अब हम साल 2023 विदाई की बेला में है तो इस अवधि में छत्तीसगढ़ की राजनीति में जो हमने देखा है उसके मुताबिक कहा जा सकता है कि पूर्व मुख्यमंत्री भूपेश बघेल का एक अध्याय समाप्त हुआ है और मौजूदा मुख्यमंत्री विष्णु का एक दौर प्रारंभ हुआ है. एक चीज और दिखा कि इनके नेतृत्व में बीजेपी रमन सिंह के सौम्य दौर से निकलकर आक्रामक रूख लेती हुई दिख रही है.अब 2024 में प्रदेश की राजनीति से अपने नए किरदारों के साथ नए करतबों की उम्मीद जरूर की जा सकती है.
CG Year Ender 2023
एक मशहूर कथन है कि इतिहास वह बहुरूपिया है जिसके पास करतब कम है. वह वक्त,स्थान और चोले बदलकर करतब दोहराता रहता है. ऐसे में यह कहना गलत होगा कि किसी का युग समाप्त हो गया. एक पड़ाव जरूर माना जा सकता है.अब जब साल 2023 विदाई की बेला में है तो इस अवधि में छत्तीसगढ़ की राजनीति में जो हमने देखा है उसके मुताबिक कहा जा सकता है कि पूर्व मुख्यमंत्री भूपेश बघेल का एक अध्याय समाप्त हुआ है और मौजूदा मुख्यमंत्री विष्णु का एक दौर प्रारंभ हुआ है. एक चीज और दिखा कि इनके नेतृत्व में बीजेपी रमन सिंह के सौम्य दौर से निकलकर आक्रामक रूख लेती हुई दिख रही है.अब 2024 में प्रदेश की राजनीति से अपने नए किरदारों के साथ नए करतबों की उम्मीद जरूर की जा सकती है.
देश,काल और परिस्थितियां वहां के जनमानस की प्रवृत्तियां तय करती हैं. ठेठ उत्तर भारतीय संस्कृति से तुलना करें तो छत्तीसगढ़ की तासीर को जरा उदासीन,देर से प्रतिक्रिया करने वाले के रूप में जाना जाता है. यह भी सही है कि खरबूजा को देखकर खरबूजा रंग बदलता है. भले समय लगा, लेकिन अब बीजेपी के जरिए ही सही,छत्तीसगढ़ की राजनीति ने भी अपना रंग साल 2023 में बदला है. यही वजह है कि अब जनमानस के बीच योगी का बुलडोजर,हिंदू राजनीति और हिंदू-मुस्लिम की चर्चा आम होने लगी है.
चुनावी नारों में ही दिख गया था रंग
रमन पर विश्वास, सबका विकास और वक्त है बदलाव का.. ये नारे 2018 के थे. यानी तब की बीजेपी रमन सिंह के नेतृत्व में अपने किए विकास कार्यों का बखान करती दिखी थी. जबकि कांग्रेस ने बदलाव की बात कही थी. अब जब हम 2023 का नारा देखते हैं तो बीजेपी की आक्रामकता इसी में झलकने लगती है, अब नई सहिबो, बदलके रहिबो. इस आक्रामक नारों के अलावा मुद्दों को अपने पक्ष में करने और घटनाक्रमों के भुनाने के साथ ये और प्रभावी हो गए. इतने कि अबकी बार 75 पार कहने वाली कांग्रेस 35 मुश्किल से ला पाई.
योगी, हिमंता के जरिए बीजेपी ने बदला कंधा
जब बोझ एक कंधे पर ज्यादा होता है तो बोझ को दूसरे कंधे पर रखा जाता है. देश, संस्कृति और विकास की बात कहने वाले राजनाथ, गडकरी, नड्डा से ज्यादा जोर योगी आदित्यनाथ, हिमंता बिस्वा सरमा जैसे फायरब्रांड नेताओं के रूप में बीजेपी ने भी अपना कंधा बदला. यह दौर भी छत्तीसगढ़ ने साल 2023 में ही देखा.
गरीब-वंचित नहीं, ईश्वर-विजय को खिलाया फ्रंटफुट पर
था कोई दौर जब किसी सरकार की नाकामी के लिए गरीबों और वंचितों को आगे किया जाता था. ये नए दौर की बीजेपी रही जिसने ईश्वर साहू और विजय शर्मा जैसों को फ्रंटफुट पर खेलने का न सिर्फ मौका दिया, बल्कि अवसर को भुनाया भी. बिरनपुर हिंसा और भुवनेश्वर साहू की हत्या के बाद बीजेपी ने जिस अंदाज में हिंदू-मुस्लिम की राजनीति को हवा दी, इसका पटाक्षेप भुवनेश्वर के पिता ईश्वर साहू को टिकट देकर समाप्त किया. कवर्धा में झंडा विवाद के बाद विजय शर्मा ने जिस अंदाज में हवा के रंग को बदला उन्हें भी आगे किया गया. इन दोनों की सफलता भी इस दौर ने देखा.
आगे की रणनीति क्या
बीजेपी ने जिस अंदाज में 2023 में अपना रंग दिखाया, चार साल तक गांव-गरीब-किसान व छत्तीसगढ़ियावाद के छाए में रहने वाले अधिसंख्य ने पाला बदल लिया. अब उन्हें भी कहीं न कही उम्मीद है कि अवैध कब्जा, अपराध, धर्मांतरण जैसे मसलों पर बीजेपी खुलकर काम करेगी. ऐसे में 2024 ही क्या, अगले 5 सालों तक इसी के इर्द-गिर्द पूरी राजनीति होगी. इनके खिलाफ काम होगा. रमन की सौम्यता से आगे निकलकर विष्णुदेव साय के नेतृत्व में बीजेपी की आक्रामक राजनीति नया अध्याय लिखेगी.
साफ्ट हिंदुत्व से क्या आगे निकलेंगे भूपेश
छत्तीसगढ़ियावाद और साफ्ट हिंदुत्व के रूप में बीजेपी की काट बनाने वाले भूपेश बघेल बीजेपी की आक्रामकता नहीं झेल पाए. जबकि एक धड़ा इस पर सवाल उठाता रहा था. अब कांग्रेस यहां किंकर्तव्यविमूढ़ स्थिति में है कि आगे क्या होगा. कांग्रेस किस दिशा में जाएगी. भूपेश बघेल खुद कौन सी राह चुनेंगे. खुद बघेल का भविष्य क्या होगा. वह भी तब, जब सचिन पायलट यहां के प्रभारी बन गए हैं. यानी उनके मार्गदर्शन में ही यहां कांग्रेस की राजनीति आगे बढ़ेगी. ये वही सचिन हैं, जिन पर बघेल ने तब व्यक्तिगत आक्षेप किया था, जब सचिन पायलट राजस्थान में अपनी ही सरकार के मुखिया अशोक गहलोत के खिलाफ मुखर हो गए थे.
नया नेतृत्व, नए चेहरे
यह विष्णुदेव का दौर है. लिहाजा बीजेपी ने उन्हें कई नए चेहरे भी दिए हैं. रमन सिंह कैबिनेट में मंत्री रहे कई नेताओं को नए मंत्रिमंडल में जगह नहीं दी है. वहीं नए और पुरानों को मिलाकर मंत्रिमंडल का गठन किया गया है. ओपी चौधरी, लक्ष्मी राजवाड़े जैसे पहली बार जीतने वाले भी मंत्री बने हैं तो रामविचार नेताम, बृजमोहन अग्रवाल, केदार कश्यप जैसे कुछ पुरानों को भी मौका मिला है. इस बदलाव को भी कई अलग-अलग नजरिए से देखा जा रहा है.