
कवर्धा में दो शक्कर कारखाने एक प्राइवेट कारखाना सहित लगभग छोटे-बड़े 300 गुड उद्योग जिले में संचालित हो रही है। जिस पर ना तो उद्योग विभाग की लगाम है और ना ही श्रम विभाग की लगाम है। एक और जहां छोटे बड़े गुड फैक्ट्रियां उद्योग विभाग की मेहरबानियां से फली भूत हो रही है तो वहीं दूसरी ओर श्रम विभाग इन छोटे-बड़े उद्योगों के दामद बने बैठे हैं। आलम यह है की कबीरधाम की हरी भरी धरती पर उद्योग विभाग जहर घोलने को आमद है वही श्रम विभाग अपने कर्तव्य से विमुख हो चुका है।
ना तो उद्योग विभाग फैल रहे प्रदूषण पर ध्यान दे रहा है और ना ही श्रम विभाग लगातार इन उद्योगों में हो रहे घटनाओं पर संज्ञान ले रहा है इतना ही नहीं हजारों बाल मजदूर इन उद्योगों में काम कर रहे हैं जिस पर भी कार्यवाही न करना समझ से परे है या फिर मामला कुछ और ही है।
शर्म की बात है कि श्रम के कामगारों को समर्पित श्रम विभाग कार्य में कोताही बरत रहा है। जी हां श्रम विभाग से पिछले एक वर्ष में मजदूर सबंधी सुरक्षा को लेकर जिले में किए गए मामले का अकड़ा मांगा गया तो यह चौंकाने वाला निकला। दरसअल विभाग द्वारा बीते वर्ष के मार्च माह से अब तक केवल दो मामलों में कार्यवाही की गई है। सुरक्षा में लापरवाही को लेकर की गई यह कार्यवाही भी कलेक्टर के दिशा निर्देश में किया गया था।
विभागीय अधिकारी चेत्राम नंदा से मामले को लेकर बात की गई। जिन्होंने विभाग को स्वयं कार्यवाही करने के लिए अशक्षम बता दिया। उन्होंने बताया कि जिलाधीश के दिशानिर्देश में ही इस प्रकार की कार्यवाही की जा सकती है। हजम न होने वाली इस दलील से साफ समझा जा सकता है की कैसे विभागीय अधिकारी अपने जिम्मेदारियों से कन्नी काट रहे है।
आपको बता दे की विभाग अंतर्गत पंजीकृत श्रमिकों के सेफ्टी की जिम्मेदारी श्रम विभाग के कंधो पर भी है। जिले के अलग – अलग इलाकों में सैकड़ों ठेकेदारों द्वारा सरकारी निर्माण सहित निजी निर्माण कार्य किया जाता है। जहां बगैर किसी विशेष सुरक्षा इंतजाम के मनमाने काम श्रमिकों से लिया जाता है। शायद ही कहीं सुरक्षा सम्बन्धित हेलमेट, गंबूट, दस्ताने पहने श्रमिक कार्य करते दिखाई देते हो। यहां तक कि निर्माण स्थल पर फर्स्ट एड तक की व्यवस्था नहीं होती है। उक्त मामले के लिए श्रम विभाग को शासन द्वारा मुस्तैद किया गया है। परन्तु विभाग की लापरवाही का आलम यह है कि एकाद ही मामलों में कार्यवाही कर खानापूर्ति की जा रही है।



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