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उपेंद्र कुशवाहा ने झटका दिया जदयू नीतीश कुमार भाजपा नेताओं ने दिल्ली एम्स में मुलाकात की

पटना: बिहार बीजेपी प्रवक्ता और पूर्व विधायक रंजन पटेल, बिहार बीजेपी प्रवक्ता और पूर्व विधायक संजय टाइगर, बीजेपी नेता योगेंद्र पासवान ने दिल्ली एमएस में जेडीयू के ज़िला बोर्ड के राष्ट्रीय अध्यक्ष उपेंद्र कुशवाहा (उपेंद्र कुशवाहा) से शुक्रवार को मुलाकात की। कुशवाहा रूटीन चेकअप के लिए दिल्ली एम्स में भर्ती हैं, लेकिन बीजेपी के नेताओं की उनसे मुलाकात ने बिहार की सियासत को गरमा कर दिया है। कई तरह से झूलते जा रहे हैं क्योंकि जेडीयू में अपनी अनदेखी से कुशवाहा इन दिनों नाराज चल रहे हैं।

बीजेपी नेताओं की बैठक के बाद इस बात की आशंका जा रही है कि बिहार में जल्दी ही बड़ा सियासी उलटफेर हो सकता है। उपेंद्र कुशवाहा ने अपनी पार्टी आरएलएसपी की जेडीयू में विलय कर लिया था। इसके बाद निरंकुश होकर उन्हें जेडीयू मंडल बोर्ड का राष्ट्रीय अध्यक्ष और एमएलसी बनाया गया। अपने लव कुश रेशों को मजबूत करने के लिए उन्हें कमजोर पार्टी में लेकर आए थे लेकिन एनडीए सरकार या महागठबंधन सरकार में कुशवाहा मंत्री नहीं बन पाए। उनके डिप्टी सीएम बनने की भी चर्चा थी लेकिन ऐसा भी नहीं हुआ।

कुशवाहा लोकसभा चुनाव लड़ना चाहते हैं

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उपेंद्र कुशवाहा के पास संगठन में बड़ा पद उनके पास है लेकिन संगठन में उनका चलन भी नहीं हो रहा है। जेडीयू को बार-बार चिट्ठी जारी करना है। कुशवाहा लोकसभा चुनाव भी 2024 में काराकाट से दाखिल होना चाहते हैं लेकिन जदयू के महाबली सिंह अभी वहां से सांसद हैं। कुशवाहा को यह सीट मिलने की उम्मीद भी बहुत कम है।

न संन्यासी हूं न…

सियासी गलियारों में चर्चा है कि कुशवाहा खुद नई ठिकाना खोज रहे हैं। जेडीयू में हो रही अनदेखी पर वह बोल रहे हैं कि न मैं संत हूं न किसी मठ में स्थित हूं। यह भी गड्ढे हैं कि कब तक पवेलियन में बैठे हैं। उनके बयानों से साफ लग रहा है कि कुछ बड़े फैसले की तरफ बढ़ रहे हैं। वैसे वह इन अटकलों को खारिज कर देते हैं और कहते हैं कि वो जदयू में ही जीतेंगे।

वह लगातार के पुराने सहयोगी हैं। 2000 में निकुशक्त ने परस्पर संबंधित नेता बनाया था। तब निवर्तमान की समता पार्टी थी। 2005 में कुशवाहा से अलग हो गए थे। एनसीपी में गए, फिर 2010 में वापस जदयू में आ गए और 2010 में निरंकुश वे राज्यसभा भेजे गए। 2013 में ही उन्होंने जेडीयू और राज्यसभा की सदस्यता से इस्तीफा दे दिया था और राष्ट्रीय लोक समता पार्टी बना ली थी। 2014 के विधानसभा चुनाव में उन्होंने बीजेपी से गठबंधन किया था। एनडीए में उनकी पार्टी को तीन सीटें मिली थीं। तीनों सीट पर उनकी पार्टी की जीत हासिल करने की थी।

उपेंद्र कुशवाहा केंद्र सरकार में मंत्री बनाए गए थे लेकिन 2018 में महागठबंधन में चले गए। 2019 विधानसभा चुनाव में महागठबंधन में उनकी पांच सीटों पर आपस में भिड़ गए, जिसमें कुशवाहा खुद काराकाट और उजियारपुर से लड़े, लेकिन हार गए। 2020 बिहार विधानसभा चुनाव में उन्होंने ओवैसी के साथ तीसरा मोर्चा बनाया लेकिन सफलता नहीं मिली। बाद में उन्होंने अपनी पार्टी आरएलएसपी का जेडीयू में विलय कर दिया। बार-बार पलटी मारने वाले कुशवाहा का एक बार फिर मन डोल रहा है। उनका अगला सियासी कदम क्या होगा सबकी नजर इस पर टिकी है। बीजेपी नेताओं ने उनसे मुलाकात की और बीजेपी के साथ मिलकर अटकलों को हवा दे दी।

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