कुछ दिन हुक्म होता है। फिर सब भूल जाते हैं। फिर लोग मरते हैं, फिर हुक्म होता है और फिर लोग सब भूल जाते हैं। सक्रिय कुमार पादरी को तैयार ही नहीं है कि शराबबंदी के साथी और भ्रष्ट कर्मचारी, अधिकारी और पुलिस इसके पास होने की रत्ती भर नहीं मानते हैं।
पोषक शराब पीकर मरे लोगों के घर वालों को आज़ादी की मांग को खारिज करते हुए यहां तक कह जा रहे हैं कि जो पिएगा, वो मरेगा और जो शराब कर मरेगा उसके परिवार को कोई स्वतंत्र नहीं देंगे, ये लोग किसी तरह की सहानुभूति के लिए नहीं हैं। मौजूदा राजनीति में इस तरह का बयान देने का जिक्र सभी नेता नहीं उठा सकते। इससे यह भी लगता है कि शराबबंदी को कितना आत्ममुग्ध और जकड़े हुए हैं कि एक नाकाम व्यवस्था और कानून की मृत निकाय आपके सिर पर पगड़ी की तरह बांधे हुए घूम रहे हैं।
निक्रिय कुमार ने साफ-साफ कहा, कुछ भी खत्म नहीं होगा शराबबंदी
विपक्षी बीजेपी ही नहीं, सरकार को समर्थन दे रहे वामपंथी और आम लोग भी सवाल उठा रहे हैं कि जब नौकर नौकर की अवैध आपूर्ति बंद नहीं कर रहे हैं तो किस बात की शराबबंदी। चुने के नेताओं का यहां तक कहना है कि इससे अच्छा शराबबंदी दे सरकार जिससे गरीब लोग सही देसी शराब पी सक्षम और मरने से बचत सक्षम। अभी स्थानीय स्तर पर चोरी-छिपे कोई भी देसी शराब बनाने का धंधा चला रहा है जिसमें बनी शराब कई बार जहरीली बन जाती है। इस तरह की देसी शराब बनाने का धंधा राज्य के हर इलाके में चल रहा है। इसलिए कभी जहरीली शराब से बेतिया में मौत होती है तो कभी भागलपुर में। राज्य का कोई कोना और कोई हिस्सा इस धंधे से नहीं है।
आइए एक नजर डालते हैं बिहार को परमाणु कुमार की शराबबंदी से क्या मिला और क्या नुकसान हुआ।
शराबबंदी से बिहार को फायदा
1. बिहार में महिलाओं के खिलाफ पति या सुसुराल के लोगों के हाथों घरेलू हिंसा के मामलों में 37 प्रतिशत की कमी आई है। राष्ट्रीय स्तर पर इस तरह के मामले 12 परसेंट हैं।
2. बिहार में महिलाओं के साथ अपराध की दर में 45 प्रतिशत की कमी आई है। राष्ट्रीय स्तर पर महिलाओं के साथ अपराध की दर में 3 प्रतिशत की वृद्धि दर्ज की गई है।
3. शराब पीने से होने वाले नुकसान को लेकर जागरुकता है।4. सार्वजनिक जगहों पर शराब पीकर उत्पात और हुड़दंग के मामले नागनी हुए हैं।
शराबबंदी से बिहार को नुकसान
1. सबसे बड़ा घाटा हुआ है। राज्य को 2015 में लगभग 4000 करोड़ की कमाई हुई थी। अनुमान है कि तब से अब तक 35-40 हजार करोड़ के राजस्व का चांस हाथ से निकल गया है।
2. मद्य निषेध विभाग पर खर्च बढ़ा- शराबबंदी लागू करने के लिए मद्य निषेध विभाग पर करोड़ों रुपए हर साल खर्च हो रहे हैं। छह साल में मद्य निषेध सैनिकों के पदों पर हजारों लोगों की भर्ती हुई है।
3. बिहार में शराब से एक अंडरवर्ल्ड तैयार हो गया है। कानून व्यवस्था के लिए ये भविष्य में खतरा हमेशा बना रहेगा। शराब बंद होने की स्थिति में ये सब अपराध में घूमेंगे।
4. शराबबंदी के बावजूद बिहार में शराब के अवैध धंधे से हर साल शपथ ग्रहण के तौर पर 10 हजार करोड़ का काला धन पैदा हो रहा है जो राजनेता, माफिया, पुलिस और उत्पाद विभाग के लोगों के बीच बंट रहा है।
5. सड़क दुर्घटना में मौत के मामले- सड़क दुर्घटना में मौत को शराब से जोड़कर भी देखा जाता है। घोषित तौर पर शराबबंदी के बावजूद बिहार में 2016 में सड़क हादसों में 10571 लोगों की मौत हुई थी। 2017 में 11797, 2018 में 12717, 2019 में 15211, 2020 में 14474 और 2021 में 8974 लोग सड़क दुर्घटना में मारे गए। 2021 को छोड़ें तो मौतों की संख्या 2016 से बढ़ती ही जा रही है।
6. संज्ञेय अपराध और बड़े क्राइम- 2016 में बिहार में 189681 संज्ञेय मामले दर्ज हुए थे जो 2017 में 236037 और 2018 में 262802 हो गए थे। इसी तरह मेजर क्राइम 2016 में 52316 से 2017 में 58846 और 2018 में 64118 हो गए।
शराबबंदी पर अदालत में किरकिरी
1. सुप्रीम कोर्ट ने बिहार के शराबबंदी कानून को उन कानूनों के उदाहरण के तौर पर पेश किया, जिससे दूरदृष्टि की कमी दिखती है।
2. सुप्रीम कोर्ट ने कहा कि बिहार के शराबबंदी कानून ने कोर्ट का दम घोंट रखा है। हाई कोर्ट के 14-15 जज शराब मामलों में बेल के मामले सुन रहे हैं और बाकी मामलों की सुनवाई प्रभावित हो रही है।
3. पूर्व हाई कोर्ट ने कहा है कि बिहार में शराबबंदी लागू करने में सरकार फेल है और इसकी वजह से लोगों को गांजा-चर और दूसरे ड्रग्स की लत लग रही है।