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UNA विश्लेषण: क्या भूपेश बघेल को कवर्धा शहर मे नहीं मिल रहे कार्यकर्ता, या फिर हार का डर? शहर मे नेतृत्व विहीन कांग्रेस का कौन बनेगा संरक्षक?

नमस्कार
आज के लेख मे एक बडा सवाल ? हम लेकर पहुंचे हैं,
सवाल देश मे सबसे ज्यादा समय तक राज करने वाली और वर्तमान मे विपक्ष की बड़ी भूमिका निभाने वाली कांग्रेस पार्टी की है।

कांग्रेस मे अब कार्यकर्ता नहीं दिखते
दिखते है तो वो लोग जो दूसरी पार्टीयों से आकर या तो अपनी जमीन तैयार करने मे लगे है या फिर वो लोग जिन्हे लगता है की एक वर्ग विशेष का फायदा अब उन्हे मिलेगा।


बमुशिकल हालात से गुजर रहे कांग्रेस की इस दुर्दशा को जानने के लिए हमें कुछ समय पीछे मुड़ना पड़ेगा।  जब 120 किमी दूर से आकर तत्कालीन मंत्री मोहम्मद अकबर कवर्धा मे नेतृत्व करते थे और तब बीजेपी जैसे पार्टी के समर्थक लोगों को वो यूं ही रास्ते चलते कांग्रेस सरकार मे बड़े ओहदो मे पंहुचा दिए करते थे।

नगर पालिका चुनाव मे ही जहाँ एक तरफ कांग्रेस के 10 साल से कार्य करने वाले कार्यकर्ताओं को टिकिट तक नहीं मिला वहीँ दूसरी तरफ बीजेपी से आये लोगों को टिकिट दिलाकर चुनाव जिताने जी जान कोशिश की गयी थी और समय का तकाजा देखिये की मोहम्मद अकबर के हारने के बाद वो वापिस बीजेपी मे ही चले गए।

मोहम्मद अकबर की राजनीतिक गलतियों को बताते हुए एक पुराने कांग्रेस कार्यकर्ता ने नाम न बताने की शर्त पर बताया कि मोहम्मद अकबर एक सुलझे हुए नेता जरूर थे पर 60 हजार वोटो की जीत ने उन्हें इस अभिमान मे पंहुचा दिया की, वो कांग्रेस के निष्ठावान कार्यकर्ता और पैसे कमाने आये चापलूस कार्यकर्ताओं मे भेद करना भूल गए।


मोहम्मद अकबर ने दों राजनीतिक गलतियों से खुद को एक नासमझ नेता के तौर पर प्रस्तुत किया । पहला एक ग्रामीण क्षेत्र के युवा जिसका राजनीति से कोई सरोकार न था उसे शहर मे कमान देकर सबसे बड़ी ताकत दे दी और दूसरा कांग्रेस के बजाय बीजेपी के लोगों को तवज्जों दे दी।

कभी सुगर फक्ट्री के मसले मे तो कभी अवैध कब्जे के मसले मे, ये जगजाहिर है कि कही न कही राजनीतिक लाभ बीजेपी के लोगों को मिला ही है।

जिससे चिढ़कर खुद को उपेक्षित जानकर कांग्रेस कार्यकर्ताओ ने मोहम्मद अकबर को रायपुर वापस भेज दिया।

वहीँ दूसरी ओर प्रदेश के पूर्व मुखिया भूपेश बघेल भी वही गलती करने वाले है। आलम ये है कि रायपुर दुर्ग के आवश्यकता से अधिक स्वघोषित सलाहकारों और जानकारों के भरोसे वो चुनाव रण मे उतर गए हैं।

जानकार बताते है की कभी जोगी के चरणों की धूल की कसम खाकर भूपेश बघेल को गाली देने वाले लोग अब भूपेश बघेल को कवर्धा जिले मे दौरा कहा करना है ये बताते है।

कवर्धा शहर जो की लगभग 40 हजार वोटर्स का क्षेत्र है वहां पूर्व मंत्री के खास लोगों की कहानियां जगजाहिर है कि कैसे  उन्होंने मोहम्मद अकबर की राजनीतिक प्रतिष्ठा ही खतम कर दी है।


जो लोग कल तक मोहम्मद अकबर के नाम पर विभागों से टेंडर लेकर जाते थे, आज वहीँ लोग शहर के कार वाशिंग दुकान के बगल मे बैठकर मोहम्मद अकबर के संदर्भ मे आपत्तिजनक बाते कहने मे जरा भी नहीं रुकते।

खैर समय समय की बात है की वक्त और जात कभी भी बदल जाते है।

बहरहाल भूपेश बघेल को अपने राजनीतिक जीवन मे एक बड़े अप्रत्याशीत हार से बचना है तो जाति गत फैक्टर को भूलकर कांग्रेस के मुल कार्यकर्ताओ से मिलना होगा अन्यथा ये बात तो तय है की जिन लोगों ने 30 साल से कवर्धा जिले की राजनीति करने वाले मोहम्मद अकबर को रायपुर वापस भेज दिया वो कका के नाम से मशहूर भूपेंश बघेल को वापस पाटन भेज देंगे जहाँ से भूपेश बघेल की दिल्ली मे राज करने की इच्छा तत्काल समाप्त हो जाएगी.

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Saurabh Namdev

| PR Creative & Writer | Ex. Technical Consultant Govt of CG | Influencer | Web developer
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