यह समूह राज्य के 60 में से 20 पर अपना अतिरेक है। यह पहाड़ी इलाके आबाद हैं। आपको बता दें कि त्रिपुरा में विधानसभा की 60 सीटें हैं। इनमें से 20 सीट्स आदिवासियों के लिए आरक्षित हैं जबकि 10 सीट्स दर्शकों के लिए आरक्षित हैं। यह अनुपात इस राजनीतिक दल को सबसे खास बनाता है।
त्रिपुरा में विधानसभा चुनाव की तारीखों का ऐलान हो गया है। त्रिपुरा में मुख्य प्रतियोगी दल गठबंधन और कांग्रेस गठबंधन के बीच है। इस बार कांग्रेस-सीपीआईएम गठबंधन कर चुनाव में उतर रहा है। हालांकि, एक दल ने इस चुनाव को काफी दिलचस्प बना दिया है। वह दल सबसे प्रभावशाली प्रभावशाली पार्टी टिपरा है। टिपरा का पूरा नाम टिपराहा स्वदेशी प्रगतिशील क्षेत्रीय गठबंधन है। हालांकि, कांग्रेस और वाम दलों की ओर से टिपरा को बार-बार प्रस्ताव भेजा गया है। हालांकि, अब तक टिपरा के प्रमुख प्रद्योत बिक्रम माणिक्य देब बर्मन ने अपना पत्ता नहीं भेजा है। माना जा रहा है कि यह उसी गठबंधन के साथ खड़ा रहेगा जो राज्य में स्वदेशी समूह के लिए टिपरालैंड के अलग राज्य की अपनी मांग को लिखित रूप से स्वीकार करता है।
यह समूह राज्य के 60 में से 20 पर अपना अतिरेक है। यह पहाड़ी इलाके आबाद हैं। आपको बता दें कि त्रिपुरा में विधानसभा की 60 सीटें हैं। इनमें से 20 सीट्स आदिवासियों के लिए आरक्षित हैं जबकि 10 सीट्स दर्शकों के लिए आरक्षित हैं। यह अनुपात इस राजनीतिक दल को सबसे खास बनाता है। 2018 के विधानसभा चुनाव में इन क्षेत्रों में सीपीएम को करारा झटका लगा था। बीजेपी और उसके सहयोगी आईपीएफटी ने अपना दम दिखाया था। सी एक्सपोजर इन एक्सपोजर से केवल 4 पर ही जीत हासिल कर पाई थी। सबसे दिलचस्प बात तो यह भी है कि टिपरा 30 सदस्यीय त्रिपुरा जनजातीय क्षेत्र स्वायत्त जिला परिषद पर लगातार शासन कर रहा है। त्रिपुरा के 84% क्षेत्र में रहते हैं। स्वायत्त परिषद एक मिनी विधानसभा के रूप में चुनावी वोटों के लिए महत्वपूर्ण साबित होती है।
राजनीतिक विशेषज्ञ मानते हैं कि अगर कांग्रेस-सीपीआईएम के साथ कोई गठबंधन नहीं होता है तो कहीं ना कहीं विपक्षी पार्टियों को चुनाव में बड़ा फायदा नहीं होगा। टिपरा के अलग-अलग लड़ने से बीजेपी को फायदा होगा। त्रिपुरा में त्रिकोणीय चुनाव होने की संभावना बढ़ जाएगी। माना जा रहा है टिपरा के बिना कांग्रेस और सीपीएम के बीच कोई बंटवारा संभव नहीं है। पार्टी इंडिजेनस पीपुल्स फ्रंट ऑफ़ त्रिपुरा (आईपी एफ़टी) के भी संपर्क में है, जिसने 2018 में नौ क्षेत्रों में से आठ पर जीत हासिल की थी और विलय के लिए विलय का हिस्सा है। वहीं, 2018 में दो दशक बाद वामपंथी सरकार को हटाकर 36 सीटों को जीतकर इतिहास रचने वाली बीजेपी के लक्ष्य विकास के मुद्दों पर सत्ता में वापसी करना है।
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