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UNA विश्लेषण: अमित जोगी क्या कर पाएंगे छत्तीसगढ़ में, 10 कदम कहीं निकाल न दे दम

UNITED NEWS OF ASIA. अमित जोगी मैदान में सक्रिय हो गए हैं। सीनीयर जोगी के दौर में यह बड़ी खबर होती, अब यह उतनी बड़ी खबर नहीं है। लेकिन क्या अमित भी अपने पिता अजीत प्रमोद जोगी की तरह छत्तीसगढ़ की सियासत में कोई बड़ा उलटफेर कर पाएंगे?

यह ऐसे सवाल हैं जिनके सीधे जवाब नहीं दिए जा सकते। इन प्रश्नों के जवाब के लिए हमे 2018 और उससे पहले के अजीत जोगी के सियासी दांवपेंचों को देखना होगा। प्रदेश के पहले मुख्यमंत्री रहे अजीत प्रमोद जोगी जज्बा और जीजिविषा के मामले में बहुत बड़ी शख्सियत थे। वे कांग्रेस में भीतर रहकर अपने मोहरे सेट करने से लेकर कांग्रेस से बाहर होकर भी अपने मोहरों पर जोर आजमाते रहे। छत्तीसगढ़ का पहला ऐसा चुनाव 2023 में होगा जब अजीत प्रमोद जोगी नहीं हैं। लेकिन उनके बेटे अमित जोगी मैदान में नजर आ रहे हैं।

यह बात सच है, अमित के साथ वह टीम नहीं है जो सीनीयिर जोगी के साथ हुआ करती थी। सीनीयर जोगी का राजनीतिक कौशल पूरा प्रदेश जानता था। संपर्कों और संबंधों के मामले में अजीत जोगी बहुत सतर्क थे। इसलिए उनके साथ वे लोग भी आ जाते जो उनके विरोधी थे।

अमित जोगी ने अपनी पार्टी को 2020 के बाद से ही पॉलिटिकल स्लीपिंग मोड पर डाल दिया था। लोग उन्हें छोड़कर जाते रहे, वे मौन रहे या ऐसे पॉश्चर दिए जैसे रोकना नहीं चाहते। महज ढाई साल की अपनी उम्र में अजीत जोगी की यह पार्टी 2018 में 7 परसेंट वोट लेकर आती है। वही पार्टी 2019 से ही लगातार डिक्लाइनिंग में जाती है।

एक के बाद एक बड़े, विश्वसनीय, दमदार नेता छोड़ते जाते हैं, अमित उन्हें रोकते नहीं। जोगी की पार्टी अपने बूते 5 सीटें लेकर आई। महज 8 दिन पहले मैदान में आईं रेणु जोगी ने कोटा का इतिहास बदल दिया। कांग्रेस की परंपरागत सीट को अपने खाते में डाल लिया। बलौदाबाजार, डोंगरगढ़ जैसी सीटों पर प्रमोद शर्मा और देवव्रत सिंह ने जीत दर्ज कराई। धरमजीत जैसे दिग्गज अजीत जोगी जैसे बड़े वोट से जीते। जोगी की पार्टी ने बेलतरा, तखतपुर, बिल्हा, अकलतरा, चंद्रपुर, राजिम, मनेंद्रगढ़, मुंगेली समेत दर्जनभर सीटों पर भाजपा-कांग्रेस जैसी भारीभरक पार्टियों को अच्छी टक्कर दी।

यह सब इतिहास है, वर्तमान नहीं। राजनीति में इतिहास इतिहास के साथ ही बंद कब्रों में समा जाता है। सियासत में वर्तमान ही ताकत होता है, मौजूदा ही महाशक्ति। इसलिए अब ये समझना होगा अमित जोगी कर क्या पाएंगे।

पहली बात, अमित एक कुशल स्ट्रेटजिस्ट हैं, किंतु एक्जेक्यूशन के लिए टीम चाहिए, जो उनके पास नहीं है।

दूसरा बात, अमित स्वयं विश्वसनीय चेहरा नहीं हैं, अजीत जोगी पर लोग तमाम दुश्वारियों के बावजूद भरोसा करते थे।

तीसरी बात, अमित अब आदिवासी नहीं है, ऐसे में जनजातिय समाज में स्वीकार्यता एक बड़ा संकट है।

चौथी बात, अब भी अमित जोगी खुलकर चुनावी मैदान में आएंगे, इसमें संदेह है, क्योंकि उन्होंने संगठन को खुद से ढह जाने दिया है।

पांचवी बात, इन सबके बाद भी अमित जोगी प्रदेशभर में लगभग एक-सवा लाख से अधिक वोट हासिल कर सकते हैं। पिछले चुनाव में उनकी पार्टी ने 7-8 लाख वोट हासिल किए थे।

छठवीं बात, अमित प्रत्याशियों की तलाश तो कर रहे हैं, लेकिन अभी पार्टी लेवल पर पूरी तरह से अपनी रणनीति का खुलासा नहीं किया है।

सातवीं बात, महज 10 दिन पहले तक चुनावी सियासत से दूर बैठे अमित अचानक से लिस्ट भी जारी कर रहे हैं, प्रत्याशी भी खोज रहे हैं, प्रदेश में सभी सीटों पर लड़ने का भी प्लान बना रहे हैं। यह सब चीजें राजनीतिक अविश्वास पैदा कर रही हैं।

आठवीं बात, जोगी को मुख्यधारा की सियासत के लिए बड़ी मात्रा में धनराशि की जरूरत होगी, जो फिलहाल नहीं दिखाई दे रही।

नवमीं बात, प्रदेश में त्रिकोणीय संघर्ष की स्थिति में सबसे ज्यादा फायदा भाजपा को दिखाई दे रहा है, तो इस मामले में जोगी की पार्टी को स्वच्छ नजर से नहीं देखा जा सकता।

दसवीं बात, संगठन स्तर पर पार्टी का कोई वजूद नहीं है, इसलिए चुनाव में यूनीफाइड ताकत दिखा पाना कठिन है।

 


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