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UNA खबर खास : छत्तीसगढ़ | कवर्धा के विजय के लिए वीरू ने चुना जनता की सेवा, विजय को नहीं..

"शोले" की तरह यह कहानी भी दोस्ती, संघर्ष और जीत की है—बस अंतर इतना है कि यह सिनेमा नहीं, बल्कि हकीकत है!"

UNITED NEWS OF ASIA कवर्धा | छत्तीसगढ़ की राजनीति में एक नई पटकथा लिखी जा रही है, जिसमें सत्ता का संघर्ष नहीं, बल्कि सेवा की गूंज है। बॉलीवुड की ऐतिहासिक फिल्म “शोले” में वीरू यदि चाहता, तो दोस्त जय से ताज मांग सकता था, मगर उसने अपना रास्ता खुद चुना। यही कहानी आज छत्तीसगढ़ की सियासत में दोहराई जा रही है।

छत्तीसगढ़ के डिप्टी सीएम एवं गृह मंत्री विजय शर्मा के साथ संघर्ष की राह पर चले उनके पुराने साथी कैलाश चंद्रवंशी ने जनता के समर्थन से जिला पंचायत सदस्य पद पर जीत दर्ज की। कवर्धा के जिला पंचायत क्षेत्र क्रमांक 10 की जनता ने उन्हें जनसेवा का अधिकार सौंपा। यह वही कैलाश चंद्रवंशी हैं, जो कवर्धा में झंडा कांड के दौरान जेल गए थे और अंधकार का दंश झेल चुके इस क्षेत्र में उजाले की लौ जलाने के लिए मैदान में उतरे थे।

संघर्ष की कहानी: दोस्ती, धर्म और जनता की आवाज

जिस तरह फिल्म “शोले” में जय और वीरू की दोस्ती ने हमेशा साथ निभाया, उसी तरह छत्तीसगढ़ की सियासत में विजय शर्मा और कैलाश चंद्रवंशी ने संघर्ष की राह साथ तय की। हिंदुत्व की रक्षा और जनता के हक के लिए संघर्ष करते हुए वे जेल तक गए, मगर कभी अपने सिद्धांतों से पीछे नहीं हटे।

कवर्धा का झंडा कांड इस मित्रता और संघर्ष का बड़ा प्रमाण है। जब हिंदू संस्कृति पर सवाल उठे, तो दोनों साथी सड़कों पर उतरे और अपने विचारों के लिए जेल जाने से भी नहीं हिचके। आज, जब विजय शर्मा प्रदेश सरकार में डिप्टी सीएम और गृह मंत्री की भूमिका निभा रहे हैं, वहीं उनके मित्र कैलाश चंद्रवंशी जनता की सेवा के लिए पंचायत स्तर पर चुनावी समर में उतरे और जीत हासिल की।

जनता ने दिया सेवा का आशीर्वाद

फिल्मी कहानियों में दोस्त अक्सर राजा के सिंहासन तक पहुंचने के लिए साथ होते हैं, मगर छत्तीसगढ़ की इस हकीकत में इन दो दोस्तों ने सत्ता के बजाय सेवा को प्राथमिकता दी। विजय शर्मा ने जहां प्रदेश स्तर पर नेतृत्व की जिम्मेदारी संभाली, वहीं कैलाश चंद्रवंशी ने जमीनी स्तर पर जनता का विश्वास जीता।

क्षेत्र की जनता को भरोसा है कि कैलाश चंद्रवंशी उनकी आवाज बनकर विकास की नई कहानी लिखेंगे। कवर्धा, जो कभी अंधकार में था, अब विकास और हिंदू संस्कृति की नई रोशनी में आगे बढ़ेगा।

“शोले” की तरह यह कहानी भी दोस्ती, संघर्ष और जीत की है—बस अंतर इतना है कि यह सिनेमा नहीं, बल्कि हकीकत है!”

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