
त्सेरिंग ने ‘पीती-भाषा’ को दिए गए साक्षात्कार में रेखांकित किया कि चीन की कम्युनिस्ट पार्टी, वर्ष 1995 में प्रतिद्वंद्वी पंचेन लामा की नियुक्ति जैसी पुनर्वित्त हो सकती है, जब दलाई लामा की ओर से फिर उन लड़कों को जनता की नजरों से ओझल कर दिया गया था।
दलाई लामा के उत्तराधिकारी बनाने के मामले में चीन के हस्तक्षेप की आशंका के मद्देनजर तिब्बत की निर्वासित सरकार ने लोकतांत्रिक तरीके से तिब्बती नेतृत्व के हस्तांतरण की योजना तैयार की है। इसकी जानकारी स्वयं तिब्बत की निर्वासित सरकार के राष्ट्रपति व सिकोंग पेनपा त्सेरिंग ने दी है। त्सेरिंग ने ‘पीती-भाषा’ को दिए गए साक्षात्कार में रेखांकित किया कि चीन की कम्युनिस्ट पार्टी, वर्ष 1995 में प्रतिद्वंद्वी पंचेन लामा की नियुक्ति जैसी पुनर्वित्त हो सकती है, जब दलाई लामा की ओर से फिर उन लड़कों को जनता की नजरों से ओझल कर दिया गया था।
उन्होंने कहा कि ऐसी उम्मीद की जा सकती है। उन्होंने मंगलवार को कहा, ”मौजूदा दलाई लामा के न रहने के बाद क्या होगा यह तिब्बतियों के लिए चुनौती है, जॉबर पर यदि चीन-तिब्बत समस्या का समाधान नहीं हुआ तो।” राष्ट्रपति (सिकोंग) त्सेरिंग ने कहा, ”हमारा यह महसूस होता है कि निश्चित तौर पर चीन दलाई लामा के उत्तराधिकारी की नियुक्ति में हस्तक्षेप करेगा…वे इसकी गत 15 वर्षों से तैयारी कर रहे हैं।” त्सेरिंग सिक्योंग की डिग्री भी कायम रखते हैं। उन्होंने कहा कि चीन की सरकार ने वर्ष 2007 में एक ‘आदेश’ जारी किया था, जिसमें सभी अवतारी लामाओं की उत्तराधिकारी की नियुक्ति प्रक्रिया में उनकी मौजूदगी की आवश्यकता बताई गई थी।
त्सेरिंग ने कहा, ”यह किया गया, जिसका उद्देश्य धर्म को राजनीतिक हथियार के रूप में इस्तेमाल करना था… हालांकि न तो चीन की और न ही किसी अन्य सरकार की कोई भूमिका शुरू होनी चाहिए।” तिब्बत की निर्वासित सरकार के राष्ट्रपति उन्होंने कहा, ” उन्होंने (चीनियों ने) वर्ष 1995 में तब हस्तक्षेप किया जब एक लड़के (ज्ञानचेन नोरबू) को पंचेन लामा के तौर पर चुना गया। महामहिम (दलाई लामा) द्वारा फिर गए पंचेन लामा (गेधुन छोयी न्यिमा) को लापता कर दिया गया और हमें अब तक पता नहीं चला कि वह भी जीवित है या नहीं।”
न्यिमा को 17 मई 1995 के बाद से स्वतंत्र पर्यवेक्षकों द्वारा नहीं देखा गया। चीन की सरकार का दावा है कि वह ‘सामान्य’ जीवन जी रही है जबकि तिब्बती निर्वासित और मानवाधिकारवादी महसूस करती है कि उसे ”चीन द्वारा ध्यान परिवर्तन के लिए श्रम शिविर में कैदी के तौर पर रखा गया है।” तिब्बती बौद्धों का ऐसा लगता है कि सर्वोच्च लामा या ‘जीवंत बुद्ध’ की आत्मा उनके ‘बच्चे’ के रूप में फिर से उभरेगी और उनके विभिन्न अवतारी द्वार निकाले जा सकते हैं।
खेद व्यक्त करते हुए त्सेरिंग ने कहा, ”कम्युनिस्ट चीन धर्म को नहीं चुनें, इसके बावजूद वह पूरी तरह से धार्मिक साजिश में हस्तक्षेप करना चाहता है।” उनके अनुसार दलाई लामा ने कहा कि अगर ‘चीनी सरकार की रुचि को दोहराएँ: अवतार में अकेला है तो उसे टिब्बी बौद्ध धर्म को पढ़ना चाहिए।” त्सेरिंग ने कहा कि 14वें दलाई लामा के देहात के बाद दुनिया और तिब्बियों के आगे बढ़ने के लिए छह दावेदारों की योजना तैयार की गई है और इस योजना के केंद्र में लोकतांत्रिक हस्तांतरण है।
ज़ोस्टरब है कि वर्ष 2011 के बाद भी तिब्बत का धार्मिक नेतृत्व दलाई लामा के पास ही बना रहा लेकिन राजनीतिक नेतृत्व से प्रत्यक्ष रूप से निर्वाचित तिब्बती सरकार के राष्ट्रपति या सिक्योंग को हस्तांरित कर दिया गया। साल 1950 में चीन ने तिब्बत पर हमला किया और साल 1959 में इसके खिलाफ आंदोलन करते हुए चीन ने क्रूरता से दमन किया। इस घटना के बाद दलाई लामा अपने कई भ्रष्टाचारों के साथ भारत आए और उसके बाद उन्होंने लोकतांत्रिक तरीके से निर्वाचित संसद की स्थापना की।
त्सेरिंग ने कहा, ”दलाई लामा भारतीय लोकतंत्र से प्रभावित है जिसे उन्होंने वर्ष 1956-57 के पहले दौरे के दौरान देखा और वह हमारे लिए लोकतांत्रिक भविष्य की तैयारी कर रहे थे।” तिब्बती नेता ने कहा कि दलाई लामा ने पाया कि भारत की लोकतांत्रित तरीके से काम करने वाली संसद है जो स्वतंत्र बोलने की आजादी देती है जबकि चीन के शीर्ष विशेषाधिकार जिसके कारण वह उच्च संबंध रखते हैं, वह जगह है जहां कोई अपनी बात नहीं कह सकता, जिसने तिब्बत की निर्वासित सरकार को लोकतांत्रिक तरीके से चलाते हैं के लिए प्रेरित किया। त्सेरिंग ने कहा, ”इसलिए मैं किसानों का बेटा तिब्बती नेता ग्रहण करने में सक्षम हुआ … हम लोकतंत्र को आगे ले जाएंगे।
अस्वीकरण:प्रभासाक्षी ने इस खबर को निराशा नहीं किया है। यह ख़बर पीटीआइ-भाषा की भाषा से प्रकाशित की गई है।













