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उत्तराखंड हाई अलर्ट सिर्फ जोशीमठ ही नहीं, ये पांच शहर भी खतरे में भूस्खलन, कहीं दीवारें टूटी, तो कहीं आपस में घर…अकेले जोशीमठ ही नहीं, उत्तराखंड के इन 5 शहरों पर भी मंडरा रहा खतरा

जोशीमठ के घरों, झूलों और इमारतों में दरारें- India TV Hindi

छवि स्रोत: पीटीआई
जोशीमठ के घरों, छतों और छतों पर दरारें

उत्तराखंड का जोशीमठ पिछले कुछ दिनों से जारी है। यहां के घरों, इमारतों और तैरने में दरारों का आना लगातार जारी रहता है, जिससे लोग प्रभावित होते हैं। प्रशासन और सरकार हाई अलर्ट पर है। खुद प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी पूरी स्थिति पर अपडेट ले रहे हैं। प्रशासन खतरनाक इमारतों को गिराने की तैयारी में हैं। पवित्र दर्शन स्थल बद्रीनाथ धाम के रास्ते से इस शहर के 131 संभावित सुरक्षित स्थानों पर पहुंच जाता है। जोशीमठ में 723 इमारतें क्षतिग्रस्त हो गई हैं। इसमें रेड मार्किंग वाले 600 घरों को तोड़ा जा सकता है।

इस बीच कई जानकारों ने जोशीमठ पर पुरानी रिपोर्ट पर प्रकाश डाला है, जो अब सही साबित होते दिख रहे हैं। स्थानीय लोगों और स्थायी के चलते बदहाली और तपोवन विष्णुगढ़ एनटीपीसी पनबिजली परियोजना सहित मानव निर्मित दोषों पर आरोप बने हुए हैं। हालांकि, इन सब में ये भी ध्यान रहे कि जोशीमठ अकेला नहीं है, जो इस आपदा को दूर कर रहा है। पहाड़ी राज्य उत्तराखंड में इस तरह की और भी आपदाएं आ रही हैं। पौड़ी, बागेश्वर, उत्तरकाशी, तिहरी और रुद्रप्रयाग का भी यही हश्र हो सकता है। इन अज्ञात के स्थानीय लोगों को जोशीमठ जैसे संकट का खतरा है।

तिहरी

तिहरी जिले के नरेंद्रनगर विधानसभा क्षेत्र के अटाली गांव से जताए जाने वाले ऋषिकेश-कर्णप्रयाग रेल लाइन से स्थानीय लोगों की परेशानी बढ़ गई है। अटाली के एक छोर पर भारी दहलीजों की वजह से घरों में दरारें आ गई हैं। गांव के किनारे सुरंग में चल रहे ब्लास्टिंग के काम से भी मकानों में भारी दरारें आ गई हैं। वहां के निवासी कहते हैं कि टनल में जब विस्फोट हो रहा होता है, तो उनका घर हिलने लगता है। ग्रामीणों का आरोप है कि प्रशासन हर छह महीने में व्यवस्था करता है, लेकिन कोई ठोस कदम नहीं उठाया। गांव के लोग अटाली गांव से अपने पुनर्वास की मांग कर रहे हैं। अटाली के साथ गूलर, व्यासी, कौडियाला और मलेथा गांव भी ऋषिकेश-कर्णप्रयाग रेलवे लाइन परियोजना से प्रभावित हैं।

जोशीमठ के घरों, छतों और छतों पर दरारें

छवि स्रोत: पीटीआई

जोशीमठ के घरों, छतों और छतों पर दरारें

पौड़ी

उत्तराखंड के पौड़ी में भी तिहरी जैसे हालात हैं। स्थानीय लोगों का कहना है कि रेलवे प्रोजेक्ट के कारण उनके घरों में दरारें आ गई हैं। ऋषिकेश-कर्णप्रयाग रेलवे लाइन का सुरंग निर्माण कार्य से श्रीनगर के हेडल मोहल्ला, आशीष विहार और नर्सरी रोड सहित अन्य घरों में दरारें दिखाई देने लगी हैं। हेडल मोहल्ला के लोग कहते हैं कि यहां पर लोग खतरे के साये में रह रहे हैं। वहीं, आशीष निवासी का कहना है कि रेलवे दिन-रात ब्लास्टिंग करता है। कंपनियों के पन्नों पर दरारें दिखाई देने लगी हैं। लोगों की मांग है कि सरकार जल्द ही फैसला लेगी और मैनुअली काम करेगी, ताकि उनके घरों को नुकसान न पहुंचे।

बागेश्वर

बागेश्वर के कपकोट के खरबगड़ गांव पर संकट के बादल छाए हैं। इस गांव के ठीक ऊपर जलविद्युत परियोजना की सुरंग के ऊपर पहाड़ी में गड्ढे दिए गए हैं और जगह-जगह पानी का जुड़ाव हो रहा है। इससे गांव वालों में मानकों का माहौल है। कपकोट में भी अधिकार की खबरें आई हैं। इस गांव में करीब 60 परिवार रहते हैं। खरबगड़ के निवासी का कहना है कि टनल से पानी टपकने की समस्या लंबे समय से है, लेकिन सुरंग जैसा गढ़्ढा कुछ समय पहले बनना शुरू हो गया है। खरबाद गांव के ऊपर एक सुरंग है और नीचे रेवती नदी बहती है।

जोशीमठ के घरों, छतों और छतों पर दरारें

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जोशीमठ के घरों, छतों और छतों पर दरारें

उत्तरकाशी

उत्तरकाशी के मस्तदी और भटवाड़ी गांवों में खतरे के निशान हैं। जोशीमठ संकट को लेकर मस्तदी के दृष्टिकोण में प्रतिबद्धता का माहौल है। 1991 में आए भूकंप की वजह से मकानों की दरारें रह गई थीं। पूरा उत्तरकाशी जिला प्राकृतिक आपदा की चपेट में है। जिला मुख्यालय से 10 किमी दूर यहां के निवासियों का कहना है कि गांव धीरे-धीरे धंस रहा है। घरों में दरारें अभी से नजर आने लगी हैं। 1991 में भूकंप के बाद मस्तिड़की चटकने लगी। 1995 और 1996 में घरों के अंदर पानी शुरू हो गया, जो अब भी जारी है। उस समय प्रशासन ने गांव का भूवैज्ञानिक सर्वेक्षण भी किया था।

वहीं, उत्तरकाशी के भटवाड़ी गांव की भौगोलिक स्थिति जोशीमठ के लिए फायदेमंद है। इस गांव के नीचे भागीरथी नदी बहती है और गंगोत्री राष्ट्रीय राजमार्ग ऊपर ठीक है। 2010 में भागीरथी में कटव आने से 49 घर प्रभावित हुए थे। जो इमारतें सुरक्षित हैं, वे अब असुरक्षित हैं, क्योंकि हर साल दरारें बढ़ती जा रही हैं। वर्ष 2010 में गंगोत्री राष्ट्रीय राजमार्ग का एक हिस्सा नदी में डूब गया था और प्रशासन की ओर से 49 संपूर्ण को अस्थायी रूप से अन्य स्थान पर भेज दिया गया था। प्रत्येक को 2 लाख रुपये का स्वतंत्रा था। भूवैज्ञानिकों के शुरुआती और विस्तृत सर्वेक्षण के बाद प्रशासन ने सरकार को एक रिपोर्ट दी थी, जिसमें 49 सभी के स्थायी आवास को चिन्हित किया गया था, लेकिन अब तक कुछ नहीं मिला है।

रुद्रप्रयाग

रुद्रप्रयाग के मरोडा गांव ऋषिकेश-कर्णप्रयाग रेल लाइन का खामियाजा बढ़ रहा है। गांव में सुरंग बनने के कारण कुछ घर धराशायी हो गए हैं और कई घर नष्ट होने के दहाड़े पर हैं। जिन प्रभावित भाइयों को अभी तक आज तक नहीं मिला है, वे भी जरजर घरों में रह रहे हैं। अगर जल्द ही स्टेटमेंट को यहां से नहीं हटाया गया तो बड़ा हादसा हो सकता है। रेलवे का निर्माण कार्य जोरों पर है। ग्लोब में कनेक्शन की संभावनाएं देखते हुए अधिकतर ट्रैक म्यलान के माध्यम से होंगे। खदानों के निर्माण के कारण ही गांव के घरों की छतें टूट गई हैं। मरोदा गांव में कभी 35 से 40 परिवार रहते थे, लेकिन अब 15 से 20 परिवार ही हैं।

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