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सलमान के ‘किसी के भाई की जान’ में हैं ये 5 झोल, 144 मिनट में दिमाग का हो गया ट्विंकल ट्विंकल लिटिल स्टार

‘पठान’ देखने के बाद अगर आपने सलमान खान की ‘किसी का भाई किसी की जान’ को देखने के लिए कुरसी की पेटी बांधी है, तो तुरंत खोल दें। वरना बहुत गहरा सामा जाता है। कई घंटे तक आप सलबुल पड़ेंगे कि असली ‘भाईजान’ ने ये कर दिया। जी हां, मैंने तो अपने 2 घंटे 24 मिनट बर्बाद कर दिए। तो आप देख रहे हैं कि आप सामजी के डायरेक्शन में क्या फरहाद करते हैं बनी KKBKKJ देखने का जोखिम लेंगे। ‘किसी का भाई किसी की जान’ के प्रमोशन में ज्यादा सलमान खान को देखा और सुना, उन्हें देखकर ऐसा लगा कि खुद भाई भी इस फिल्म को लेकर शोयर नहीं थे। इसीलिए दो चार दिन प्रमोशन करने के बाद उन्होंने अपने स्पॉट को ही आगे कर दिया। तो बिना देरी के आप दावा करते हैं कि ‘किसी का भाई किसी की जान’ की वो बड़ी गलतियां हैं, जिसकी वजह से इस फिल्म को डूबने से कोई नहीं बचा सकता।

मिश्रण बनाने का फॉर्मूला लगता है

ओटीटी पर रिलीज हुई ‘राधे’ को छोड़ दें तो आखिरी बार सलमान खान लीड ‘दबंग 3’ को लेकर बॉक्स ऑफिस पर आए थे। अब 4 साल बाद उनका सांकेतिक तस्वीर में वापसी हुई है। लाजिमी है कि फैंस उन्हें देखने के लिए बेकरार हैं। वे कई तरह की उम्मीदें लगाकर बैठे हुए थे। ऐसे में अगर ‘भाईजान’ ऐसी ‘घटिया’ फिल्म लाएंगे तो दिल टूटेगा ही न। ऊपर से वे जो अपने फिल्मों का मिश्रण में प्रवेश की कोशिश की है, वह सस्ता और बेकार लगता है। जी हां, ‘किसी का भाई किसी की जान’ में ‘मैंने प्यार किया’, ‘जीत’, ‘बॉडीगार्ड’, ‘सावन’ से लेकर ‘जय हो’ जैसी फिल्मों की झलक देखने को मिलेगी। मगर लेखक और निदेशक इन निरीक्षणियों का उपयोग करने में खराब होते हैं।

फिल्म में लॉजिक ढूंढेंगे तो माथा पीट करेंगे

फिल्म में लॉजिक ढूंढेंगे तो माथा पीट करेंगे

अगर आप ‘किसी के भाई की जान’ में लॉजिक ढूंढेंगे तो आपका कलेजा मुंह को आ सकता है। जी हां, कई सीन्स ऐसे सच हैं कि कोई सिर पैर नहीं है। समझो, सलमान खान उंगली से ही जीप को उठायें। एक सीन में उनके ऊपर गाड़ी जाती है, मगर वो तो द्रव पद्धार्थ की तरह बहकर निकल जाते हैं। ठीक ऐसे ही, एक अंत के सीन में लेटरल सतीश कौशिक को गोली लगती है। थोड़ी ही देर में वह सटीक ठीक हो जाता है। पट्टी विट्टी बांधकर उसी फाइट सीन में दिख रहे हैं। ऐसे ढेर गलतियां हैं, जिन्हें फिल्म निर्माताओं को भरना चाहिए।

वही घिसी-पिटी कहानी

वही घिसी-पिटी कहानी

उफ्फ। कहानी तो माशाल्लाह है। ‘किसी का भाई किसी की जान’ साल 2014 में अजित कुमार की आई ‘वीरम’ का रूप दिया गया है। करीब 9 साल बाद आप उस कहानी को जस का तस लाकर देंगे तो लाजिमी है कि इसे हजम करना मुश्किल होगा। आज भी अगर आप ‘वीरम’ देखें तो कहानी में कसावट और ताल है। सीन दर सीन आप बहते जा रहे हैं लेकिन ‘किसी का भाई किसी की जान’ से आप ऐसी कोई उम्मीद नहीं रखते। ये तो आपको सिर्फ और सिर्फ निराशा ही देता है। वही पुरानी घसी-पिटी कहानी है। पहली कहानी शुरू होती है भाईजान द्वारा दर्ज बचाने से, मगर फिर मेकर्स का ध्यान लगाते से हट जाता है। फिर भाईजान प्रेमिका के परिवार को बचाने लगता है। इस फिल्म में फरहाद सामजी की जिम्मेदारी थी कि वह राइटिंग टीम के साथ आज ढालते हैं। इसमें वो सब गुण, जो देखने वाला सीटी मारने पर मजबूर हो जाता है। मगर लेखक और निर्देशक कहानी के साथ न्याय करने में बुरी तरह फेल होते हैं।

विलेन का इस्तेमाल नहीं कर पाते

विलेन का इस्तेमाल नहीं कर पाते

एक फिल्म उतनी ही हीरो की होती है, जितनी विलेन की। कई स्पॉट ऐसे होते हैं, जब हीरो पर विलेन भारी पड़ जाते हैं। अगर विलेन का भरपूर इस्तेमाल होता है तो KKBKKJ बेहतर हो सकता है। ‘किसी का भाई किसी की जान’ में खलनायक की भूमिका में मुक्केबाज विजेंद्र सिंह और दक्षिण के प्रसिद्ध अभिनेता व विलेन जगपति बाबू हैं। दोनों ही दमदार पर्सनैलाइट हैं। पहला मौका था जब जगपति बॉलीवुड में सब विलेन एंट्री कर रहे थे। अगर जगपति बाबू का उपयोग किया जाता है तो ढका जा सकता है। वे महान कलाकार हैं लेकिन उनके उपयोग अच्छे से न हो पाए।

कोई सस्पेंस नहीं, क्लेमैक्स नहीं

कोई सस्पेंस नहीं, क्लेमैक्स नहीं

क्लाइमैक्स क्या होता है? फिल्म की सबसे मजबूत कड़ी। वो पक्ष जिसके लिए दर्शक 2-3 घंटे प्रतीक्षा करता है। मगर इस फिल्म में मत करना भैया। कुछ नहीं है, ऐसा आप क्लाइमैक्स कह सकते हैं। जब KKBKKJ देख रहे होंगे तो आपको अगले सीन का बड़ा ही आसानी से रिपोर्ट लग जाएगा। आपको पता है कि आगे क्या होने वाला है। या यूं कहें कि कुछ होता ही नहीं है।

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