

प्रभासाक्षी
द टुडे ऑस्ट्रेलिया की रिपोर्ट के अनुसार, ग्लोबल माइनॉरिटीज पर सर्टिफिकेट फॉर पॉलिसी एनालिसिस (सीपीए) के मूल्यांकन के अनुसार, धार्मिक अल्पसंख्यकों के प्रति समावेशी उपायों के लिए भारत को 110 देशों में नंबर के रूप में स्थान दिया गया है।
पाकिस्तान भले ही मुस्लिम को लेकर भारत को घिनौना करने की लाख कोशिश करता हो। लेकिन भारत में अल्पसंख्यक मजे में रहे हैं, सबसे अच्छी स्थिति में दुनिया के कई देशों में भी नहीं मिलेंगे। ओवैसी जैसे नेताओं ने भले ही ये आरोप लगाए हों कि बीजेपी सरकार नहीं चाहती कि इस देश में मुसलमान पढ़ें। कांग्रेस की तरफ से देश में धार्मिक और जातीय भेदभाव बढ़ने की बात की जाती हो। लेकिन सच तो ये है कि भारत का संविधान अल्पसंख्यकों को उनके अधिकारों के संरक्षण का अधिकार देता है। भारत का संविधान अल्पसंख्यकों को अधिकार देता है कि वो अपने धर्म और संस्कृति पर आस्था बनाए रखें। साथ ही उसके अनुरूप आचरण करें।
द टुडे ऑस्ट्रेलिया की रिपोर्ट के अनुसार, ग्लोबल माइनॉरिटीज पर सर्टिफिकेट फॉर पॉलिसी एनालिसिस (सीपीए) के मूल्यांकन के अनुसार, धार्मिक अल्पसंख्यकों के प्रति समावेशी उपायों के लिए भारत को 110 देशों में नंबर के रूप में स्थान दिया गया है। सेंडर फॉर सर्किल एनालिसिस (सीपीए) एक शोध संस्थान है, जिसका मुख्यालय भारत के पूर्व में है। 110 देशों में भारत में धार्मिक अल्पसंख्यकों की स्वीकार्यता सुप्रीम स्तर है, इसके बाद दक्षिण कोरिया, जापान, पनामा और अमेरिका का स्थान है। रिपोर्ट में कहा गया है कि संबंध, अफगानिस्तान और सोमालिया सूची में सबसे नीचे हैं, यूके और संबद्धता क्रमशः 54वें और 61वें स्थान पर हैं।
सीपीए रिपोर्ट के अनुसार, भारत की अल्पसंख्यक नीति एक दृष्टिकोण पर आधारित है जो विविधता बढ़ाने पर जोर देती है। भारत के संविधान में संस्कृति और शिक्षा में धार्मिक अल्पसंख्यकों के विकास के लिए विशिष्ट और विशिष्ट प्रावधान हैं। रिपोर्ट के अनुसार, किसी अन्य संविधान में भाषाई और धार्मिक अल्पसंख्यकों को बढ़ावा देने के लिए कोई स्पष्ट प्रावधान नहीं है। रिपोर्ट इस बात पर प्रकाश डालती है कि कैसे, कई अन्य देशों के विपरीत, भारत में किसी भी धार्मिक संप्रदाय पर कोई प्रतिबंध नहीं है।
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