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वध मूवी रिव्यू: लाचार मां-बाप की कहानी है ‘वध’, बंधन मिस्त्री में डूबा है सस्पेंस

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फिल्म ‘वध’ अजय देवगन की ‘स्क्रीनम’ की याद दिलाती है।
संजय मिश्रा की नायिकाएँ साहसी हैं।

मुंबई. जब दो उमदा कलाकार एक साथ होते हैं तो फिल्मी नायिकाओं के चरित्र से प्रभावित हो जाता है। ऐसी ही एक फिल्म आज रिलीज हुई है, जिसका नाम है ‘वध’। फिल्म में संजय मिश्रा और नीना गुप्ता लीड रोल प्ले कर रहे हैं। ‘वध’ का पोस्टर देखने पर यह एक लाचार मां-बाप की कहानी जैसी दिखती है। लेकिन जब आप फिल्म देखेंगे तो सस्पेंस मेमोरियल के जोन में चले जाएंगे। फिल्म का यह दमदार ही है इस फिल्म की अलग स्थापना है और कम से कम दर्शकों के लिए यह अपनी ओर खींचने में भी कामयाब हो सकती है। फिल्म को देखते ही आपको एक बारगी ‘दश्यम 2’ की याद आ जाएगी।

कहानी: सबसे पहली फिल्म के प्लॉट पर बात करते हैं. फिल्म की कहानी मशहूर संगीतकार शंभुनाथ मिश्रा (संजय मिश्रा) और उनकी पत्नी जेंट मिश्रा (नीना गुप्ता) के स्टूडियो-गिर्द हैं। उनके दोनों बेटे प्रजापति (सौरभ सचदेवा) बेहतर कैरियर बनाने के लिए विदेश में हैं और इसके लिए वे कर्जदार बन गए हैं। बेटा सैटल तो हो जाता है लेकिन उसे मां-बाप के अध्ययन से कोई मतलब नहीं है. मां-बाप की जिंदगी में उस वक्त का दौर तब आता है, जब वे एक अर्थशास्त्री मिस्त्री का हिस्सा बन जाते हैं। इसके बाद की कहानी कई बार टर्न के बाद अंत तक डिलीवरी है।

अभिक्रियाएँ: संजय मिश्रा की पहचान उन्हीं अभिनेत्रियों में से है। हर फ्रेम में वे आपको इस धागे से बांध लेते हैं कि दर्शक उनके किरदारों से आसानी से जुड़ जाते हैं। इस फिल्म में भी उनकी एक्टिंग कमाल की है। बुकफादर के दर्द, इकोनॉमिक स्टूडियो और मिस्त्री वाले एंगल को उन्होंने यूकेरा पर शुरू किया है। दूसरी तरफ, नीना गुप्ता ने भी अपने एक्टर के साथ न्याय किया है। सादगी एक माँ के किरदार को वे काफी अच्छे से प्रदर्शित करते हैं।

सैंड हाफ प्रभावशाली: फिल्म के पिक्चर पिक्चर की बात की जाए तो जसपाल सिंह संधू और राजीव बर्नवाल की फिल्म का फ़्लो बनाए रखने की पूरी कोशिश की गई है। हालाँकि फिल्म का पहला हाफ थोड़ा स्लो है, जो थोड़ा परेशान करता है। वहीं, फिल्म का दूसरा हाफ प्रभावशाली है और मिस्त्री वाले एंगल से पकड़ बनाता है।

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फिल्म में बुजुर्ग डम्पट्टी के इमोशंस को मिस्त्री के साथ बेहतर तरीके से पेश करने की कोशिश की गई है। कहानी में ताजगी है. इसे पहले हाफ में कसा जा सकता था और फ़्लो को और बेहतर बनाया जा सकता था। कुल मिलाकर अगर आप सैस्पेंस को पसंद करते हैं और उमादा के किरदार देखना चाहते हैं तो यह फिल्म आपके लिए है।

विस्तृत रेटिंग

कहानी:
स्क्रिनप्ल:
डायरेक्शन:
संगीत:

टैग: छवि समीक्षा, नीना गुप्ता, संजय मिश्रा

 


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