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‘दहन : राकन का रहस्य’ के शायद दो या तीन एपिसोड खत्म हो सकते हैं

कई बार राइटर राइटर को बड़ा आनंद आता है जबकि लेखन एक नितांत एकांत की शुद्ध रचना प्रक्रिया है, जिसमें सिर्फ और सिर्फ परेशानी होती है। किसी कथा पर जब पटकथा बनती है तो पटकथा लेखक की कल्पना की उड़ान भी नियंत्रित नहीं रहती। ये मुख्य कारण है बड़ी-बड़ी लंबी फिल्मों की और बहुत लंबी वेब सीरीज की। जो वेब सीरीज के तीन एपिसोड से ज्यादा प्रभावित नहीं हो सकता, उसे भी 9 एपिसोड तक खींच लिया गया है। दुहाई दी जाती है कि वेब सीरीज में स्वतंत्रता कई सारे प्लॉट्स और पैरेलल ट्रैक्स की होती है, लेकिन कुछ विशिष्टताओं को प्राथमिकता देने के लिए उनकी इर्द-प्रोजेक्ट और उनके बारे में सीन्स लिखे जाते हैं और स्क्रिप्ट में घुसाए जाते हैं। जिन सीक्वेंस को बमुश्किल 10 सेकंड में उसी इंटेंसिटी के साथ दिखाया जा सकता है, उसे पूरे 2 मिनट लंबे सीक्वेंस में बदलकर कुछ ही समय बाद दर्शकों के हिस्से बन जाते हैं। उदहारण के तौर पर निर्देशक नीरज पांडेय की फिल्में रोचक होती हैं, लेकिन उनकी फिल्मों में चेस बहुत लंबी होती हैं, कलाकार अक्सर पैदल चलते हुए दिखाए जाते हैं और वो दृश्य भी लेट होते हैं जिस वजह से उनके फिल्मों में शॉर्ट शॉट की जाओ तो वो और गम्भीरतापूर्ण बन सकते हैं। डिज़्नी+ हॉटस्टार की वेब सीरीज़ “दहन – राकन का रहस्य” की ये कथा क्रिप्टोग्राफी का नया शिकार है। रोचक तो है, लेकिन बहुत लंबा है।

शिलासपुरा गांव की कहानी है जहां एक मील हैं, जिसमें असीमित खनिज पदार्थ मौजूद हैं। इस माइ में एक छुट्टी है जहां छिपा है राकन का रहस्य। गांव वालों को लगता है कि उस छुट्टी में जो राकन (डाकन से कुछ संबंध होगा) वो जिस पर प्रकट होता है उसका दिमाग फिर से देता है, वो हर जिंदा इंसान को जोंबी बना देता है या खत्म कर देता है। सरकार को तो दुर्लभ खनिजों का मतलब है कि वहां एक अनुपयोगी दुर्घटना की आयएएस (टिस्का चोपड़ा) की पोस्टिंग की जाती है जो खुदाई फिर से शुरू कर देना चाहती है। गाँव का एक पुजारी का आदमी (सौरभ शुक्ल) उन्हें प्राचीन मायावी के श्राप, राकन की पत्ति और प्रलय की चेतावनी देता है, लेकिन खुदाई तो शुरू होती है। कुछ अप्रत्याशित घटनाएँ होती हैं, गाँववाले विरोध के स्वर तेज करते हैं, लेकिन शहर से मिले हुए धुंधा भूत-प्रेत की बातों पर विश्वास नहीं करते। कई सारे प्रकरण विज्ञान और विश्वास के प्रभुत्व की लड़ाई में गुजर जाते हैं। जब कुछ लाशें और बिछ जाती हैं तो पता चलता है कि रहस्य सच था क्या। दर्शक ठगा हुआ महसूस करता है और 9वें एपिसोड को बर्बाद करने के बाद लगता है कि 2-3 एपिसोड में कहानी खत्म की जा सकती है तो शादाब हो भी सकती थी। मगर ये हो न सका।

सीरीज़ के लेखक निसर्ग मेहता ने इसका पहला डिज़्नी+ हॉटस्टार के लिए होस्टेजस (इज़राइल की वेब सीरीज़ का रीमेक) लिखा, फिर जी5 की एक निहायत ही वाहियात फ़िल्म कॉलर बॉम्ब के डायलॉग लिखे। दूसरे लेखक शिवा वाजपेयी भी निसर्ग के साथ होस्टेज के लेखक थे और तीसरे निखिल नायर, निसर्ग के साथ कॉलर बॉम्ब के सह लेखक थे। इन तीनों ने मिलकर कहानी को इतना विस्तार दिया कि रहस्य, सुपर रेनॉल्ट, रोमांस के साथ-साथ बोरियत भी रखी गई। अव्वल तो आयएएस बहुत मजे से अपनी पोस्टिंग अपनी मेरी से करवा सकते हैं, ये जानकर अच्छा लगा। टिस्का चोपड़ा एक काबिल अभिनेत्री हैं, लेकिन कम नजर आती हैं। ओट्टी आने के बाद इनसे काम मिलता है। इस तरह के रोल में शायद सूट भी करती हैं, लेकिन उनका चरित्र काफी अजीब लगता है, कमजोर लगता है। सौरभ खिलाड़ी कलाकार हैं लेकिन इस श्रृंखला में टाइप हो गए हैं। बने मुन्ना भाई में वो ज्योतिष बने थे, वो तेवर यहां भी आए हैं। रेड फिल्म में भ्रष्ट नेता और जमींदार बने थे, एक ही क्रोध और डायलॉग के मामले भी यहां हैं। इन चरित्रों को फिल्मी बनाने के इरादे से लिखा गया था। शानदार ओवर एक्टिंग है। यही हाल कमोबेश मुकेश तिवारी का है। अनुकूल पुलिस, उन्हें उम्मीद है कि वे कहानी में गर्माहट पैदा करेंगे, लेकिन वे मिलेगर साहिबा के साथ संवाद करते रहते हैं। राजेश तैलंग ने दोस्ती के संबंध में ये वेब सीरीज तय की है।

कहानी के मूल में देखें तो हमने बचपन में ऐसी भुतहा कहानियां बहुत सुनी हैं। वहाँ डाक है, वहाँ भूत है, आदि आदि। किसी ने भूत या मेल नहीं देखा है, हर किसी ने किसी के साथ रिश्ते या रिश्ते को किस्से सुनाये हैं जो उन्हें उनके रिश्ते या पेश किए हुए सुनाये हैं। हालांकि विज्ञान भी कुछ अंधविश्वासों को तोड़ पाने में अभी तक संभव नहीं हुआ है और इसी कारण से तर्क, अन्धविश्वास के आगे हथियार डालता है। दूसरा, शिक्षा भी इतनी सक्षम नहीं है कि कोई होनहार इन भूत-प्रेतों के अस्तित्व पर सवाल उठा सके और खोज कर उन्हें गलत साबित कर सके। जब तक ये होगा, तब तक हम मूर्ख बन गए। हालांकि, इतने मूर्ख भी नहीं बनाना चाहिए कि लम्बे लम्बे एपिसोड में कहानी आगे की ओर न जाए और पटकथा के ठीक समय पर ठीक हो जाए। निर्देशक विक्रांत पंवार की ये पहली वेब सीरीज है। एक लेट शेयर को उन्होंने सम्भाला तो ठीक है, इसलिए उन्हें आगे चलकर निर्देशन का काम मिलेगा। वहीं उनका सह-भ्रमण जय शर्मा जो काफी बड़ी बड़ी फिल्मों में सहज सहायक निर्देशन का काम कर चुके हैं, उनके लिए संघर्ष जारी रहेगा।

तकनीकी तौर पर सीरीज में कुछ सीन्स जरूर बेहतर बने हैं। मुकेश तिवारी और टिस्का की आपसी बातचीत कहीं भी मजेदार है। क्लाइमेक्स काफी अच्छा बना है। कंप्यूटर ग्राफिक्स भी ठीक दिखाई दे रहे हैं, कच्चा काम नहीं है। सिनेमेटोग्राफर अर्कोदेब मुखर्जी हैं जो पिछले कुछ वर्षों से वेब सीरीज की दुनिया से जुड़े हुए हैं और उनका काम भी अच्छा है। एक शख्स जिसने निराश किया वो है बौद्ध ज्ञान और समर्थ. इतने स्ट्रेंज कट्स कुछ सीन्स में दर्शक हैं जो सीन के होने का पूरा इंतजार करते हैं। इसी साथ इस श्रृंखला में से कई एपिसोड हटाए जाने की थी और एक नई कहानी को दीर्घ और दायित्व होने से बचाया जा सकता है। इस बीच के दो एपिसोड फास्ट फॉरवर्ड में देखें या गोल भी करें, तो कहानी में फर्क न करें। विवेक : राकन का रहस्य दो नावों पर सवार है, रहस्य और आतंक जिसमें रहस्य को इतनी प्राथमिकता दी जाती है कि हॉरर तो दूसरे के नागरिक की तरह नजर आता है। डिज़नी+ हॉटस्टार ने इस जॉनर में कुछ दिन पहले तमिल मॉन्स्टर के हिंदी रीमेक कठपुतली को उतारा था। अक्षय कुमार के घोषणा की वजह से वो फिल्म भी बोर करने लगती है और दहन में भी यही होता है। कठपुतली तो कम से कम इसलिए जित ली जाती है कि वो एक फिल्म है। जुड़ाव तो एक लंबे समय तक और साझेदारी वेब सीरीज है। जब आप इस बीच के एपिसोड को तेजी से आगे बढ़ाकर देखने को तैयार हों तो सिर्फ एक बार देखिए।

विस्तृत रेटिंग

कहानी :
स्क्रिनप्ल :
डायरेक्शन :
संगीत :

टैग: ओट, वेब सीरीज

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Saurabh Namdev

| PR Creative & Writer | Ex. Technical Consultant Govt of CG | Influencer | Web developer
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