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UNA “भारत भाग्य विधाता” : 1977 में इंदिरा विरोधी लहर में इस सीट को जनता पार्टी के बैनर तले मिली जीत, छत्तीसगढ़ के 11 लोकसभा क्षेत्रों में कहां, क्या हो रहा है, जानिए

  1. बस्तर

छत्तीसगढ़ की सबसे ज्यादा आदिवासी विधानसभाओं वाली सीट बस्तर से भाजपा ने नए चेहरे महेश कश्यप को उतारा है। 2019 में यह सीट 37 हजार वोटों से कांग्रेस के खाते में चली गई थी। बस्तर की 8 विधानसभा सीटों में सिर्फ एक ही सामान्य है बाकी सभी 7 आदिवासी आरक्षित सीटें हैं। नक्सल प्रभावित इस इलाके में ज्यादातर कांग्रेस ने प्रतिनिधित्व किया है, लेकिन राज्यगठन के बाद से यह सीट भाजपा के खाते में जाती रही है। यहां से बलिराम कश्यप सर्वाधिक बार सांसद चुने गए हैं। इस बार के कैल्कुलेशन में 8 विधानसभा सीटों में से भाजपा के पास 6 सीटें हैं।

  1. कांकेर

प्रदेश की दूसरी आदिवासी आरक्षित लोकसभा सीट कांकेर 1998 से लगातार भाजपा के पास है। यहां से सबसे लंबे समय तक सोहन पोटाई सांसद रहे हैं। इस सीट में 2 सामान्य विधानसभा क्षेत्र आते हैं। 2023 विधानसभा चुनावों के मुताबिक यह सीट भाजपा के लिए चुनौती है। यहां की 8 सीटों में से 5 सीटें कांग्रेस के पास हैं। जबकि कांकेर विधानसभा भाजपा ने महज 16 वोट से जीती थी। 2019 के लोकसभा चुनावों में भी यह सीट महज 6 हजार 9 सौ वोटों से भाजपा ने जीती थी। इस लिहाज से देखें तो कांकेर में इस बार भी चुनौतियां बरकरार हैं।

  1. महासमुंद

साहू बाहुल्य इस सीट पर इस 1999 के बाद से पहली बार भाजपा ने गैरसाहू को उतारा है। अजीत जोगी, श्यामाचरण शुक्ल जैसे धुरंधरों की राजनीतिक रणभूमि रही यह सीट फिलहाल भाजपा के पास है। इस सीट में आने वाली 8 सीटों मे से 4-4 कांग्रेस और भाजपा के पास हैं। इस लोकसभा क्षेत्र में एक आदिवासी आरक्षित और एक अनुसूचित जाति आरक्षित सीट आती है। संयोग से यह दोनों ही आरक्षित विधानसभा सीटें कांग्रेस के पास हैं। ऐसे में यह सीट 2023 विधानसभा चुनावों के नजरिए से जटिल अनुपात वाली सीट है।

  1. रायपुर

प्रदेश की सबसे अहम सीट मानी जाती है। पारंपरिक रूप से भाजपा की सीट है यहां से 1989 में रमेश बैस पहली बार जीते थे। 1991 के चुनावों में यहां से श्यामाचरण शुक्ल ने बाजी मारी। इसके बाद से यह सीट लगातार भाजपा के पास है। सबसे ज्यादा शहरी आबादी वाली इस सीट में 9 विधानसभा क्षेत्र आते हैं। इनमें से लगभग 9 लाख वोट नगरीय क्षेत्र में रहते हैं। इनमें 2023 के चुनावों के मुताबिक सिर्फ 1 सीट कांग्रेस के पास है। रायपुर लोकसभा क्षेत्र में सिर्फ अनुसूचित जाति आरक्षित सीट है। राजधानी की सीट होने के नाते इस पर दोनों ही दलों का जोर रहता है।

  1. दुर्ग

यह लोकसभा क्षेत्र साहू बाहुल्य है। यहां छत्तीसगढ़ की सबसे पहली क्षेत्रीय प्रभावशाली पॉलिटिकल पार्टी का जन्म हुआ था। भाजपा के 4 बार सांसद रह चुके बागी ताराचंद साहू ने छत्तीसगढ़ स्वाभिमान मंच के जरिए भाजपा को चुनौति दी थी। अभी 9 सीटों में से 2 ही विधानसभा सीटें कांग्रेस के पास हैं। रायपुर के बाद सबसे ज्यादा विधानसभा सीटों वाले दुर्ग में 2 सीटें अनुसूचित जाति के लिए आरक्षित हैं। भाजपा से 2019 में सबसे ज्यादा मार्जिन से जीतने वाले टॉप-5 गुजरात से ही थे। दुर्ग ऐसी गैर गुजराती टॉप-10 में शामिल सीट थी जहां मार्जिन सर्वाधिक था।

  1. राजनांदगांव

2007 उपचुनाव छोड़कर 1999 से यह सीट भाजपा के पास ही रही है। 2023 के चुनावों के मुताबिक यहां कांग्रेस ने 8 विधानसभा में से 5 जीती हैं, लेकिन भाजपा ने अधिक वोट हासिल किए हैं। यह सीट राजनीतिक रूप से पूर्व मुख्यमंत्री डॉ. रमन सिंह की प्रतिष्ठा मानी जाती है। राजनांदगांव में 1957-1962 में राजा बहादुर सिंह और 1980 और 1984 में राजा शिवेंद्र बहादुर सिंह को छोड़कर कभी कोई एक ही व्यक्ति लगातार सांसद नहीं बना। इस बार भाजपा ने अपने मौजूदा सांसद को रिपीट किया है। इस लोकसभा में एक एसटी और एक एससी विधानसभा सीट आती है, संयोग से दोनों कांग्रेस के पास हैं।

  1. बिलासपुर

बिलासपुर को भाजपा अपनी मजबूत सीटों में गिनती है। यहां 1996 से भाजपा काबिज है। 2009 में दिलीप सिंह जूदेव ने इस सीट को राष्ट्रीय फलक पर चर्चित बना दिया था। इसमें आने वाली 8 विधानसभा सीटों में से 2 ही कांग्रेस के पास हैं। इस सीट से पुन्नूलाल मोहले के नाम सबसे ज्यादा 4 बार लोकसभा चुनाव जीतने का रिकॉर्ड दर्ज है। 2008 में परिसीमन के बाद यह सीट साहू बाहुल्य हो गई। इसके बाद से 2009 में जूदेव को छोड़कर हर बार साहू प्रत्याशी ही यहां से बाजी मारते रहे हैं। छत्तीसगढ़ से संविधान सभा में सदस्य रहे रेशम लाल जांगड़े यहां से 3 बार सांसद चुने गए।

  1. जांजगीर

यह सीट 2004 से भाजपा के कब्जे में है। 2008 में यह सीट आरक्षित हो गई। इसमें 8 विधानसभा सीटें हैं। यह छत्तीसगढ़ की इकलौती ऐसी लोकसभा सीट है जहां की सभी आठों विधानसभा सीटें कांग्रेस के पास हैं। अनुसूचित जाति के लिए आरक्षित प्रदेश की इकलौती लोकसभा जांजगीर में 2 विधानसभा सीटें ही अनुसूचित जाति के लिए आरक्षित हैं। इसे प्रदेश का बसपा कोर इलाका कहा जाता है। यहां से बसपा अधिकतम एक लाख 51 हजार वोट तक ला चुकी है। 2023 में बसपा को तगड़ा झटका लगा, जब यहां से एक भी सीट हाथी के हाथ नहीं आ सकी। 1984 में यहां से कांसीराम ने भी चुनाव लड़ा, लेकिन वे जीते नहीं।

  1. कोरबा

4 एसटी आरक्षित और 4 अनारक्षित कुल 8 विधानसभा सीटों से बनी कोरबा लोकसभा में 2023 के मुताबिक सिर्फ एक ही सीट कांग्रेस के पास है। 2019 में जिस विधानसभा पाली तानाखार के बूते कांग्रेस ने यह सीट जीती थी, वह इस बार गोंडवाना गणतंत्र पार्टी के पास है। 2019 में जिन 3 विधानसभा क्षेत्रों से भाजपा हारी थी, उनमें से अब कांग्रेस के पास एक ही है। देशभर का पावर हाउस कहा जाने वाला कोरबा बिजली संयंत्र यहीं पर आता है। कोयले, खनन, बिजली के लिए मशहूर कोरबा लोकसभा में विस्थापन, हाथी, प्रदूषित जल जैसी समस्याएं अहम हैं।

  1. रायगढ़

5 एसटी, 1 एससी कुल 8 विधानसभा सीटों वाली रायगढ़ लोकसभा सीट फिलहाल भाजपा के पास है। इसे भी बिजली संयंत्रों, कोल खनन के लिए जाना जाता है। वर्तमान में मुख्यमंत्री की विधानसभा सीट भी इसी लोकसभा में आती है। इसलिए यह यह अहम है। अनुसूचित जनजाति के लिए आरक्षित 4 सीटों में शुमार रायगढ़ रामराज्य परिषद नाम की देश की पहली भगवा राजनीतिक पार्टी की लैबोरेट्री रही है। यहां से 1962 में विजय भूषण सिंहदेव ने चुनाव जीता था। 1998 में अजीत जोगी के बाद 1999 से 2014 तक लगातार मौजूदा मुख्यमंत्री विष्णुदेव साय यहां से जीतते रहे।

  1. सरगुजा

प्रदेश की अनुसूचित जनजाति के लिए आरक्षित यह सीट बस्तर के बाद ऐसी दूसरी सीट है जहां सबसे ज्यादा एसटी विधानसभा सीटें आती हैं। फिलहाल आठों की आठ सीटें भाजपा के पास हैं। 2004 से लगातार भाजपा यहां से जीतती आई है। सरगुजा को लरंग साय के नाम से भी जाना जाता है, जिन्होंने 1977 में इंदिरा विरोधी लहर में इस सीट को जनता पार्टी के बैनर तले जीता था, बाद में 1989 और 1998 में वे भाजपा से सांसद रहे हैं। यहां सबसे बड़ी आबादी जनजाति समाज की रहती है। प्रदेश का शिमला कहा जाने वाला इलाका मैनपाट भी इसी लोकसभा में आता है।

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Saurabh Namdev

| PR Creative & Writer | Ex. Technical Consultant Govt of CG | Influencer | Web developer
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