छत्तीसगढ़

संघ का निर्माण भारत को केंद्र में रखकर हुआ है और इसकी सार्थकता भारत के विश्वगुरु बनने में है – डॉ. मोहन भागवत

UNITED NEWS OF ASIA. अमृतेश्वर सिंह, नई दिल्ली/रायपुर । राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ के सरसंघचालक डॉ. मोहन भागवत ने कहा कि संघ का निर्माण भारत को केंद्र में रखकर हुआ है और इसकी सार्थकता भारत के विश्वगुरु बनने में है। उन्होंने कहा कि संघ कार्य की प्रेरणा संघ प्रार्थना के अंत में उच्चरित “भारत माता की जय” से मिलती है। संघ का उत्थान धीमी और दीर्घ प्रक्रिया के रूप में हुआ है, जो आज भी निरंतर जारी है।

डॉ. भागवत सोमवार को विज्ञान भवन, नई दिल्ली में “100 वर्ष की संघ यात्रा – नए क्षितिज” विषय पर आयोजित तीन दिवसीय व्याख्यानमाला के उद्घाटन सत्र को संबोधित कर रहे थे। यह आयोजन संघ शताब्दी वर्ष के उपलक्ष्य में किया गया है।

हिन्दू का मर्म ‘वसुधैव कुटुंबकम’

सरसंघचालक ने स्पष्ट किया कि संघ भले ही ‘हिन्दू’ शब्द का प्रयोग करता है, लेकिन उसका वास्तविक मर्म ‘वसुधैव कुटुंबकम’ है। उन्होंने कहा कि हिन्दू का अर्थ केवल धार्मिक पहचान नहीं, बल्कि राष्ट्र के प्रति जिम्मेदारी और समावेश की भावना है। “हिन्दू यानी जो दूसरों की श्रद्धा का सम्मान करे और अपमान न करे। हिन्दू कहने का अर्थ हिन्दू बनाम अन्य नहीं, बल्कि सबको जोड़ने का है,” उन्होंने कहा।

राष्ट्र सत्ता से परे है

डॉ. भागवत ने कहा कि भारतीय राष्ट्र की परिभाषा सत्ता से नहीं जुड़ी है। “हम परतंत्र थे, तब भी राष्ट्र था। अंग्रेजी का ‘नेशन’ शब्द ‘स्टेट’ से जुड़ा है, जबकि भारत की राष्ट्र अवधारणा सत्ता से परे है,” उन्होंने कहा।

स्वतंत्रता संग्राम से संघ की विचारधारा तक

अपने संबोधन में उन्होंने 1857 के स्वतंत्रता संग्राम और उसके बाद की विचारधाराओं का उल्लेख करते हुए कहा कि उस दौर में भारतीय समाज को राजनीतिक समझ की कमी मानी गई। इसी आवश्यकता से कांग्रेस का उदय हुआ, परंतु स्वतंत्रता के बाद वैचारिक प्रबोधन का कार्य अधूरा रहा। उन्होंने कहा कि डॉ. केशव बलिराम हेडगेवार ने महसूस किया कि समाज के दुर्गुणों को दूर किए बिना स्वतंत्रता अधूरी है। इसी सोच के साथ 1925 में संघ की स्थापना की गई।

भारत का स्वभाव समन्वय का है

डॉ. भागवत ने कहा कि भारत की आत्मा संघर्ष नहीं, बल्कि समन्वय है। “हमने बाहर देखने के बजाय भीतर झाँककर सत्य को खोजा और यही हमें विविधता में एकता का भाव सिखाता है। भारत माता और हमारे पूर्वज हमारे लिए पूजनीय हैं।”

संघ की कार्यपद्धति और समर्पण

सरसंघचालक ने कहा कि संघ कार्य दो मार्गों से आगे बढ़ता है – पहला, व्यक्तियों का विकास और दूसरा, उन्हीं से समाज कार्य कराना। संघ संगठन का उद्देश्य मनुष्य निर्माण है। उन्होंने कहा कि संघ बाहरी स्रोतों पर निर्भर नहीं, बल्कि स्वयंसेवकों के व्यक्तिगत समर्पण पर चलता है। ‘गुरु दक्षिणा’ इसी प्रक्रिया का महत्वपूर्ण हिस्सा है।

मंच पर प्रमुख हस्तियां

इस अवसर पर संघ के सरकार्यवाह दत्तात्रेय होसबाले, उत्तर क्षेत्र संघचालक पवन जिंदल और दिल्ली प्रांत संघचालक डॉ. अनिल अग्रवाल मंच पर उपस्थित रहे। कार्यक्रम में सेवानिवृत्त न्यायाधीश, पूर्व राजनयिक, पूर्व प्रशासनिक अधिकारी, विभिन्न देशों के राजनयिक, मीडिया संस्थानों के प्रमुख, पूर्व सेनाधिकारी तथा खेल व कला जगत की हस्तियां भी शामिल हुईं।

 


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