कबीरधामछत्तीसगढ़

अलसी डंठल से रेशा का उपयोग, अतिरिक्त आय का स्त्रोत – डॉ. एस.एस. टुटेजा’

UNITED NEWS OF ASIA. कवर्धा । कृषि विज्ञान केन्द्र, कवर्धा एवं कृषि मौसम विभाग, रायपुर के संयुक्त तत्वाधान में भारतीय कृषि अनुसंधान परिषद्, नई दिल्ली द्वारा वित्तीय पोषित ’’निकरा परियोजना’’ के तहत जलवायु परिवर्तन प्रतिरोधक कृषि पर आधारित एक दिवसीय सेमिनार का आयोजन किया गया

यह कार्यक्रम रेवेन्द्र सिंह वर्मा कृषि महाविद्यालय एवं अनुसंधान केन्द्र, बेमेतरा में आयोजित हुआ, जिसका मुख्य उद्देश्य किसानों को अलसी डंठल से रेशा निकालने की प्रक्रिया और इसके उपयोग के बारे में तकनीकी जानकारी प्रदान करना था। कार्यक्रम में कृषि विज्ञान केन्द्र, कवर्धा द्वारा कबीरधाम जिले के 30 किसानों को अलसी की किस्म आर.एल.सी. 148 का प्रदर्शन ग्राम-धरमपुरा, नेवारी और बिरकोना में कराया गया।

इसका उद्देश्य किसानों को अलसी के प्रति आकर्षित करना और तिलहन की खेती का रकबा बढ़ाने के लिए प्रेरित करना था। इस प्रशिक्षण कार्यक्रम में अलसी उत्पादक किसानों को न केवल अलसी के उत्पादन से लाभ कमाने की जानकारी दी गई, बल्कि अलसी के डंठल और उससे निकले रेशे को विक्रय करके अतिरिक्त लाभ अर्जित करने के उपाय भी बताए गए।

कार्यक्रम का उद्घाटन डॉ. बी.पी. त्रिपाठी, वैज्ञानिक एवं प्रमुख, कृषि विज्ञान केन्द्र, कवर्धा ने स्वागत उद्बोधन और सेमिनार की रूपरेखा प्रस्तुत करते हुए किया। डॉ. तोषण कुमार ठाकुर, वरिष्ठ वैज्ञानिक एवं प्रमुख, कृषि विज्ञान केन्द्र, बेमेतरा ने अलसी फसल की विविधता के बारे में विस्तार से जानकारी दी।

वहीं डॉ. जे.एल. चैधरी मौसम विभाग, रायपुर ने निकरा परियोजना के बारे में विस्तार से बताया। कार्यक्रम की अध्यक्षता कर रहे डॉ. संदीप भण्डारकर, अधिष्ठाता, रेवेन्द्र सिंह वर्मा कृषि महाविद्यालय एवं अनुसंधान केन्द्र, बेमेतरा ने अलसी बायोप्रोडक्ट की उपयोगिता के बारे में जानकारी दी।

कार्यक्रम के मुख्य अतिथि डॉ. एस.एस. टुटेजा, निदेशक विस्तार, इंदिरा गांधी कृषि विश्वविद्यालय, रायपुर ने किसानों को अलसी फसल के लाभ और उसके प्रति जागरूकता बढ़ाने के लिए आवश्यक कदमों के बारे में बताया। उन्होंने कहा कि मौसम विभाग द्वारा निकरा परियोजना के तहत कबीरधाम जिले को अग्रणी कृषि विज्ञान केन्द्र के रूप में चुना गया है। इससे इस परियोजना का प्रत्यक्ष या अप्रत्यक्ष लाभ जिले के किसानों को अवश्य मिलेगा।

कार्यक्रम में डॉ. यू.के. ध्रुव ने पीपीटी के माध्यम से अलसी के डंठल से रेशे निकालने की प्रक्रिया और कार्यविधि को विस्तार से समझाया। डॉ. हेमलता निराला, सहायक प्राध्यापक, ने अलसी की वैज्ञानिक खेती के बारे में जानकारी दी। इसके बाद डॉ. साक्षी बजाज, सहायक प्राध्यापक, रेवेन्द्र सिंह वर्मा कृषि महाविद्यालय, बेमेतरा ने सभी कृषकों को लेनिन इकाई का भ्रमण कराते हुए रेशा निकालने की तकनीकी को प्रायोगिक रूप से प्रदर्शित किया।

कार्यक्रम में इंजी. टी.एस. सोनवानी, विषय वस्तु विशेषज्ञ, कृषि अभियांत्रिकी और जिले के कुल 50 किसानों ने सक्रिय रूप से भाग लिया। कार्यक्रम के में यह संदेश दिया गया कि अलसी के डंठल से रेशे निकालने की प्रक्रिया न केवल किसानों को अतिरिक्त आय का एक नया स्त्रोत प्रदान करेगी, बल्कि यह पर्यावरण के प्रति जिम्मेदारी निभाने और जलवायु परिवर्तन के खिलाफ लड़ाई में भी महत्वपूर्ण योगदान देगी।

Show More

Saurabh Namdev

| PR Creative & Writer | Ex. Technical Consultant Govt of CG | Influencer | Web developer
Back to top button

You cannot copy content of this page