उत्तर प्रदेश निकाय चुनाव में ओबीसी रिजल्ट को लेकर यूपी सरकार ने आयोग का गठन किया है। दरअसल, इलाहाबाद उच्च न्यायालय की लखनऊ पीठ ने बिना ओबीसी तथ्यों के ही निकाय चुनाव का आदेश दिया था, लेकिन मुख्यमंत्री योगी आदित्यनाथ का कहना है कि बिना विवरण के चुनाव नहीं ढूंढेंगे। अब कोर्ट के फैसले के बाद योगी सरकार ने निकाय चुनाव में परिणाम देने को लेकर ओबीसी आयोग का गठन कर दिया है।
पिछड़ा आयोग में 5 सदस्य होंगे। जाम (सेवानिवृत) राम अवतार सिंह आयोग की अध्यक्षता करेंगे। आयोग में दो सेवानिवृत्ति आईएएस अधिकारी चोब सिंह वर्मा और अन्य कुमार हैं। इसके अलावा दो रिटिट विधि संतोष अधिकारी कुमार विश्वकर्मा और बृजेश कुमार सोनी शामिल हुए हैं।
जहरब है कि उत्तर प्रदेश में 762 नगरीय निकाय चुनाव हुए। इन शहरी शरीर का कार्यकाल 12 दिसंबर से 19 जनवरी 2023 के बीच खत्म हो गया है। इन सभी में चुनाव के लिए सरकार ने ओबीसी कोटे का ड्राफ्ट भी जारी किया था, जिसे हाई कोर्ट ने रद्द कर दिया है। इलाहाबाद हाई कोर्ट के फैसले पर सीएम योगी ने कहा कि उत्तर प्रदेश सरकार आयोग द्वारा ट्रिपल टेस्ट के आधार पर ओबीसी घोषणा के साथ ही नगर निकाय चुनाव करवाएगी। उन्होंने कहा कि अगर जरूरी हुआ तो सरकार कानूनी रूप से इस मुद्दे पर सर्वोच्च न्यायालय में भी विचार करेगी।
कोर्ट ने रद्द क्यों किया?
हाई कोर्ट ने यूपी सरकार के रिजर्वेशन ड्राफ्ट को रद्द कर दिया। कोर्ट का कहना है कि जब तक सुप्रीम कोर्ट की तरफ से पूरा परीक्षण न हो, तब तक यकीन नहीं होगा। कोर्ट ने कहा कि सरकार फिर से एक डेडिकेटेड कमीशन बदलकर टिप टेस्ट का फॉर्मूला अपनाए और OBC को न्यूट्रीशन दे। कोर्ट ने बिना ओबीसी तथ्यों के ही चुनाव संबंधी तथ्यों को कहा। साथ ही ये भी कहा कि अगर बिना ऊपरी परीक्षण चुनाव हो तो सभी बातों को सामान्य यानी अक्षित माने जाएं।
हिप टेस्ट क्या होता है?
सुप्रीम कोर्ट ने नगरीय निकायों के चुनाव में ओबीसी का मापदंड तय करने के लिए नया टेस्ट फॉर्मूला लागू करने की बात कही है। इसके तहत ओबीसी का विश्लेषण तैयार करने से पहले एक आयोग का गठन किया जाता है। इस आयोग का काम शरीर में राजनीतिक पिछड़ापन को लेकर है। इसके बाद आशंका के लिए काल्पनिक रूप से विचार किया जाता है। इसके बाद दूसरे चरण में स्थानीय बॉडी में ओबीसी की संख्या का परीक्षण किया गया। तीसरे और अंतिम चरण में सरकार के स्तर पर सत्यापन किया जाता है।